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Best Hindi love story 2020


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सुबह - सुबह रिमझिम - रिमझिम वर्षा हो रही थी ; बादल जोर - जोर से गरज रहे थे जैसे मानो कह रहे हों आज पूरे शहर को बाढ़ में भिंगों दूंगा । बरामदे के बाहर लगे आम के पेड़ों की पत्तियां घनघोर मेघों को देखकर झूम रही थी और तेज मदमस्त ठंडी - ठंडी हवाएं भी पेड़ों को मदहोश कर रही थीं ।
ये सब देख मेरा मन प्रकृति के आनंद से भर गया और बादल जब भी गरजते मुझे लगता जैसे बोल रहे हों  कम - से - कम एक बार कमरे के शीशे की बनी खिड़कियों को खोल दो और ठंडी पवनों के एहसास को दिल में उतर जाने दो । मेरा जी चाहा कि अपने को इन बारिश के बूंदों के हवाले खुद को सौंप दूं और मेघों की तरह मदमस्त हो बेहिचक इधर - उधर सैर करूं ।


मेरा मन कहने लगा -- " नहीं ! नहीं , ऐसा मत
करना ..... तुम  42 वर्ष के बूढ़े हो गए हो .... क्या बच्चों की तरह तुम्हारी इच्छाएं है ..... लोग क्या सोचेंगे ! ! !  "
मेरा दूसरा मन इसका उत्तर देने लगा -- " " बारिश किसी को भिगोने से पहले थोड़े ही न उमर देखता है ...... आदमी दिल से जवान या
वृद्ध होता है .... उमर ढलने से नहीं  । " "



मुझे दूसरे मन की बातें भा गई ; लेकिन कुछ सेकंड बाद ही मैं संशय में पड़ गया क्या करूं, क्या न करूं ।
मैंने अपने अलमीरा से " the secret " पुस्तक निकाली और बरामदे में लगी कुर्सी पर जा बैठा ; इस बरामदे का मुंह एक बगीचे की तरफ़ खुलता था जो मेरे घर के पीछे था । ये बगीचा मुझे बहुत पसंद था ; हर रोज सूर्योदय से पहले ही मैं ध्यान करने बैठ जाया करता था ; आज ध्यान नहीं कर पाया लेकिन अपने जीवनसंगिनी की यादों में खो - सा गया । पेड़ों के हरे - पीले पत्तों से टपक - टपक की ध्वनियों के साथ गिरते हर एक जल का कण अपने में सिर्फ उनके ही स्मरण संजोए हुए था  ।
बरामदे के बाहर बादल बरस रहे थें और बरामदे में मेरी आंखें भी बरसने लगी ; काश ! सात साल पहले उनको बचाया जा सकता तो अभी मेरे नयन बादलों के काम में अड़ेंगे न डाल रही होती ; काश ! मुझे स्टेज 1 में ही मालूम पड़ जाता की उन्हें bone marrow cancer है जब उन्हें पहले - पहल एनेमिया बीमारी हुआ था ।



हॉस्पिटल में उनसे ढेर सारी अपने दिल की बातें करना चाहता था लेकिन उनके चारों तरफ़ डॉक्टर और नर्सों का जमावड़ा हर पल लगा ही रहता था ; जैसे ही चिकित्सक और नर्स वार्ड से बाहर निकलते तो उनको देख - रेख़ करने की इच्छा हो या बातें कहने की , सभी रिश्तेदार उनके चारों तरफ़ अपने - अपने जगह ग्रहण करने लगते । अपने दिल की किताब के हर एक पन्ने को जोर - जोर से पढ़कर सुनाने की आकांक्षा खून की तरह मेरे पूरे बदन में दौड़ रही थी लेकिन दुर्भाग्यवश यह इच्छा पूरी न हो सकी ।



उनकी अंतिम सांसे मुझे पुकारने लगीं ; मैं दौड़ा - दौड़ा उनके पास पहुंचा , वे धीमे - धीमे स्वरों में बोलने लगीं -- " तुम मुझे भूलकर दूसरा ब्याह कर लेना जो तुम्हारी हर अच्छी - बुरी बातों का ख्याल रखे और जो हमारे इकलौते बेटे की शरारतों को झेल सके । "


पहली बार मुझे महसूस हुआ कि मेरा सिर्फ जुबां नहीं बल्कि बुरा बदन बोलना चाह रहा था लेकिन आसपास खड़े रिश्तेदारों की असहनीय बुदबुदाहट मेरी भावनाओं को जकड़े हुए थी । मेरी चुप्पी को वे समझ गईं और सभी को इशारों से बाहर का रास्ता  दिखाईं । जैसे ही वार्ड का दरवाजा बंद होने की ध्वनि मेरे कानों में गूंजी ; वैसे ही अपने दोनों हाथों से मैं उनके बाएं हथेली को पकड़ लिया और मेरे मन के भाव बाहर प्रकट होने लगे ।


थोड़े पलों में मैं अपनी दिल के किताब के सारे पन्ने खोलकर उनके सामने नहीं रख सकता था इसलिए  मोहब्बत के शब्दों का समूह मेरे आंखों से मोतियों के रूप में निकलने लगा , कुछ दिल की बातें मेरा दुःखी चेहरा कहने लगी और थोड़ा कुछ बचा मेरी जुबान --- " " मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगा .....मेरे हृदय के कोने - कोने में सिर्फ आपका ही वास है .... किसी दूसरी लड़की के साथ शादी तो दूर , मैं सपनों में भी आपके सिवा किसी लड़की को आने नहीं दूंगा । " "



अंतिम पंक्तियों को सुन वे हंसने लगी और फिर मेरी बातों को ध्यानपूर्वक सुनने लगी ।
उनकी हंसी का कारण समझने में मैं असमर्थ था ।


मैं बोलता रहा -- " " आपके साथ गुजारी गई हसीन रातों को याद करके अपने दिन किसी तरह काट लूंगा ..... बहुत प्यार है आपसे ....
आपको कभी अपने जहन से एक पल के लिए भी न निकाल पाऊंगा ...... " "


" " क्या अभी जाना जरूरी है ; थोड़ी देर और रुक जाइए न ! " " बोलते - बोलते मेरा गला बैठ गया।



" जाते - जाते एक बार मुस्कुरा दो .... तुम्हारी मुस्कुराहट मुझे चैन से इस लोक को छोड़ने में बहुत मदद करेगी ...."


