डूबता सूरज
Dedicated to all parents
I hope you will like this hindi story based on father's love... It's a sad story....this Hindi story will definitely make you emotional...
Thanks for visiting😊😊😊
There is also an emotional love story below after this heart touching story in Hindi.
सूरज के कड़कड़ाती धूप से तपती धरती बड़ी बेसब्री से बादलों के झूम - झूमकर बरसने का इंतजार कर रही थी। पोखर - तालाब सब सुख चुके थे। जब देखो तब ये भी आसमां की तरफ बादलों की घटा की राह में अपनी नजरें गड़ाए मिलतें थे। पेड़- पौधें भी सावन की बारिश में खुद को भिंगोने के लिए तत्पर थे।
हमारे गांव में नहर बनाने का काम बड़ी तेजी से हो रहा था। पिछले दो - तीन सालों से मॉनसून अपने नखरें दिखा रही थी। मैं अपने दोस्तों के साथ गांव के खेतों में ईधर - उधर भटक रहा था। पेड़ से कच्चे - कच्चे आमों को तोड़ नमक के साथ खाने का अपना ही आनंद है। हम बच्चों का गैंग आम के बागान की ओर मुड़ने लगा। इस गैंग को गांव के लोगों ने खटाई गैंग रख दिया था। हमलोगों को बागान की ओर जाते देख बनवारी बोल पड़े -- " फिर आ गए तुम सब ! आम को तुम सब पकने नहीं दोगे? पक जाए तो खाते रहना। "
मेरे झुंड में से उनके पास आवाज पहुंची -- " देखा चाचा ! आम को छोड़ देंगे पकने के लिए तो कहीं पकने के बाद कोई और तोड़ लिया तो.... हम सब इतना जोखिम नहीं उठा सकते हैं। चलिए , आप नहर खोदिए। आपसब तो बच्चा गैंग के पीछे पड़े रहते हैं ।"
बनवारी लगभग पचास - पचपन के होंगे लेकिन उनकी गरीबी ने उन्हें सत्तर का बना दिया था। ये दूसरे गांव से थे जो इस गांव से 30 किलोमीटर दूर था। उनके पास थोड़ी भी जमीन न थी सिर्फ दस धुर में बना झोपड़ी था और दस धुर में आंगन था जिसमें उनकी पत्नी और अठारह साल की एक कन्या अपने खाने के लिए सब्जियों की लताएं लगा दिया करते थे। गांव में सिर्फ तीन ही चीजें थी जिसको मैं बहुत ही चाहता था एक बनवारी चाचा, आम का बगीचा और कच्ची सड़क किनारे खड़ी सालों पुरानी एक पीपल तथा बर मिश्रित बरगद का पेड़।
बनवारी चाचा चेहरे से काले रंग के लेकिन दिल से बहुत नेक थे। उनको बच्चों से बहुत लगाव था। जब मैं पीपल के पेड़ नीचे हो रहे क्रिकेट , गिल्ली - डंडा और कंचे के खेल में हार जाता तो उनके पास चला जाता और उनसे ढेरों बातें करता। उनसे बात करके मुझे सुकून मिलता था क्योंकि वे मेरी गलतियों पर प्यार से समझाते थे। वे मेरी हर बात समझते थे और शायद मैं भी उनके दिल की बातों को समझता था तभी तो वो मुझे अपने घर और बचपन की ढेरों कहानियां सुनाते थे। ऐसा एक दिन भी न बीता होगा जिस दिन मैं उस पीपल की छांव में बैठा न था। कई पछियों को यह आश्रय प्रदान करता था। बरसात में जब जानवरों के लिए हरा चारा कम पड़ता तो इसके पत्तों को तोड़कर अपने दो गायों के लिए ले जाता। इसके मजबूत डाली से रस्सी बांध कर झूला बनाता। उस झूला पर झूलने का मजा हीरे - जवाहरात से भी ज्यादा खुशियां देता था।
एक दिन मुझे खेलने का मन न हुआ तो मैं बनवारी चाचा के पास जाकर बैठ गया। उस वक़्त वे नहर ही खोद रहे थे । मैं थोड़ा सोचते हुए बोला -- " आप इतना परिश्रम क्यूं करते हैं, चाचा? "
वे अपने कुदाल को रखते हुए बोले -- " अभी तुम छोटे हो, शाम ! बड़े होगे तो सब समझ में आ जाएगा, बेटा! क्या होती है जिंदगी ... अभी तो तुम जिंदगी के दूसरे पहलू से अनजान हो ... अभी सिर्फ खुशियां हैं तुम्हारी झोली में... न कोई चिंता ... न किसी प्रकार का दुख। " मुझे कुछ समझ न आया । मैं दुनियादारी के मामले में बहुत कमजोर था।
बनवारी चाचा को मेरा नाम " श्यामधरी " बुलाने में दिक्कत होती थी इसलिए वे मुझे " शाम " कहकर ही पुकारते थे।
वे अपने ललाट पर से पसीना पोंछते हुए बोले -- " क्या तुम चापाकल से पानी ले आओगे, शाम ? "
