अबकी बार मैं अपने गांव गया
रास्ते भर बस - ट्रेन में था खोया खोया।
रास्ते भर बस - ट्रेन में था खोया खोया।
बचपन के दोस्तों से मिलने की थी बड़ी उत्सुकता।
याद आने लगा गांव की प्रकृति की वो घनिष्ठता।
वो नदी की अविरल धारा के संग बहने का मजा।
नदी, तालाबों & पेड़ पौधों से था गांव सजा - धजा।
मिलने के आवेश में ठीक से गत रात सोया नहीं था।
यादों ने मुझे ऐसे कभी भी भिंगोया नहीं था।
ताजी सब्जियों और मठ्ठा का वो मज़ा शहर में कहां।
दिल खिल उठता है.. पाता है सुकून के पल जहां।
दिल खिल उठता है.. पाता है सुकून के पल जहां।
इस शहर ने तो करियर के नाम पर बचपन छीना।
मम्मी पापा डांटने लगते जब भी होता किताबों बिना।
इस बार गांव की सड़कें पक्की हो गई थी।
बैलगाड़ी टमटम की जगह अब मोटरसाइकिल और टेंपो थी।
बचपन की यादें अचानक तन बदन में
हिलोरे मारने लगी।
कच्ची सड़क पर बरसात के दिनों में फिसलना..
कच्ची सड़क पर बरसात के दिनों में फिसलना..
याद आने लगी।
सोचा था.. बैलगाड़ी पर बैठकर बाजार
जाने का आनंद लूंगा।
लेकिन साथी बोला..
लेकिन साथी बोला..
बाइक पर बैठो तुमको तुरंत पहुंचा दूंगा।
सड़कें चौड़ी होने से कई सालों
पुराने पेड़ों का नजारा खत्म हो गया था।
उन पेड़ों के नीचे कंचे खेलने की तस्वीर..
उन पेड़ों के नीचे कंचे खेलने की तस्वीर..
आंखों में खो गया था।
घर आया तो देखा
सभी टीवी देखने में व्यस्त थे।
अब वो समूह में बातें करना कहां,
अब वो समूह में बातें करना कहां,
सब अपने में मस्त थे।
सोचा था...खुले आकाश के
नीचे तारों को गिनते हुए सोऊंगा।
आज सुकून से भरी रात को...
आज सुकून से भरी रात को...
चांद की सैर पर निकलूंगा।
बिजली आने से लोगों को
अब पंखे की हवा की आदत थी।
गांव का आनंद लेने की
गांव का आनंद लेने की
इच्छाएं मर गई जो मेरी चाहत थी।
::::::::::::::::: तुम आते हो मगर ::::::::::::
तुम चाहे मुझे अपनी जीभ के बानों से
सताओ या कामों से
लेकिन मेरा मन नहीं होगा कभी खोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
दरिद्र होकर आते हो तुम मेरे पास
बनके मेरे बहुत ख़ास
लेकिन मेरे चेहरे पर तुम्हारी तरह नहीं है मुखौटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
तुम मुझे दिल लगा दे जाते हो अंधकार
यही होता है मेरे साथ बारम्बार
मेरा रज - रज है मोहब्बत का कोठा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
सुख के दिन में अपने आनन्द के सूर्य को देख
मुझे धुतकारते हैं
किन्तु दुःख की अंधेरी रातों में
मुझ दीए को पुकारते हैं
फिर भी फिर से जुड़ जाते हैं सब के दिल का गोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
गैरों के सागर से तुम हो मोती निकालने वाले
तुम हो सोने - चांदी से खेलने वाले
पर मैं तो समृद्ध हूं अन्न से भरकर अपना सिर्फ लोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
अपनी पेटी भर तुम मचाए रहते हो हाहाकार
तुम्हें धन की नहीं, उजालों की है दरकार
तुममें इतना सामर्थ्य कहां , तुम्हारे झूठे मुस्कान ने मुझे पोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔😔😔😔💔💔💔😔😔😔😔😔😔
:::::::::----------- दिल पर की घटाएं ----------:::::::::::
काले घनघोर घटाओं से ढका हुआ है आकाश
दिल की इस बेचैनी तक नहीं पहुंच रहा है तारों का प्रकाश
ठंडी- ठंडी हवाएं बह रहीं हैं सनन- सनन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
काश ! कोई अपना होता जी लेते जिसके साथ दो पल
तन्हाई के पैठ से जकड़ा हुआ है हृदय का हर तल
बदन के रोएं - रोएं खड़े हो बता रहे हैं आज रात बहुत है ठिठुरन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
ताश के पत्तों की तरह बिखर गया है यह जीवन
असंख्य इमारतों में किसी को ढूंढने लगा मेरा कन- कन
एक अजीब- सी कम्पन से भर रहा है पूरा तन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
ठंडी हवाओं ने ये संदेश आया है