न चाहते हुए भी मैंने अपने रोते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट का चेहरा ओढ़ा लिया ।


" मुझे भूल कर शादी कर लेना ..... बहुत प्यार ..... " और आखिरी वाक्य पूरा किए बगैर ही अनंत काल की यात्रा पर निकल गईं ।


उनके द्वारा ली गई आखिरी गहरी सांस ने मेरे अंदर क्रंदन की लहर दौड़ा दी और फिर दोबारा उनकी मीठी आवाज सुनने के लिए मेरे कान तरस गए । सभी महिलाएं रोने बिलखने लगी ; मुझे भी दिल हुआ कि मैं भी उन औरतों की तरह बेहिचक खूब रोऊं लेकिन पास खड़े मर्दों और महिलाओं के सामने बिलख - बिलख कर अपने दिल के उन्माद को बाहर का रास्ता दिखाकर हल्का न कर सका । 

इस संसार ने पुरुषों पर बड़ी अजीब बंदिशें थोप रखी हैं ; अगर कोई पुरुष रोकर अपने अंदर की भावनाओं को बाहर व्यक्त करना चाहे तो लोग उसे स्त्री की संज्ञा देते हैं ; मुझे याद है उस रात मैं अपने कमरे में असीम शांति पाकर इतना रोया जितना अपनी पूरी जिंदगी में नहीं रोया था ।


बरामदे में बैठे - बैठे मेरा दिल उनकी यादों को याद करके तड़प रहा था कि तभी मेरे पैरों पर किसी के कूदने का अनुभव हुआ ; देखा तो एक छोटा सा गिलहरी का बच्चा बारिश की बूंदों से छुटकारा पाने के लिए अपने बदन को हिलाए जा रहा था । मैं उठकर बरामदे और बगीचे की सीमा के पास जाकर खड़ा हो अपने दोनों हाथ गिरती ठंडी - ठंडी बूंदों को महसूस करने के लिए फैलाया ; इस बारिश ने बचपन के मुरझाए दिल के फूलों को फिर से खिला दिया जिसे वर्षा में खुद को भिगोना बहुत ही प्रिय था ।



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मैं अपने उम्र को पीछे छोड़ बागान में आगे निकल कर खुद को वर्षा के हवाले सुपुर्द कर दिया । कभी अचानक माता - पिता का चेहरा मेरे आंखों के सामने आता तो कभी अपने श्रीमती के तो कभी अपने इकलौते बेटे की लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावकारी अपने प्रियतम की यादें ही थी।
जब वो मेरे साथ थीं तो उनकी कई सारी बातें मुझे व्यर्थ मालूम पड़ती थी लेकिन बीते सात वर्षों में  उनकी तुच्छ व्याख्यान भी मुझे बड़ी अर्थपूर्ण लगती थी ; इन्हीं यादों के सहारे तो मैंने अपने अंदर जीवन को समेटे रखा था ।


मैं पूरी तरह भींग चुका था और मेरे गम भी वर्षा की बूंदों द्वारा दिल से बहा ले गई थी ; मुझे अभी बहुत ही सुकून मिल रहा था ; इस अंतरंग के आनंद को शब्दों में व्यक्त करना नामुमकिन है । मैं अपने कमरे की ओर जाने लगा तभी विधानचंद्र काका मेरे पास आएं ; मेरे वस्त्र गीले देख कर उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ ; वे मेरे अन्दर - बाहर सब तरह के विचारों से परिचित थे ; मुझे मेरे जीवनसंगिनी के छोड़ जाने के बाद इन्होंने ही मेरा ख्याल रखा था और मेरे गांव के ही करीबी थे ।


वे थोड़े घबराहट में बोले -- " मेन गेट पर एक भिखारिन खड़ी है ..... उसका छोटा बच्चा बारिश में भींग गया है ..... बुखार से पूरा शरीर आग की तरह गरम हो गया है .....जब - जब उसका बच्चा जोर से खांसता , वह बहुत रोने - धोने लगती है ..... चलिए ! जरा देख लीजिए । "


उन्होंने उस भिखारिन की व्याख्या इतने करुणा पूर्ण शब्दों में की कि मुझसे रहा न गया और अपने भिंगे बदन पर एक शॉल लपेटकर मदद करने चल पड़ा । 


उसे सहानुभूति पूर्वक अंदर लाया और ऊपर वाले कमरे में ले गया ; मेरा घर एक तल्ले का था ; ग्राउंड फ्लोर के सारे कमरे अव्यवस्थित थे । पहले तल्ले पर के सारे कमरे खाली ही पड़े हुए थे ; कभी मेरे सास - ससुर तो कभी नौवीं कक्षा में पढ़ने वाला बेटा जो अपने नानी घर रहता था,  तो कभी दो सालियां गांव से आते रहते थे , उन्हीं सब के लिए कई कमरे रखे हुए थे ।  मेरे गली में ही एक डॉक्टर रहते थे जिनका मेरे घर के चार मकान बाद ही एक दवाईखाना था ; उनको बुलवाया ।



डॉक्टर ने बताया की भींगने से बस बुखार - खांसी हो गया है , तीन - चार दिन में ठीक हो जाएगा , घबराने की कोई बात नहीं है लेकिन वह भिखारिन अपने बच्चे की हालत पर बहुत ही चिंतित थी । कोई क्या करे जीवन की यही रीत है ; बच्चे को थोड़ा दर्द होता है लेकिन वह दर्द कई गुना बढ़कर उसकी माता के हृदय में चला जाता है । उसकी ममता के सामने मुझे उसके मैले कुचैले भींगे वस्त्र बिल्कुल भी न  दिखें ।

 डॉ० से सुई देने पर जब बच्चा सो गया तब ख्याल आने पर मैंने अपने बीबी की साड़ी बक्से से निकालकर उसे दी । जो स्त्री गंदे कपड़ों में बहुत ही अशोभनीय दिख रही थी ; उसी स्त्री को महंगी चमचमाती साड़ी ने अब सुंदर स्त्री में परिवर्तित कर दिया था ; उसका चेहरा गोरा और बहुत ही आकर्षक था , एक तरह की चमक थी उसके चेहरे में । 