मैं लोटा ले दौड़ कर कुछ दूर खड़े मकान के पास गया और पानी लेने लगा तभी उस घर की नई - नवेली दुल्हन बाहर निकली और चिढ़ते हुए बोली -- " अब से यहां से किसी को पानी नहीं लेना है ... चापाकल तुम्हारे बाबूजी का है कि जब चाहो आ जाते हो? "
मैं भी जवाब दे बैठा -- " यह चापाकल सरकार लगाई है। आपका कैसे हो गया ? इसको बाउंड्री करके घेर लिए तो आपका हो गया। सरपंच को ई बात बताएंगे और आप पर केस भी करेंगे। " मैं समझता नहीं था कि कोट - कचहरी होता क्या है! कईयों के मुंह से सुना था जब वे गुस्सा में होते थे तो मैंने भी बोल दिया। पास में बैठी बुढ़िया दादी हंसते हुए बोली -- " क्या हमको भी जेल भेजोगे बबुआ ! मैं चुपचाप उनकी तरफ देखा। वह आगे बोलीं -- " यहीं से रोज पानी ले जाना , कोई दिक्कत नहीं है।" वैसे भी हमको पुलिस से डर लगता है और ऐसा कहकर जोर से हंस दी।
मैं लोटे में पानी भर वापस खेतों में बनवारी चाचा के पास पहुंचा। वे पानी पी पास के ताड़ के पेड़ के नीचे बैठ सुसताने लगे। वे कुछ मिनट के बाद मुझसे कहने लगे -- " अपने बेटी को देखने की बहुत इच्छा हो रही है ... न जाने पत्नी और बेटी कैसे होंगे ! "
मैं बीच में ही बोल पड़ा -- " कैसे होंगे क्या मतलब ! ठीक ही होंगे।"
वे मेरी तरफ शांत भाव से देखते हुए धीमी स्वर में बोले -- " तुम अक्सर पूछते थे न ... मैं अपने गांव पर्व में भी क्यूं नहीं जाता हूं। आज मैं तुमको सब बताऊंगा।" मैं पिछले दो सालों से अपने गांव नहीं गया हूं । मैं जो पैसे कमाता हूं उसमें से कुछ हिस्सा पोस्टकार्ड से घर भेजता हूं । वहां से चिठ्ठी आती रहती है और कुछ चिठ्ठी का जवाब भी लिख कर भेज देता हूं। चिठ्ठी में अक्सर मेरी पत्नी गहनों और पैसों के बारे में पूछती है। मैं घर से निकलते वक़्त बोला था कि मैं वापस तभी लौटूंगा जब मैं अपनी फूल सी बेटी की शादी के लिए साठ हजार जमा कर लूंगा और थोड़े गहनें भी बना लूंगा। एक अच्छा सा लड़का है उसी गांव में जो मेरी बेटी से शादी करने के लिए तैयार है। वहीं ये सब की मांग कर रहा है। अगर ये सब मैं इंतजाम न कर पाया तो मेरी इकलौता संतान की शादी कैसे होगी और ऐसा कहकर उदास हो बिल्कुल चुप हो गए।
मुझे ऐसा लगा जैसे आसपास की बहती हवा जैसे कुछ पल के लिए रुक सी गई हो। मेरे हृदय में ऐसे सांसारिक भाव भरते जा रहे थे जिससे मुझे आज तक वंचित रखा गया था। एक जवान बेटी के पिता को कितना दुखों का सामना करना पड़ता है , आज मैं जान चुका था। इस शांत परिवेश में मुझे उनकी सिसकियों की आवाजें सुनाई पड़ रही थी। वे अपने चेहरे के भाव को छिपा रहे थे लेकिन उनकी आंखों की नमी सारे दर्द बयां कर रहे थे। तभी नहर का ठेकेदार के पुकारने पर चाचा चले गए लेकिन मैं वही पर कुछ देर तक बैठा कुछ सोचता रह गया। मेरा गांव समृद्ध था। उनके गांव में रोजी - रोटी और कमाई के बहुत कम अवसरों ने उन्हें इस गांव में खींच लाई थी। वे यहां बरसात में धान की रोपनी और कवाड़ना , सर्दियों में कईयों के खेत जोतकर रबी फसलों की बुआई- कटाई और गर्मियों में आम के पेड़ों की दिन - रात रखवाली ऐसी ही कामों ने उन्हें दो सालों तक इसी गांव में उलझाए रखा था।
फुरसत न मिलती दिन में
उनको अपने काम से।
बहुत डरते अपनी तन्हाई से
जो शुरू होती हर दिन शाम से।
रातों में सताता एक कर्तव्य
कैसे भूल जाते करना है कन्या दान ।
किसी को एकड़ दिए किसी को न मिला एक धुर
हे भगवान ! तू तो सच में है महान।
कई महलों से न निकले सालों
फिर भी चल जाए उनका काम।
सोच में पड़ जाता हूं अक्सर मैं
पता नहीं बनवारी चाचा के दुखों का कब मिलेगा दाम।