शांति छोड़ तूने क्या - क्या पाया है
मुझे तो सिर्फ भाता था धन सिर्फ धन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
मेरा दिल खींच गया दूर खड़े एक टावर के लाल प्रकाश की ओर
आशा की किरणें जगने से दिखने लगा उत्साह का दूसरा छोर
उमंग का भंडार खुद में ही है तो क्यूं चाह है पास हो कोई जन
छत पर बैठे - बैठे असीम शांति के आनंद रस से भर रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
भले ही अभी धरती - गगन में छाया हुआ है अंधकार
दूसरों का इंतजार छोड़ अपनी अनंत शक्ति को कर लिया स्वीकार
दृष्टिकोण बदलने से भाने लगा इस अंधेरी रात का हर एक क्षण
छत पर बैठे - बैठे असीम शांति के आनंद रस से भर रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺☑️☑️☑️☑️🌺🌺🌺🌺🌺
😊😊😊😊😊☑️☑️☑️☑️😊😊😊😊😊
::::::::::::::::: तुम आते हो मगर ::::::::::::
Heart touching poem in Hindi |
तुम चाहे मुझे अपनी जीभ के बानों से
सताओ या कामों से
लेकिन मेरा मन नहीं होगा कभी खोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
दरिद्र होकर आते हो तुम मेरे पास
बनके मेरे बहुत ख़ास
लेकिन मेरे चेहरे पर तुम्हारी तरह नहीं है मुखौटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
तुम मुझे दिल लगा दे जाते हो अंधकार
यही होता है मेरे साथ बारम्बार
मेरा रज - रज है मोहब्बत का कोठा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
सुख के दिन में अपने आनन्द के सूर्य को देख
मुझे धुतकारते हैं
किन्तु दुःख की अंधेरी रातों में
मुझ दीए को पुकारते हैं
फिर भी फिर से जुड़ जाते हैं सब के दिल का गोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
गैरों के सागर से तुम हो मोती निकालने वाले
तुम हो सोने - चांदी से खेलने वाले
पर मैं तो समृद्ध हूं अन्न से भरकर अपना सिर्फ लोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔
अपनी पेटी भर तुम मचाए रहते हो हाहाकार
तुम्हें धन की नहीं, उजालों की है दरकार
तुममें इतना सामर्थ्य कहां , तुम्हारे झूठे मुस्कान ने मुझे पोटा
मानता हूं , मैं हूं एक दीया जैसा छोटा
😔😔😔😔😔😔💔💔💔😔😔😔😔😔😔
:::::::::----------- दिल पर की घटाएं ----------:::::::::::
काले घनघोर घटाओं से ढका हुआ है आकाश
दिल की इस बेचैनी तक नहीं पहुंच रहा है तारों का प्रकाश
ठंडी- ठंडी हवाएं बह रहीं हैं सनन- सनन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
काश ! कोई अपना होता जी लेते जिसके साथ दो पल
तन्हाई के पैठ से जकड़ा हुआ है हृदय का हर तल
बदन के रोएं - रोएं खड़े हो बता रहे हैं आज रात बहुत है ठिठुरन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
ताश के पत्तों की तरह बिखर गया है यह जीवन
असंख्य इमारतों में किसी को ढूंढने लगा मेरा कन- कन
एक अजीब- सी कम्पन से भर रहा है पूरा तन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
ठंडी हवाओं ने ये संदेश आया है
शांति छोड़ तूने क्या - क्या पाया है
मुझे तो सिर्फ भाता था धन सिर्फ धन
छत पर बैठे - बैठे नहीं लग रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
मेरा दिल खींच गया दूर खड़े एक टावर के लाल प्रकाश की ओर
आशा की किरणें जगने से दिखने लगा उत्साह का दूसरा छोर
उमंग का भंडार खुद में ही है तो क्यूं चाह है पास हो कोई जन
छत पर बैठे - बैठे असीम शांति के आनंद रस से भर रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺
भले ही अभी धरती - गगन में छाया हुआ है अंधकार
दूसरों का इंतजार छोड़ अपनी अनंत शक्ति को कर लिया स्वीकार
दृष्टिकोण बदलने से भाने लगा इस अंधेरी रात का हर एक क्षण
छत पर बैठे - बैठे असीम शांति के आनंद रस से भर रहा है मन
🌺🌺🌺🌺🌺☑️☑️☑️☑️🌺🌺🌺🌺🌺
😊😊😊😊😊☑️☑️☑️☑️😊😊😊😊😊
1 Comments
This poem describes the modern situation how everyone is getting away from natural surroundings so,losing peace and freedom.
ReplyDelete🌒🌓🌔🌕🌖🌗🌘