छह दिनों के देखभाल ने बच्चें को बिल्कुल ठीक कर दिया । उससे पूछने पर मुझे पता चला कि उसके शराबी पति का एक वाहन दुर्घटना में कुछ महीने पहले ही इंतकाल हो गया है और वह एक गन्दी बस्ती में रहती थी लेकिन पति के शराब के लत ने उसे कर्ज में डूबो रखा था ; उसके पति के इंतकाल के बाद कर्ज देने वालों ने उसके बस्ती की छोटी झोपड़ी भी छीन ली और तब से वह भीख मांगने लगी है ।


कभी - कभी मैं सोच में पड़ जाता था ; मैं कैसे एक गन्दी बस्ती में रहने वाली अनजान स्त्री को अपने घर में रख सकता हूं , लेकिन फिर मुझे उसकी हालत पर बहुत ही दया आती और अपनी तुच्छ सोच पर पछतावा । 


जब उसका बच्चा पूरी तरह ठीक हो गया तो वह मुझसे घर से बाहर नहीं निकलने के लिए मिन्नते करने लगी और बोली -- " साहब ! मैं आपके घर का सारा काम कर दूंगी .... आप जो बोलेंगे सब कर दूंगी , चाहे खाना बनाना हो , घर साफ़ करना हो , कपड़े धोना हो ... कुछ भी । "


मेरे उत्तर देने से पहले ही पास खड़े विधानचंद्र चाचा बोल पड़े -- " ठीक है ! ठीक है ! तू खाना   बना देना और घर की साफ - सफाई भी कर देना । मैंने कोई आपत्ति नहीं जताई ; मुझे विधान चाचा के लिए गए निर्णयों पर पूर्ण विश्वास हमेशा से था : आखिर क्यूं न हो : अपने 65 सालों का जीवन का अनुभव उन्होंने  अपने उजले बालों और बड़ी मुंछो में जो संभाल रखा था । उनको पाक कला में महारत हासिल नहीं थी , शायद इसी लिए उन्होंने उस स्त्री को भोजन बनाने का काम सौंपा ; वैसे भी विधान चाचा के सिर पर ढेर सारे कार्यों का बोझ था -- घर के देखभाल के अलावा मकान के बाहर एक बहुत बड़ा घास का मैदान , घर के पीछे के बागान और कुछ कठ्ठे में ऑर्गेनिक सब्जियां उगाने की जिम्मेदारी उन्हीं की थी ।



अगले दिन से जो काम विधानचंद्र चाचा दोपहर के बारह बजे तक करते थे , वही कार्य वह स्त्री ईश्वरी देवी सुबह उठ आठ बजे तक ही कर दी ; खाने में कोई भी कमी न थी , उस दिन मुझे एहसास हुआ ही सालों बाद स्वादिष्ट भोजन घर में नसीब हुआ है , जब कभी मेरे जीभ को अच्छे स्वाद की आवश्यकता होती थी मेरे कदम स्वयं होटल की ओर चल पड़ते थे ।


अपनी पत्नी के चले जाने के बाद मुझे पता चला कि घर को संभालने में कितनी जद्दोजहत करनी पड़ती है ; इससे पहले मुझे लगता था कि गृह के कार्य करना बाएं हाथ का खेल ही है । धीरे - धीरे वह अपने अचंभित कर देने वाले कृत्यों से मेरे दिल में जाने - अनजाने में जगह बनाती गई ।


 सबसे ज्यादा मुझे उसके द्वारा प्रतिदिन कुछ नए प्रकार का भोजन थाली में परोसना पसंद था ; वह कई ऐसे व्यंजन बनाती थी , जिसका मैं न तो नाम सुना था और न ही कभी देखा था । पूछने पर मालूम हुआ की उसकी मां ,जो अब मानव लोक में नहीं है , के साथ वह भी बचपन में किसी अमीर बाबू के यहां घर का काम करती थी : वही से उसे यह गुण प्राप्त हुआ था । 



छह - सात  महीनें इसी प्रकार से बीते । रातों में जब अपने कमरे में एकांत में होता तो अब उसके द्वारा दिन में बोले गए शब्द मेरे कानों में गूंजती मालूम होती ; उसका सादगी भरा सुंदर चेहरा रह - रहकर मेरी आंखों के सामने आने लगता । जब वह मेरी पत्नी की मनमोहक  पोशाक में होती तो उसकी छवि मेरे मन के गहरे तल तक स्पर्श कर जाती ; मेरे घर में उसके आगमन के तीन - चार महीने बाद से ही ये सब मेरे अनुभव में आने लगा था । इससे बचने के लिए मैंने अपनी पत्नी के वस्त्र देना बंद कर बाहर से खरीदी गई पोशाकें देने लगा लेकिन इससे कुछ भी लाभ न हुआ ।


सुबह - सुबह मेरे कमरे में वो चाय रख जाती ; कभी सुबह देर से उठता तो प्यार से थोड़ा डांटती ; कभी बैंक से शाम को घर वापस आने में देरी होता तो घबरा कर कॉल करती , इसी तरह की उसके कई व्यवहार मेरी पत्नी की आदतों से मिलती - जुलती थी । वह मेरा बहुत ही ख्याल रखती थी जिसके कारण कभी - कभी जब उससे दूर जाने का विचार भी आता तो अंदर से डर के साथ गम भी उत्पन्न होने लगता : आखिरकार कौन अनजान किसी के लिए इतना सेवा भाव से भरा होता है ।
जब मैं रातों में तन्हाई को गले लगा बिस्तर पर पड़ा रहता तो कभी - कभी उस स्त्री के साथ काम - क्रीड़ा करने की इच्छा जगती लेकिन बाद में मुझे अपने अभद्र विचारों पर बहुत पछतावा होता और इसी को दूर करने के लिए अगले दिन उसके पांच वर्ष के बच्चे के लिए ढेर सारे चॉकलेट और खिलौने ले आता ; अपने बेटे को प्रसन्न देख उसका चेहरा भी खुशी से खिल उठता और इसे देखकर मेरे पश्चाताप के आंसु मेरे दिल से बह जाते ।


कई सालों के शिक्षा ग्रहण करने का फल मिला की मैं SBI Probation Officer बन गया और कई लोगों पर नियंत्रण रखता पर मेरे मन के विचारों पर खुद का ही नियंत्रण नहीं था ; ये मेरे लिए बहुत ही दुखद बात थी लेकिन क्या करे शिक्षण संस्थानों में जो चीज महत्वपूर्ण है सिखानी, वही नहीं मुझे सिखाई गई ।