गर्मी की छुट्टियों में मैं अपने नानी घर गया। बड़े दिन से उनको चाहत थी कि वे मुझसे मिलें। शहरों के छोटे - छोटे बंद कमरे जिसमें ताजी हवा न आती थी, मुझे कांट खाने को दौड़ते थे। संकरी गलियों में शाम के समय लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी। गांव में इधर - उधर चहलकदमी करने की जो स्वतंत्रता थी, वह शहर में बिल्कुल नहीं थी। पेड़ - पौधों की सांसें घूंट रही थी। पेड़ इतने कम की ताजी हवा की कोई कल्पना नहीं हो सकती थी। छतों पर कुछ तुलसी , एलोवेरा जैसे पौधें अपनी जिंदगी छोटे - छोटे गमलों में अपने जीवन के अवसर तलाश रहे थे। शाम में मेरे
नाना मुझे घुमाने ले गए। सड़को पर के प्रदुषण ने मेरा जीना बेहाल करने लगे। दो कदम चलो नहीं की पीछे से वाहन शोर मचाते हुए रास्ता देने के लिए गुजरते।
मुझे अपने गांव की धरती की खुशबू याद आने लगी। बड़ी मुश्किल से मैंने अपने तीन दिन बिताए। अपने गांव के मनचले यारों की बातें और बनवारी चाचा की यादें रह - रहकर मुझे सताती। शहर वालों में वो प्यार और मोहब्बत नहीं दिखती जो गांव वालों में होती है।
सब्जी लेने जाओ तो सब्जीवाला डंडी मार ठगे।अगर कोई आदमी अपना दिमाग इस छल - कपट से भरे शहर में न लगाए तो उसका जीना मुश्किल हो जाए।
क्या शहर के हैं तौर - तरीके।
बोलने के हैं बड़े अदब सलीके।
यहां सब हैं
सिर्फ अपने - अपने घर के।
अपने पड़ोसी को जानते नहीं
बोलते हैं हम तो हैं इस शहर के।
मैं रात में कोई डरावना सपना देख डर गया। मुझे समझ में कुछ आया नहीं की क्या हुआ। फिर सोने का बहुत प्रयास किया लेकिन नींद न अाई। मुझे लगा जैसे मेरे गांव का कोई चाहने वाला मुझे पुकार रहा है। मेरे दिल की धड़कने की गति अचानक बढ़ गई। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई मुझे अपने अंतिम पलों में मेरी उपस्थिति चाहता हो। अगले दिन सुबह को मैं अपने गांव वापस लौटने लगा। मैं तो खुश था लेकिन मैं जब अपने गांव में प्रवेश किया तभी मेरे चेहरे का रंग फिका पड़ गया। नदी के किनारे बनवारी चाचा का अंतिम संस्कार हो रहा था। उनकी पत्नी और बेटी भी आए हुए थे। मेरा दिल बहुत दुखी हुआ
की मैं उनके अंतिम क्षणों में उनके पास न था; एक अंतिम बार भी उनको देख न सका। किसी ने बताया कि उनकी मौत लू लगने की वजह से हुई है; बनवारी चाचा उस दिन कड़कड़ाती धूप में ही घंटों काम कर रहे थे और रात में बहुत तेज बुखार आया और सुबह में उन्होंने अपनी अंतिम सांसे गिनी।
उन्होंने अपने झोपड़ी के एक बक्से में एक कागज का टुकड़ा और तीस हजार पैसे छोड़ गए थे। वह कागज उनकी अंतिम इच्छा को समेटे था -----
" प्रिय सुषमा! तुम्हें भी बहुत इच्छा होती होगी कि बाकी महिलाओं की तरह मेरे कंधे भी गहनों से लदे हो.... बदन पर हर दिन नई चमचमाती सारी हो ...
फिर भी तुम कभी भी मुझसे कोई शिकायत न रही...
तुमने अपनी सारी उभरती चाहतों का गला घोंटा सिर्फ मेरे कारण।
लेकिन मुझे इसका बहुत अफ़सोस है कि मैं तुम्हारी
तमन्नाओं को अंतिम मंजिल तक न पहुंचा पाया। शायद अगले जनम में तुम्हारी आकांक्षाओं को जरूर पूरा करूंगा। तुम जैसी जीवनसंगिनी पाकर मैं धन्य हो गया... अब तुम्हारे हाथों है हमारी बेटी का कन्या दान...हमारी बेटी बहुत सुशील और रूपवान है, उसे कोई अच्छा वर अवश्य मिल जाएगा... मेरी दो सालों की मेहनत का फल हैं ये तीस हजार रूपए।
हमेशा खुश रहना मेरी बेटी रूपमती। भगवान से जरूर विनती करूंगा की तुम दोनों को ढेर सारी खुशियां दे जो आज तक मैं तुम्हें नहीं दे पाया।
उनकी पत्नी सुषमा से पता चला कि जिस लड़के से रूपमती का रिश्ता होना था वह बनवारी चाचा के गांव वापस आने का इंतजार न कर सका और किसी दूसरी लड़की से शादी कर ली।
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HI ! I AM ANKAJ KUMAR FROM BIHAR, INDIA . THERE ARE A LOT OF PROBLEM S IN LOCKDOWN TO CONCENTRATE ON WRITING .