जून की तप - तपाती धूप में एक दिन घर के कामों के कारण मैंने बहुत भाग - दौड़ की जिसके कारण मुझे लू लग गई । शाम में बुखार इतनी तेज हो गई की आने वाले कल को देखने में भी मुझे संशय होने लगा । विधानचंद्र जी द्वारा बुलाए गए वैद्य ने दवाएं दी तो थोड़ी राहत महसूस हुई ; उस रात ईश्वरी मेरे बिस्तर पर ही बैठी रही और एक छोटे से कपड़े को जल में डूबो उसे गाड़ती फिर उसे मेरे ललाट पर रखती जाती और मुझे याद है उबले कच्चे आम के गुदे की शर्बत जो वह जबरदस्ती पिलाई थी ।


 उसी के सेवा - संसार का नतीजा निकला की मैं दो दिनों के भीतर ही ठीक हो गया । इस घटना के बाद से जब भी उसे देखता मेरे दिल में बार - बार उसके लिए प्यार उमड़ आता था ; जी चाहता उसे अपने बाहों में भर खूब प्यार करूं ।


एक रात अपने मित्र आशुतोष बाबू के यहां से शराब के नशे में धुत अपने घर आया ; मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे । उसने मुझे अपने कंधे का सहारा देकर मुझे मेरे कमरे में ले गई और बिस्तर पर लिटा जाने लगी तभी मैं उठ कर उसकी कोमल कलाई पकड़ कर उसे अपने बाहों में भर लिया और एक जोर का चुम्बन किया ।


 मेरा दिमाग शराब के नशे के कारण मेरे नियंत्रण से कई कोसो दूर था ; मैंने अपने दिल की सारी बातें कह दी , वह चुपचाप मेरे बिस्तर पर बैठ सुनती रही और अपनी बात समाप्त होने ही मैं अपने शर्ट की बटन खोलने लगा । उसके बाद बस मेरे जहन में सिर्फ धुंधली - धुंधली सी यादें रह गई हैं ; प्रातः काल  उठा तो देखा हम दोनों बिस्तर पर नग्न अवस्था में पड़े हुए हैं । इस घटना के बाद से कुछ दिनों तक मैं उससे अपनी नजरें चुराता रहा और फिर सब भूलने लगा ।


कई दिनों के बाद ईश्वरी को उल्टियां आने शुरू
हो गई । अस्पताल जाने पर डॉक्टर ने जांच करके बताया कि वह प्रेगनेंट है ; यह बात जान मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और थोड़ी खुशी भी । खुशी इस बात की थी कि  मेरा अंश उसके अंदर है तो मुझे जल्द से जल्द उससे ब्याह रचाकर इस रिश्ते को पवित्र नाम दे देना चाहिए ; विधानचंद्र चाचा को जब मैंने यह बात बताई तो वे हामी भरते हुए मुझसे खुश होकर बोले -- 

  " " उसका तुम्हारे सिवा कोई देख - रेख करने वाला इस दुनिया में नहीं है , वैसे भी लडकी घर - बार संभालने के गुणों से भरी हुई है ; तुम दोनों का विवाहित जीवन उसके और तुम्हारे बेटे के लिए हितकर होगा , तुम्हारे बेटे को मां मिल जाएगी और उसके नन्हे बच्चे को पिता । " "


उस रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी ; मेरे अंदर शादी के ख्वाब और फिर यौन इच्छाएं जागने लगीं  ; सोच रहा था कल - परसों में मंदिर में बिल्कुल सादे - ढंग से उससे विवाह करूं । मैंने उठकर बड़े बक्से को खोला जो बहुत सालों से खुला नहीं था और बर्तनों , अपनी पत्नी की साड़ियों और गहनों को उलट - पुलट कर देखने लगा ; उसे शादी में कौन से गहने जचेंगे यही सोच मेरे दिमाग में चल रही थी कि मेरी जीवनसंगिनी की एक मुस्कुराते चेहरे वाला तस्वीर मेरे हाथ लग आया ।



 मैं अपनी पत्नी को देख बहुत भावुक हो गया और उस तस्वीर को अपने सीने से लगा लिया । फिर जब फ्रेम में के छबि को देखा तो मेरे आंखों से कुछ आंसू उस तस्वीर पर गिर गए ; इसके बाद उस चित्र से हंसने की आवाजे आने लगी , ये हंसने की ध्वनि मेरी पत्नी जैसी थी जब वह मरण - शय्या पर अस्पताल में पड़ी थी


तब उनके मुंह से हंसी छूटी थी । कुछ मिनट के बाद मुझे इस हंसी का राज समझ में आया  ; यह हंसी मेरे भूत में बोले वचनों की याद मुझे दिला रहीं थीं :---

" " किसी दूसरी लड़की के साथ शादी तो दूर , मैं सपनों में भी आपके सिवा किसी लड़की को आने नहीं दूंगा । " "


ये शब्द बार - बार मेरे कानों में गूंजने लगे ; मैं उस तस्वीर को वापस बक्से में रख व्याकुल हो तेजी से बरामदे की शांति की ओर भागा और वहां लगी कुर्सी पर बैठ गया । बरामदे से आम के पेड़ के मोटे - मोटे तने दिखाई पड़ रहे थे तभी मुझे तने के पीछे से एक परछाई सी मालूम हुई ; वहां से कुछ शब्दों का समूह मेरी ओर तेजी से आने लगा और साथ - साथ वो काली धुंधली दिखाई पड़ने वाली परछाई :--


" " किसी दूसरी लड़की के साथ शादी तो दूर , मैं सपनों में भी आपके सिवा किसी लड़की को आने नहीं दूंगा । " "


जैसे - जैसे वह आत्मा मेरे नजदीक आने लगी वैसे - वैसे ध्वनि इतनी तेज होने लगी मुझे लगा जैसे मेरे कान की चादर फट जायेगी । मैं घबराकर चाचा के कमरे की ओर दौड़ा ; उनका कमरा हमेशा खुला ही रहता था । मैं झटपट उन्हें जगाया तो नींद से जगकर बैठ गए ; मैं उनके गले से लग गया जैसे कोई बच्चा  खतरे की परिस्थिति को जान अपनी मां से गले लग जाता है  और फिर उनके कहने पर इसे भ्रम समझ उनके साथ ही सो गया ।


अगले दिन सुबह - सुबह ही आशुतोष बाबू आ पहुंचे और ईश्वरी को हाथ पकड़ ले जाने लगे । मुझे तो कुछ समझ न आया कि हो क्या रहा है। विधान चाचा के पूछने पर आशुतोष बाबू बोलने लगे --- " ईश्वरी के पेट में पलने वाला बच्चें का बाप मैं हूं ..... ईश्वरी को मैं अपनी पत्नी बना के अपने घर ले जा रहा हूं । "


ये सुन पहले - पहल तो मुझे मेरे कानों पर तो विश्वास ही नहीं हुआ । फिर वे आगे बोले -- " हम दोनों का तीन महीनों से चक्कर चल रहा है ; मैं इससे प्यार करता हूं और यह भी मुझसे करती है ।


फिर चाचा की ओर देखते हुए वे बोले --
" विश्वास नहीं होता तो पूछ लीजिए ईश्वरी से, विधान चाचा ! "


जब आशुतोष बाबू अपना प्रवचन दे रहे थे तो
मैं सिर्फ ईश्वरी को ही देखे जा रहा था । वह स्त्री  जिसको मैंने बहुत चाहा , वह मेरी अनुपस्थिति में  किसी और के साथ  बिस्तर रंगीन कर रही थी ; मेरा दिल दुःख और आश्चर्य दोनों से पूरा भर गया । आशुतोष बाबू और मेरे में एक दिन की नहीं, बल्कि 25 वर्षों की गहरी मित्रता थी लेकिन आज वो भी टूट गई ; अपने दोस्त की ही वस्तु पर अपना अधिकार जमा लिए , वाह रे दोस्ती !   मैंने अपने सपने में भी यह कल्पना नहीं की थी ।


मैं ईश्वरी की ओर देखते हुए बोला -- " तू कभी बताई क्यूं नहीं की तू आशुतोष बाबू से प्यार करती है ? ..... अरे मैंने तो तुझे उस रात से ही अपना मान लिया था जिस रात मेरे बदन का स्पर्श तेरे बदन से हुआ था ..... लेकिन तूने तो मुझे धोखे में रखा ।


ईश्वरी के उत्तर देने से पहले ही आशुतोष बाबू आश्चर्य से मुझसे बोले -- " लेकिन विकास बाबू !  आप कभी ये बात मुझे बताए क्यूं नहीं ?   "


मैंने अपने दायां हाथ ऊपर करके चुप रहने का संकेत किया । ईश्वरी बोलने लगी ---  " " " अपने दिल की बात मुझे कभी आप बतलाएं ..... नहीं न ! मुझे लगा आप मेरी बहुत चिंता करते हैं लेकिन वो आपका मेरे लिए ईश्क था ये अभी मैं समझी ...... उस रात जो हुआ वो आपके शराब के नशे के कारण हुआ था .... मैं भी आपके भावनाओं में कैसे बह गई , मुझे पता ही न चला ..... वैसे भी एक रात के सेक्स को क्या प्यार का नाम देना सही है , नहीं !  बिल्कुल नहीं !  " " "
बिना पूछे ही आशुतोष बाबू मेरी ओर देखकर बोलने लगे -- "  " मुझे नहीं पता था कि विकास बाबू ! आप भी ईश्वरी को चाहते हैं .... अगर मुझे पता होता तो मैं अपने कदम आगे कभी नहीं बढ़ाता लेकिन अब बढे कदमों को पीछे नहीं ले सकता हूं । " "



" " मैं अब तक अपने प्यार के संबंध को आप सब को बताने में हिचक रहा था .... बताने पर न जाने क्या सोचेंगे .... और कोई नहीं तो एक मामूली नौकरानी से आंखें लड़ा बैठा । " "
ये सब वाद - विवाद चल ही रहा था कि एक गंदे कपड़ों में बदन ढके हुए एक आदमी लड़खड़ाते हुए प्रवेश किया ।
उस मुख्य दरवाजा से घर के अंदर आते देख चाचा चिल्लाकर पूछे -- " कौन हो ? किससे मिलना है तुमको ? "


वह हमारे पास आकर खड़ा हो गया और थोड़े शराब चढ़ाए हुए होने के कारण डगमगाया और फिर संभालते हुए बोला --- " हम ईश्वरी का पति हैं .... कई महीने पहले हमको छोड़ के चली गई थी ..... कल रात में हमको फोन की और बताई की वह पेट से है .... इसलिए अपने बच्चे के साथ - साथ उसकी मम्मी को भी लेने आए हैं । "


ये सुन विधानचंद्र चाचा का सिर चकराने लगा और जहां खड़े थे वहीं जमीन पर ही अपना माथा पकड़कर बैठ गए और बोले -- " " ई सब , क्या चक्कर चल रहा है !!  मुझको तो समझ में नहीं आ रहा है ..... एक लड़की के पीछे तीन - तीन लड़के । " "


आशुतोष बाबू उसके पति का कॉलर पकड़ बोले -- " " अरे ! अनपढ़ गवार ! शराबी ! तुझसे वह लगभग सात महीने से मिली नहीं है और कह रहा है , तुम्हारा बच्चा है ..... कल ही पता चला है की ईश्वरी प्रेगनेंट है । " "


मैं और आशुतोष बाबू , ईश्वरी की ओर घुरकर देखने लगे तो वह अपना मुंह खोली --- 

" ' हां , कल रात में इसको कॉल की थी ; सिर्फ सलाह लेने के लिए ..... कई साल एक साथ रहे हैं न ..... इसलिए मुझको लगा कि वह मेरी बातों को समझेगा ...... और रही बात पति के बारे में झूठ बोलने की तो ..... हां !  मैं झूठ बोली , लेकिन सिर्फ अपने बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए .....मुझको पता चला था कि आप गरीबों की बहुत मदद करते हैं .... अगर मैं बता देती की मेरा पति है तो विकास बाबू ! आप मुझे अपने घर में न रखके ....... मुझे वापस निकम्मे शराबी पति के पास भेज के ही रहते । " '



" ' मेरे पति का नाजायज संबंध एक वेश्यावृत्ति करने वाली चौल की एक लड़की से था इसलिए मुझे एक दिन झोपड़ी से बाहर निकाल दिया ...... कल रात को कॉल करने पर बोलने लगा ; वापस आ जाओ वह वैश्या हमको छोड़ दी है । " '