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This second one is love story
School vala मोहब्बत :::::::::::::
मेरी चाहत थी कि मैं नौवीं और दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाऊं लेकिन उसके लिए स्कूल B.Ed डिग्री की मांग कर रहे थे और मैं ठहरा सिर्फ ग्रेजुएट । 😔😔😔
खैर, मैं स्कूल पहुंचा और सीधे प्रिंसिपल ऑफिस में जाकर मुस्कुराते हुए शुभ प्रभात बोला ।
मुझे समझ में नहीं आता था ये लड़कियां इतना हंसती क्यूं हैं ? छोटी तुच्छ बातों पर खिलखिला उठती हैं ? जब मैं कमरे में आसपास अपनी नजरें दौड़ाया तो मालूम हुआ एक झुंड में छह मिस और चार मैडम एक लय में जोर - जोर से हंसे जा रहीं हैं तथा पांच अधेड़ सर आपस में कुछ गंभीर बातें कर रहे हैं ; इन पांचों के चेहरे पर सिर्फ चिंता की लकीरें ही दिख रही थी , ऐसा मानो जैसे पूरे देश की अर्थव्यवस्था का भार इन्हीं पांचों के कंधे पर हो । उन महिलाओं के चेहरे की हंसी देख मेरा मन भी खुशी के गगन में पंख लगा एक पक्षी की तरह उड़ने लगा लेकिन फिर जब पास बैठे पांचों पुरुषों पर पड़ती , वही खुशी का पक्षी धड़ाम से जमीन पड़ गिरने लगता ।
😊😊😊
उधर से आवाज आई --- " हैलो ! कौन ?.... हैलो ! कौन ? हेलो ! .... कोई बोलता क्यूं नहीं ? "
मैं भी आपको बहुत याद करता हूं
याद आने पर आपकी तस्वीर देखा करता हूं
---
" अब बातचीत नहीं हो रहा है , क्या ? "
मैं उनके बोलने के ढंग से समझ गया वे ऋतु के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन न समझने का नाटक करते हुए बोला " आप क्या बोल रहे हैं , मैं समझा नहीं ? "
अच्छा हुआ इस दिन सिर्फ आशुतोष सर ही मेरे बगल में बैठे हुए थे , बाकी सर खाना खत्म करने के बाद हाथ धोने गए हुए थे ।
वे चुटकी लेते हुए कहने लगे -- " हम सब समझते हैं , तुम्हारे और ऋतु के बीच क्या पक रहा है ! ..... कभी हम भी तुम्हारी उम्र के थे ...... कुछ दिन पहले जो तुम दोनों चुम्बन कर रहे थे , वह भी देख लिए थे । "
मैं उनको आश्चर्य भरी निगाहों से देखने लगा तो वे बोलने लगे --- " अरे ! प्रिंसिपल भेजे थे हमको देखने के लिए की ऊपर ताला लगा की नहीं !! " समझे !!!
" वैसे भी प्यार में कुछ सेकंड के चुम्बन से क्या होता है ! ...... कभी जाओ उसे लेकर चिड़ियाघर ...... वहां जंगल जैसा माहौल है , पेड़ों के नीचे प्रेमी युगल बाहों में बाहें डाल दिल की बातें करते हुए एक - दूसरे के साथ कीमती वक़्त बिताते हैं ..... ।। "
अगले दिन रविवार था तो मैंने तुरंत उसे जू जाने के लिए छुट्टी वक़्त बोल दिया और वह नहीं मानी लेकिन दुबारा मनाने पर वह सहमत हो गई ।
चिड़ियाघर जाते वक़्त मैंने अपना बैग खाने की चीजों से भर लिया । हम दोनों एक - दूसरे की हाथ में हाथ डाल लगभग एक घंटे घूमते रहे और फिर जू के घने पेड़ों के बीच छांव में बैठ गए ; यहां पर और भी प्रेमी जोड़े थे , जू का यह भाग जेल के सभी जानवरों से बहुत दूर था इसीलिए प्रेमालाप करने का यह स्थान बन चुका था ।
हम दोनों केक खाए और फिर मैं जमीन पर लेट गया ; वह पेड़ से अड़ कर बैठी और अपने गोद में रखे मेरे सिर से बालों को अपनी अंगुलियों से सहलाती हुई बातचीत करने लगी । कई घंटे साथ गुजारने का यह हम दोनों का पहला अवसर था इसलिए इसे गवाना नहीं चाहते थे । वह अपने परिवार और सहेलियों के बारे में बताती गई और मैं सुनता रहा । मुझे तो बस उसके बोलने का टोन बहुत भा रहा था ; चाहे वह कुछ भी बोलती जाए , मुझे तो उसके बातें सुनना ही अच्छा लगता था । कुछ देर बाद मैं भी उठ कर बैठ गया । आसपास हरे - भरे पेड़ - पौधे थे , कुछ जंगली सुन्दर फूल भी उगे हुए थे और सूरज के प्रकाश की किरण पेड़ के पत्तों के बीच से होकर धरती पर पड़ रही थी ; आसपास शांति से भरे नजारे हमें मंत्रमुग्ध कर रहे थे । जी कर रहा था बस यूं ही बाहों में बाहें डाल बैठ बात करते रहें ।