हम सब लगभग पांच मिनटों तक चुपचाप एक - दूसरे का चिंतित चेहरा देखते रहे , सिर्फ उसका शराबी पति अपने में कुछ बड़बड़ा रहा था । तब विधान चाचा बोलने लगे --- " देखो !  तुम तीनों में से किसे ईश्वरी अपनाएगी और किसे ठुकराएगी , ये सब - के - सब ईश्वरी की इच्छा पर छोड़ दो । "
हम तीनों उनकी बातों से सहमत हो गए । स्त्री ने सोच - विचार करने के लिए एक घंटे की मोहलत मांगी और अपने कमरे में चली गई । 



मैं चाचा को बोलने लगा -- "  " देखिएगा चाचा ! वह मुझको ही अपनाएगी ; इतने महीनों से उसको इस घर में आश्रय दिए और वो भी तब , जब वह दर - दर की ठोकरें खा  रही थी .... उसका बच्चा आज जिंदा है तो मेरी ही वजह से ..... उसकी हर एक आवश्यकता को मैंने पूरा किया है ..समाज और गली - मुहल्ले के लोग उसे जानने लगे हैं .....सम्मान की नजरों से देखते हैं उसे ; ये  सबका श्रेय मुझे ही जाता है । " "



मेरे अभिमान से ओत- प्रोत वाक्यों को सुन कर आशुतोष बाबू चाचा की ओर देखते हुए अपना मुंह खोले -- " " " कई महीनों का मेरा और ईश्वरी का शारीरिक संबंध रहा है और मेरा बच्चा भी उसके पेट में है ....सहवास ने हम दोनों को एक - दूसरे की रूह से जोड़ दिया है .... वो कभी भी मुझे पति मानने से इंकार करने के बारे में अपने सपने में भी नहीं सोच सकती  ..... वह मेरे साथ बाहों में बाहें 

डाल आनंद के पल बिताती थी .... उसको ईश्क की किताब पढ़ाने के साथ ही इंग्लिश की पुस्तकें भी पढ़ाया था ..... उससे जब पहली बार मिला तो उसने बताया कि वह पांचवीं तक की पढ़ाई सरकारी विद्यालय से की थी लेकिन अब मेरे कारण ही उसको बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ है  ; आप देखिएगा विधान चाचा ! वह अपने दिल में सिर्फ मुझे ही बसने देगी । " " " 

अब उसके शराबी पति के विचार जानने की बारी थी । वह बोलने लगा -- ' ' हम उसका पति हैं ..... उसके साथ मंदिर में सात फेरे लिए थे कि कभी एक - दूसरे से अलग नहीं होंगे ..... हम दोनों को कोई अलग कर सकता है तो वो है सिर्फ मृत्यु .... और कोई भी नहीं ; मानते हैं उसको बहुत पिटे , सताए और अंत में घर से बाहर निकाल दिए लेकिन जो कुछ भी हो , हैं तो हम उसके पति ही न ; एक बार अगर एक लड़की का ब्याह हो जाता है , उसका पति कैसा भी हो उसके साथ ही जीवन गुजरना पड़ता है .... यही इस संसार का नियम है ; मेरी मेहरारू में इतनी शक्ति नहीं है कि वह समाज में बंधनों को तोड़ सके ..... हम ही उसे अपने साथ वापस ले जाएंगे । ' '

और फिर थोड़ा सोचते हुए बोला -- ' ' लेकिन हमको समझ नहीं आया ..... आखिर आप जैसे अमीर लोग उसके पीछे क्यूं पड़े हुए हैं ..... हमको तो आज तक उसमें कुछ अच्छा दिखलाई नहीं पड़ा सिवाय उसके शरीर के ...... सिर्फ रातों में बिस्तर पर ही अपने शरीर से सुख देती थी ; इसके सिवाय उसके पास कुछ नहीं है । ' ' 


मुझे उसके तुच्छ विचार बिल्कुल पसंद नहीं आए लेकिन मैंने कुछ बोला नहीं ; मैं तो बस ये सोच कर घबरा रहा था , अगर वह मुझे ठुकरा देगी तो मेरा क्या होगा !!! 

फिर वह मेरे और आशुतोष बाबू की ओर देखने लगा और कहा -- ' ' आप दोनों भी उसके शरीर के पीछे पड़े हुए हैं न ??? ' '

मुझसे ज्यादा तो आशुतोष बाबू को गुस्सा आया और उठकर उसके पास गए और एक मुक्का उसके मुंह पर जड़ कर आंखें लाल करते हुए बोले --- " " चुप रह , जाहिल ! गंवार ! " " 

मुक्के के जोरदार प्रहार से वह गिर पड़ा और बोला --  ' ' सच कड़वा होता है , साहब ! .... अगर आपको बुरा लगा तो हम माफी मांगते हैं । " " 

तभी ईश्वरी अपने कमरे में हम तीनों प्रतियोगियों को बुलाने लगी । हम तीनों के सोफे पर बैठने के बाद वह अपने पति को बोलने लगी ---  ' ' ' अब मुझे लेने आए हो ..... पहले तो तुम घर से बाहर निकाल अपने बच्चे के साथ मरने के लिए छोड़ दिया .... उस वेश्यावृत्ति करने वाली लड़की के साथ खूब मज़े किए तुमने ..... अब वह तुमको छोड़ दी तो आ गया अपना मुंह उठा के ; मैं तुम्हारे साथ अब उस घटिया जिंदगी के दलदल में नहीं जाना चाहती हूं । '  ' ' 

मेरी पहली बार ही उसके गुस्से से मुलाकात हो रही थी ; उसका चेहरा गुस्से से जो अभी लाल था , वह सामान्य होने लगा और फिर वह आशुतोष बाबू को देखते हुए बोली -- ' ' ' मैं जानती हूं आपको लगता है कि आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं .... मुझे भी आपसे बहुत प्यार है लेकिन आपके प्यार को समझने का नजरिया बिल्कुल अजीब है ;

 आप जब भी मेरे कमरे में आते तो आप कामवासना से तुरंत ही भर जाते .... ये भी कभी न हुआ कि थोड़ा मुझे अंदर से जान ले , अच्छे से मेरी भावनाओं को समझ ले ....