हम दोनों की नजरें एक प्रेमी युगल पर जा टिकी जो एक दूसरे को बाहों में भरे हुए थे और फिर चुम्बन करने लगे । उन दोनों के प्यार को देखकर ऋतु मेरे आंखों में टकटकी निगाहों से देखने लगी और कुछ देर बाद मेरे होठों पर अपना होंठ रख दी और जो अभी - अभी देखी थी , उस कार्य में लिप्त हो गई ।
उसके होंठ जब मेरे होंठ से सटे तो मेरी सांसें बहुत तेज़ हो गई और दिल की धड़कनें अप्रत्याशित दर से बढ़ने लगी ; चेहरे पर पसीना आने लगा , इस तरह के अनुभव मुझे मेरी पूरी जिंदगी में नहीं हुए थे । हम दोनों बस एक - दूसरे में खो गए । जब पेड़ पर से कुछ पक्षी झुंड बना के फड़फड़ाते हुए उड़ने लगे तो हम दोनों का ध्यान भंग हुआ । बातों - बातों में कब दो घंटे बीत गए , पता ही न चला ।
इस दिन के लंबे वार्तालाप के बाद से हम दोनों एक - दूसरे को अच्छे ढंग से समझने लगे । अब बातचीत काफी बढ़ गई ; आधी रातों में वॉट्सएप पर टेक्स्ट मैसेज जारी रहता । अगले दो महीने में हम दोनों साथ - साथ कई जगह घूमने गए सिनेमा हॉल और पार्क जिसमें सबसे सामान्य जगह था । अब एक दिन भी बात न करते तो चैन न आता ।
एक दिन जब स्कूल से घर गया तो सभी परिवार के लोग खुश थे । पूछने पर मां ने बताया की मेरा एयरफोर्स में जॉब लग गया है , कुछ घंटे पहले ही कॉल लेटर आया है । अब मुझे याद आया कि मैं तो एयरफोर्स के X / Y ग्रुप की परीक्षा दिया था ।
मैं बहुत खुश हुआ कि मेरा बचपन का सपना रक्षा क्षेत्र में जाकर देश की सेवा करने का पूरा हो गया लेकिन फिर ऋतु से दूर जाने के बारे में सोच कर उदास हो गया ।
अब मैं ऋतु को कैसे बतलाऊंगा की मुझे कुछ दिन बाद ही आठ महीनों की ट्रेनिंग के लिए कर्नाटक जाना पड़ेगा । मेरे खून में उससे जुदाई के दर्द का एहसास पूरे बदन में फैल गया ; आखिरकार मैं पूरे आठ महीने उसे बिना देखे कैसे रहूंगा । कई घंटे अब बात भी नहीं हो पाएगी ; ट्रेनिंग कैंप में पहले आठ महीनों की ट्रेनिंग के समय में कोई फोन ले जाने की अनुमति नहीं थी ।
मैं उसे शांति से सब कुछ बतलाना चाहता था इसलिए एक दिन रविवार को ही उसे अपने दोस्त के घर पर ले गया । जब मैंने पूरी बात बतलाई तो उसके आंखों से मोतियों की बरसात होने लगी और वह मुझसे लिपट गई । उसके आंसुओं को पोछते हुए बोला --- " देखो जानू ! ऐसे रोओ मत , नहीं तो मैं देश सेवा करने कैसे जाऊंगा .... तुम्हारे आंसू मुझे कमजोर बना रहे हैं ..... एक एयरफोर्स के जवान की गर्लफ्रेंड कभी कमजोर नहीं हो सकती है । "
वह रोना बंद की और मुझे देखने लगी ।
मैं आगे कहने लगा --- " आठ महीनों बाद आऊंगा तो तुम्हारे पिताजी से हमारे शादी के बारे में बात कर लूंगा ..... वे मान जाएंगे , मेरी जॉब भी तो लग गई है न । "
वह मेरे गालों को चूमने लगी और फिर मेरे सीने से अपना सिर लगा मेरे दिल की धड़कनों को सुनने लगी । ऋतु के मोहब्बत को देखकर मेरे आंखों से भी कुछ आंसू गिर पड़े और उसे अपने बाहों में थामते हुए बोला ---- " जानू ! तुम मेरा इंतजार करना .... मैं वापस आऊंगा तुम्हें लेने ..... तुम मेरा इंतजार करोगी न ? बोलो ? "
वो सिर्फ हां बोली कि उसका गला जुदाई के अनचाहे भावनाओं के कारण बैठ गया ।
अगले दिन की फ्लाइट पकड़कर मैं एयरफोर्स कैंप पर पहुंच गया ; रास्ते भर सिर्फ अपने जीवनसाथी के बारे में ही सोचता रहा । यहां बहुत ही कड़े नियम - कानून थे ; शाम में रोज जूते साफ कर पोलिश करना , दिन में कपड़े चमकाना , दाढ़ी - मूंछ बनाना ढेर तरह के काम थे । सुबह - सुबह कई किलोमीटर दौड़ कर तो मैं बहुत थक जाता था ; कुछ दिन तो मुझे लगा जैसे किसी जेल में हूं , सारी स्वतंत्रता छीन ली गई । खाने का समय निर्धारित था ; शुरू में तीन - चार बार मैं निर्धारित समय पर कैंटीन नहीं गया तो मुझे शाम में भूखे रहना पड़ा ।
एक बार तो मैं गंदे जूते पहन ट्रेनिंग ग्राउंड में चला गया ; मुझे बहुत डांट पड़ी और मुझे बार - बार दिन में रिपोर्टिंग करने डेस्क पर जाना पड़ता ; यह एक तरह का मानसिक टॉर्चर था ताकि प्रशिक्षु फिर से ऐसी हरकत दोबारा न करें । रात में जैसे ही बिस्तर पर लेटता , कुछ सेकंड में ही नींद के आगोश में डूब जाता और सुबह ही उठता और फिर से वही कठिन प्रशिक्षण चालू हो जाता । बहुत ही व्यस्तता वाला जीवन था ; और तो और टेक्निकल ग्रुप में होने के कारण कई घंटो की पढ़ाई भी करनी पड़ती थी ।
एक महीने तो ऋतु और परिवार वालों की याद बहुत आई लेकिन फिर धीरे - धीरे उस माहौल में ढलने लगा ; दूसरे राज्यों से आए नए - नए दोस्त बने तथा बातचीत और हंसी - मजाक होने लगी । दोपहर में कभी - कभी अपनी मां को फोन करता था । फोन बूथ पर एक कॉल करने के लिए लंबा लाइन में लगना पड़ता था तब जाके कुछ मिनट बात हो पाती थी । भीड़ इतनी की फोन बूथ में घुसते ही दूसरा लड़का निकलने के लिए बोलने लगता ।
एक दिन CDS का एग्जाम देने के लिए मुझे कैंप से बाहर निकलने का अवसर मिला । परीक्षा केंद्र कैंप से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर था ; बस में बैठे - बैठे सोच रहा था कि भाग कर वापस अपने शहर चला जाऊं और फिर ऋतु को अपने सीने से लगा लूं लेकिन देश सेवा सर्वोपरि है । प्यार बहुत ही कीमती है लेकिन अगर किसी देशभक्त रक्षक को मातृभूमि और प्यार में से किसी एक को चुनना पड़े तो वह बेशक अपने देश की मिट्टी को ही चुनेगा ।
कभी - कभी कैंप के टेलीफोन बूथ पर ऋतु से कुछ मिनट बात हो जाती थी लेकिन कैंप में आने के तीन महीने बाद उसका मोबाइल हमेशा ऑफ ही आने लगा । किसी प्रकार अपना ट्रेनिंग के आठ महीने गुजार कर वापस फ्लाइट से आने लगा ; सोच रहा था उसके सामने वर्दी - टोपी में जाऊं या बस नॉर्मल कपड़ों में ; कहीं वो मेरे छोटे - छोटे बालों को देखकर हंस दी तो ..... ; इसी तरह के विचारों से मेरा दिमाग रास्ते भार भरे हुए थे ।
घर पहुंचकर सीधे मैं अपने स्कूल गया ; अत्यन्त असीम आनंद से मेरा हृदय भरा हुआ था । आशुतोष सर से मिला तो उन्होंने मुझे बताया कि ऋतु की शादी मेरे जाने के लगभग पांच महीने पहले ही हो गई । ये सुनकर तो मेरे दिल को धक्का लगा ; ऐसा लग जैसे मेरे शरीर से आत्मा निकल गई और मैं बेजान हो गया हूं । मेरे खड़ा - खड़ा लड़खड़ाने लगा , आशुतोष सर मुझे संभालते हुए पास की कुर्सी पर बैठा दिए ।
वे मुझे एक चिठ्ठी देते हुए बोले -- " यह तुम्हारे लिए वो छोड़ के गई है .....मुझे यह चिठ्ठी देते हुए बोली थी --" यह कागच का कोई टुकड़ा नहीं बल्कि मेरा दिल हैं "
वह शादी में बहुत नाखुश दिख रही थी ।
मैं लिफाफा खोल पढ़ने लगा --
साहिल धवन ! मैं तुमसे बहुत ही प्यार करती हूं ।
जो पल मैंने तुम्हारे साथ जिया , वो मेरी जिंदगी के सुनहरे पल थे ; इनको मैं कभी भुला नहीं सकती हूं । अगर तुम्हारी यादें जिस दिन मेरे दिलो - दिमाग से निकल जाएगी तो मेरे अंदर के प्राण को मेरे शरीर से बाहर निकलने में एक सेकंड भी नहीं लगेंगे ।
ये कभी अपने ख्याल में मत लाना की मैं तुम्हें धोखा दे जा रही हूं । तुम्हारे जाने के बाद मैंने अपने ख्वाबों में तुम्हारे साथ ही अपना सारा पल बिताई हूं .... सिर्फ मैं और तुम । एक दिन स्कूल से घर अाई तो देखी लड़के वाले मुझे देखने आए हैं ; लड़के के पिताजी दिल्ली में रहते हैं , मेरे पापा के बचपन के मित्र हैं । मैंने साफ़ - साफ़ शादी करने से इंकार कर दिया ; मां कारण पूछी तो तुम्हारे बारे में सब बता दी ।
उस दिन के बाद से मेरा घर से निकलना बंद हो गया । कुछ दिन बाद मां मेरी शादी तुमसे कराने के लिए मान गई और तुमसे मिलना चाहतीं थीं लेकिन तुम्हें आने की इजाजत थी ही नहीं तो कैसे आते ; वैसे भी जब मैंने बताया कि तुम किसी दूसरी जाति के हो तो पिताजी आग बबूला हो गए और अपने रूढ़िवादी विचारों का बोझ मेरे सिर पर डाल मुझे एक अनजान लड़के के साथ मेरा हाथ सौंप अपने घर से रवाना करने की ठान लिए ।
तुम्हारी यादें मुझे जिंदगी भर बहुत तड़पाएगी ।
मुझे भूल जाना और हां ! अपने देश की सेवा जी - जान लगाकर करना ।
ढेर सारा प्यार मिले इस जमाने का तुम्हें ।
Love you so much Sahil Dhawan !