 आपकी सबसे बड़ी भूल है कि आप संभोग करने को ही प्यार समझते हैं ..... मुझे याद है जब मैंने कई बार आपके साथ बिस्तर रंगीन करने से मना किया तो आप गुस्से और अहंकार से भर गए .... एक महिला की जिंदगी में 
सिर्फ सेक्स ही सब कुछ नहीं होता है ....


 आपके इसी व्यवहार की वजह से आपकी तीन गर्लफ्रेंड भाग गई होगी ; मुझे माफ़ कर दीजिए मैं आपसे शादी नहीं कर सकती । '  ' ' 



मुझे ये जाकर बहुत ही खुश हुआ कि दोनों आदमियों को उस स्त्री ने छांट दिया ; इसका मतलब स्त्री मेरी हुई । 

आशुतोष बाबू की सेक्स की बुरी लत मुझे  विजयी बना दी । आशुतोष बाबू एक बहुत बड़े न्यूरो सर्जन थे ; और इसकी पढ़ाई करने वे विलायत गए थे और वही के अस्पताल में नौकरी भी करने लगे ; वही उनकी जिंदगी में एक - के - बाद - एक गर्लफ्रेंड आई लेकिन उनके शादीशुदा जीवन के प्रति बुरे नजरिए को देखकर सब उनसे नाता तोड़ती गई ।


 अपने माता जी के अंतिम संस्कार में जब घर वापस लौटे तो यही रहकर एक बड़े निजी अस्पताल में अच्छे  पद पर कार्यरत हो गए और फिर कभी वापस नहीं गए । हम दोनों की दोस्ती इंटर से ही थी और दोस्ती गहरी होने के कारण वे कॉल और सोशल मीडिया द्वारा हमेशा हाल - चाल लेते रहे लेकिन इस समय मेरे आंखों के सामने दोस्ती की यादों पर एक स्त्री को पाने की आकांक्षा अपना पूर्ण प्रभाव जमाए हुए थी ।


ईश्वरी मेरी ओर कुछ सेकंड तक देखती रही और फिर बोली --  ' ' ' मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि आप मन ही मन मुझे चाहते हैं .... अगर मुझे पता होता तो आपके प्यार के कदमों को अपने नजदीक आने से पहले की रोक देती ..... मेरे दिल में आपके लिए बहुत सम्मान है जिसका अंदाजा आप खुद भी नहीं लगा सकते ..... 

आज जो कुछ भी हूं सब आपके ही बदौलत हूं ; आप मेरी जान भी मांग लें तो एक पल भी सोचे बिना दे दूंगी लेकिन मैं आपके जीवन में धर्मपत्नी का दर्जा नहीं ग्रहण कर सकती ... मुझे कोई अपने आप पर घमंड नहीं है लेकिन मैं आपको पत्नी का सुख अच्छे से नहीं दे पाऊंगी .... नौकरानी होने के नाते मैं आपका अपनी पत्नी से भी अधिक ध्यान रख सकती हूं ...... एक बात और है जो मुझे हमेशा से खटकती है ; आपके हृदय में मेरी छोटे से बच्चे के लिए उतना लगाव नहीं है , जितना मेरे लिए है ..... जब कभी वह रोने लगता है , आप उससे चिढ़ने लगते हैं ....


  पिता जैसे प्यार से आपने उसे कभी अपने गोद में नहीं खेलाया .... जब कभी वह रोता , आप विधान चाचा को पुकारने लगते लेकिन खुद उसे चुप कराने का प्रयास बहुत कम ही किए होंगे .... आपसे शादी कर अपने बेटे का बोझ आपके सिर पर नहीं डालना चाहती हूं .....


मुझे माफ़ कर दीजिए । '  ' '  ऐसा कहकर वह रोने  लगी । 

मुझे  उसके आंखों में आसूं बिल्कुल पसंद नहीं आ रहे थे ; उसके आंखों से गिरते  आंसू की हर एक बूंद मेरे हृदय पर कांटे की तरह चुभ रहे थे लेकिन वह सच ही कह रही थी ; मुझे उसके बेटे से कोई खास जुड़ाव नहीं था । 



मैं और आशुतोष बाबू उसके विचारों का सम्मान किए लेकिन उसका पति उसे अपने साथ ले जाने के लिए ईश्वरी से जबरदस्ती करने लगा । 

मेरा तो अभी मूड खराब था ही इसलिए अपना सारा गुस्सा उसके पति पर निकालने का अवसर मिल गया । मैंने अपने एक महिला मित्र को फोन किया जो एक महिला मोर्चा संगठन की डायरेक्टर थीं ; इनका संगठन शोषित - पीड़ित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करता था । उधर आशुतोष बाबू पुलिस को कॉल करके बुला लिए । इसके बाद जो बुरी दुर्दशा पुलिस और महिला संगठन की महिलाओं ने मिलकर उसके पति का ऐसा किया की वह कभी सपने में भी न सोचा होगा । 


इस घटना के बाद से मेरा और आशुतोष बाबू की पुरानी दोस्ती टूट गई ; अब न मैं उनके घर जाता और न वे मेरे घर आते । इस घटना के पांच दिन बाद ही ईश्वरी मेरे घर से चली गई और अबोर्शन करा ली । 

ईश्वरी को बच्चें पढ़ाना बहुत पसंद था इसलिए महिला संगठन की महिलाओं ने  एक छोटा सा स्कूल खोलने के लिए उसको बैंक से ऋण दिलवा दिया ।  अब तक मेरे गली के सारे लोग उससे परिचित हो चुके थे ; उन्हीं लोगों की सहायता से वह एक नया विद्यालय खोल दी जो प्ले से लेकर तीसरी कक्षा तक की थी और यहीं उसका नया बसेरा था ।

 मैंने भी उसकी मदद करने की इच्छा  जताई लेकिन उसने मेरे से किसी भी प्रकार की सहायता लेने से मना कर दिया । 

आशुतोष बाबू गहरे मित्र और ईश्वरी नौकरानी ;  या यूं कहूं कईयों के दिल की रानी : इन दोनों के मेरे जीवन से जाने के कारण मैं बहुत अकेलापन के दुखों से गुजरने लगा । प्यार का खेल तो कुछ महीनों पहले ही शुरू हुआ था लेकिन दोस्ती का रंग तो मेरे दिल पर अनगिनत वर्षों से था । मुझे रह - रहकर मेरे और आशुतोष बाबू के बीच हुए दोस्ती की वादें याद आने लगी ; कभी  हम दोनों एक - दूसरे से बोला करते थे :- कभी भी अपनी यारी को तोड़ेंगे नहीं , चाहे कोई भी बीच में आए ।