❤️❤️❤️💞🌹💞❤️❤️❤️
उसके लिखे प्यार के शब्दों को पढ़कर मेरे आंखों के आंसू बहने की इजाजत मांगे बिना नदी के धारा की तरह बहने लगें । समय हर जख्म को भर देता है इसी ख्याल से अपना कदमों को आगे बढ़ाया और चिठ्ठी को अपने दिल से लगा जाने लगा ।
पांच - छह दिन तो परिवार से सदस्यों और दोस्तों से साथ बीत गए । मुझे फिर से आठ महीनों की ट्रेनिंग के लिए जाना था ; यह प्रशिक्षण का दूसरा चरण था इसलिए परिवार वाले मेरे साथ अच्छे से समय बिताना चाहते थे । मां ने लालकिला और इंडिया गेट देखने की इच्छा जताई तो हम सभी दो दिन बाद दिल्ली के लिए रवाना हो गए ।
जब किसी का सपना पूरा होता है न तो उसे एक अजीब तरह का अनुभव होता है । मेरी मां जब लालकिले को देखी तो उन्हें चक्कर आ गया और उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनके बचपन का स्वपन पूरा हो गया है जिसके बारे में सिर्फ किताबों में ही पढ़ती थीं । हम सब जंतर मंतर और लोटस टेंपल भी गए । नए - नए अनुभवों से परिचय होने के कारण मेरा भारी दिल हल्का होने लगा ।
एक शाम मैं अपने होटल से निकल बाहर सड़क पर अकेला ही टहल रहा था ; तभी देखा सड़क के दूसरे तरफ़ से ऋतु आ रही है ; वह साड़ी में और भी सुन्दर लग रही थी , एक पल के लिए मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वह ऋतु है लेकिन ध्यान से देखने पर मालूम हो गया । मैं उसके घर का पता लगाना चाहता था इसलिए उसको टोका नहीं ।
मैं सावधानीपूर्वक उसका पीछा करने लगा ; वह एक अपार्टमेंट के नौवें तल्ले पर जाकर एक फ्लैट में जा घुसी । मेरा दिल खुश हुआ , यह जानकर कि उसका पति अमीर है और वह खुश है । कुछ देर बाद ढेर सारे लड़के - लड़कियों का आगमन होने लगा ; सब उसी फ्लैट में घुस रहे थे जिसमें वह गई थी । मैं तो अचंभित हो गया , आखिर बात क्या है । उन लोगों के साथ मैं भी अंदर चला गया तो देखा सामने वह अपने कपड़े उतार एक स्पेशल पोज में बैठी हुई है और लड़के - लड़कियां पीछे और दो पुरुष आगे बैठ बड़े - बड़े कैनवास पर उसके नंगे बदन को देख पेंटिंग बना रहे हैं ।
मुझे वहां का एक स्टाफ देख लिया तो मैंने उसे बताया कि मैं उसका पति हूं ; वह स्टाफ बोलने लगा --- " आप गलत मत समझिए .... यहां कोई भी गलत काम नहीं होता है ..... यहां art college के छात्र शाम में आकर पेंटिंग का ट्यूशन लेते हैं ..... आपकी बीबी को पोज में बैठना या खड़ा होना पड़ता है और सभी देख कर पेंटिंग बनाते हैं , बदले में आपकी बीबी को पैसे मिलते हैं । "
जब एक घंटे के बाद वह मुझे केबिन में बैठा देखी तो वह चौंक गई । हम दोनों बाहर निकल एक रेस्टोरेंट में भोजन करने चले गए । वह उदास हो मुझे बताने लगी --- " " शादी के समय मेरे पति की नई - नई एक IT
कंपनी में नौकरी लगी थी लेकिन दो महीने बाद ही उन्होंने कुछ और कर्मचारियों के साथ मिलकर कोई छोटा - मोटा घोटाला कर दिया तो कंपनी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया ...... दहेज में पिताजी ने दस लाख दिए लेकिन हमें बाद में पता चला कि ससुर के सिर पर भारी कर्ज था तो सारा पैसा उसी में चला गया ..... दिल्ली का घर बेच सास - ससुर गांव चले गए और हम दोनों पति - पत्नी को यही छोड़ गए । " "
वेटर के आने पर वह चुप हो गई । मैंने ऑर्डर दिया और ऋतु से बोला --- " तब तुम बिहार माता - पिता के पास चले जाओ या फिर अपने माता - पिता से मदद क्यूं नहीं मांगती ? "
वह रोते हुए कहने लगी -- " " अभी मेरे दो बहनों की शादी होनी बाकी है ..... वे दहेज के लिए एक - एक करके पैसे इकट्ठा कर रहे हैं ... मैं उनपर बोझ नहीं बनना चाहती हूं । " "
मैं उसके दाईं हथेली पर अपना हाथ रख कर बोलने लगा --- " ' तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद कर दूं ..... यहां तो मुझे कोई पहचानता नहीं है लेकिन अगर तुम पटना आ जाओ तो सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दूंगा .... ढेर सारे लोगों की मेरी पहचान कब काम आएगी ...... " '