एक बार तो हम दोनों शराब के धुत्त में थे ; मैं बहुत ही उत्साह से बोला था --- " अगर ब्रह्म भी आ जाएं तो भी हमारी मित्रता को नहीं तोड़ सकते हैं । " 

" " और अगर ब्रह्म से खतरनाक बीबी आ जाए तो दोस्ती तोड़ दोगे ??? " " आशुतोष बाबू हंसते हुए बोले ।

" तो बीबी को ही छोड़ देंगे और क्या !! "
ऐसा कहकर मैं भी जोर से हंस दिया था। 

इसी तरह की अनेक बातें मेरे दिमाग में चल रहीं थी ; अब मुझे पता चला , कहनी और करनी में कितना फर्क है ! 

ईश्वरी के जाने के करीब पंद्रह दिन बाद एक शाम किसी ने जोर - जोर से मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया ; दरवाजा खोला तो देखा, ये तो अपने आशुतोष बाबू है लेकिन वे बहुत ही बुरी अवस्था में थे :- कपड़े गंदे ऐसा लग रहा था रास्ते पर कहीं गिर गए हों ..... शराब के नशे में पूरा धुत्त । 

मुझे देखते ही बहुत भावुक हो गए और अपनी आंखों को नम करते हुए बोलें -- "  मुझे माफ़ कर दो दोस्त !  मेरी वजह से तुम्हारी शादी नहीं हो पाई ..... मैं क्या करता ; उस वक़्त मेरा दिमाग खराब हो गया था ..... प्यार में मैं पूरी तरह अंधा हो गया .... मुझे घर जाकर तुम्हारी बहुत याद आती थी .... मैं खुद को रोक न सका । "  ऐसा कहकर वे लड़खड़ाने लगे ।


 मैं उनको संभालने के लिए आगे बढ़ा तो वे " ' मेरा बेस्ट फ्रेंड " ' कह मेरे गले लग गए और मैंने भी कोई आपत्ति नहीं जताई । उनके शरीर से शराब की दुर्गन्ध आ रही थी लेकिन दो दोस्तों के दिलों में फिर से फूल खिलाने का श्रेय इसी दुर्गन्ध को जाता है । जो बातें आदमी होश में रहकर नहीं कर सकता है , वही दिल की बातों को शराब के नशे में बिना अभिमान के बहुत अच्छे से व्यक्त कर सकता है । फिर उन्होंने मुझे अपने पैंट के खिसे से एक छोटी शराब की बोतल निकाल के मेरी ओर बढ़ाए .... मैं तुरंत उस बोतल को खाली करने में लग गया और दोस्ती के नशे में मदहोश हो गया ; इस शाम के बाद से मित्रता का नशा फिर कभी न उतरा । 


चार - पांच महीनों के बाद हम दोनों को मालूम हुआ की ईश्वरी के स्कूल की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है ; वह बैंक का लोन के किश्त भी नहीं चूकता कर पा रही है । हम दोनों ने मिलकर सारा ऋण एक बार में ही चूकता कर दिया । कब कोई भी एक - दूसरे से नाराज़ नहीं था  । हम तीनों एक - दूसरे की कमियों को सुधारने का मौका देते रहे ; आखिरकार भगवान ने मनुष्यों को अधूरा बना के ही भेजा है : कुछ न कुछ कमी रहती ही है इंसान में । 

जब मेरे सास - ससुर को पता चला कि मेरे में शादी करने की इच्छा जगी हुई है तो उन्होंने अपनी दूसरी बेटी का हाथ मेरे हाथ में देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया ।


विधानचंद्र चाचा  मुझे बताएं की मेरे सास - ससुर की तीव्र इच्छा है इस शादी को कराने की ; मेरे गांव में मेरा  पैतृक जमीन - जायदाद काफी थी और शहर में जहां मैं रह रहा था ; यहां की जमीन के दाम तो आसमान पहले ही छू चुके थे । मेरे ससुर को लगा कि उनकी बेटी इन सब संसाधनों का उपभोग करके बिल्कुल रानी की तरह रहेगी ; अगर कहीं मैं किसी और लड़की से ब्याह कर लिया तो सारे सुखों से उनकी बेटी वंचित रह जाएगी ।

 सभी ने मुझे अपना भरपूर प्रयत्न करके समझाया की मेरे सामने एक लंबी जिंदगी पड़ी है जिसे अकेले गुजरना बहुत ही मुश्किल है । आखिरकार मैंने हामी भर दी । 

आशुतोष बाबू और ईश्वरी का मिलना - जुलना काफी बढ़ने लगा ; आशुतोष बाबू उसके स्कूल के रख - रखाव में एक बेहतरीन सलाहकार की तरह जाने - अनजाने में काम करने लगे । डॉक्टर साहब ने अपनी पहुंच का बखूबी इस्तेमाल किया और अपने दिमाग का इस्तेमाल तो बहुत किए तथा जरूरत पड़ने पर अपना पैसा बहाने से भी नहीं कतराते । दोनों की मेहनत का नतीजा निकला कि छह महीनों के अंदर ही 
 यह प्राइवेट स्कूल आठवीं तक हो गया । जैसे - जैसे विद्यालय की वर्गों की संख्या बढ़ती गई , वैसे - वैसे ईश्वरी के हृदय में डॉक्टर साहब जगह बनाते गए । 

उन्होंने मुझे एक बार खुद भी बताया कि उनके दिल में अभी भी आशा बची हुई है ईश्वरी को पाने की । 

ये पूरी दुनिया आशाओं पर ही तो टिकी हुई है ; इधर तो सिर्फ दो जनों के बीच की बात थी । 

""  दिल में आशा की ज्योति अगर जल रही है तो नए भविष्य के जीवन में कभी भी कोई आश्चर्यजनक घटना घट सकती है !   "" 





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  1. Fantastic love story.... i read all your stories and pretty poetry.... all are awesome

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  2. Marvelous....I read All your stories....

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  3. Really nice story. It touch my heart ❣️

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