वह मेरे हाथ पर से अपना हाथ हटाते हुए बोली --- " " नहीं साहिल , मैं तुमसे मदद नहीं ले सकती ..... मेरे पति बहुत ही शकी मिजाज के हैं .... अगर उन्हें पता चल गया कि हम दोनों कभी एक दूसरे के थे .... वो तो मुझे जान से मार देंगे । " "
" ' तब तुम क्या करोगी , ऐसे ही नग्न हो सभी के सामने बैठते रहोगी ?? बोलो ? " ' मैं चिढ़ते हुए बोला
" " मुझे अपने हाल पर छोड़ दो , साहिल ..... जब किस्मत ने मुझे शादी के बंधन में बांध दिया है तो उसके साथ जिंदगी भर निभानी ही है , चाहे किसी भी तरह जिए ..... बस जीते जाना है .... बस जीते जाना है । " "
" ' तुम्हारे पति कोई दूसरा काम क्यूं नहीं करते ? " ' मैं उत्सुकतावश पूछ दिया ।
" " घोटाला करने के कारण उनको पांच महीनों की जेल तो हुई ही और उन पर जुर्माना भी ठोका गया .... जेल से घर आने के बाद नकारात्मक मनोदशा हो गई है ... सिर्फ शराब के नशे में ही डूबे रहते हैं .... जब एक बार बेईमानी का कलंक लगता है न तो उसको मिटने में वर्षों लग जाते हैं । " "
अब रात होने लगी थी इसलिए वह अपने घर जाने की जिद करने लगी । हम दोनों साथ - साथ सड़क के किनारे चलने लगे । मैं उससे कुछ बोल ही रहा था कि अचानक वह तेज चलती मार्शल वाहन के सामने दौड़ते हुए आ गई ; ये सब इतना जल्दी हुआ की सब सपना जैसा मालूम पड़ा । वो खून से लथपथ सड़क पर पड़े हुए मुझे देखते रही और मेरे पास जाने पर लड़खड़ाती ज़बान से love you कह अपनी अंतिम सांसे ली।
मैं फिर से अपनी मातृभूमि की सेवा करने के प्रशिक्षण के लिए फिर से बैंगलोर चला गया । अक्सर सोच में पड़ जाता हूं ---- आखिर भगवान किसी की झोली को सिर्फ दर्द ही दर्द से कैसे भर सकता है ..... रब का दिल पत्थर जितना कठोर नहीं हो सकता , बिल्कुल नहीं ???
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एक तो मुश्किल से वह गांव से शहर में पढ़ने आया था लेकिन शहर की आवो - हवा से उसका जीना दुर्भर हो गया था ; एक तो गरीबी सता रही थी और दूसरी शहर के चोर ।
दोनों अमीर शहजादे बारी - बारी से सभी सदस्यों का नाम , काम , पता ये सब पूछने में बूढ़े को उलझा लिए और उधर धीरे से खिसककर बाकी दो कमरे में घुस गए ।
रबिर की नजर जब उस लड़की के मासूम चेहरे पर पड़ी तो वह भौचक्का हो बस उसके चेहरे को देखता ही रह गया ; वह उन दोनों को गाली दिए जा रही थी लेकिन रबिर के कानों को उस लड़की की बातें तो संगीत सी मालूम पड़ रही थी ।
डॉ० सीमा कुमारी , Psychoanalyst
Thanks
इन महीनों में न जाने कितनी बार दोनों साथ खाना खाए और साथ घूमे भी । सीमा रबिर की ईमानदारी और लगन के साथ काम करने की आदत से बहुत ही प्रभावित थी ।
रबिर को रातों में तन्हाई घेरने लगती और कमरे की दीवारों से सिर्फ सीमा का नाम ही निकल पड़ता । रबिर की जो ख्वाहिशें वास्तविक जगत में पूरी न होती , उसे वह अपने कल्पनाओं में पूरा करने लगा।
इसी तरह कई रातें रबिर की चांद में सीमा का चेहरा देखते हुए बिता ।
सीमा अवसाद का शिकार हो गई ; वह मनोचिकित्सक बन हजारों लोगों का डिप्रेशन दूर कर चुकी थी लेकिन खुद के दुखों और तन्हाई पर उसका खुद का नियंत्रण न रहा । उसकी इस हालत को देखकर उसके पिताजी उसकी शादी करने की तैयारी करने लगे । मां के द्वारा अपनी शादी की रजामंदी के लिए पूछने पर सीमा इसे भाग्य के विधाता की मर्जी समझ अपनी शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर ली ।
अपने प्रेमी के मृत घोषित करने के दस दिनों के बाद ही सीमा अपनी आंखों में आसूं और दिल में पुराना प्यार लिए शादी के लिए सजने - संवरने लगी ।
रबिर ने आंखें खोली तो देखा वह एक अस्पताल में भर्ती है और आस पास अनजान चेहरे लिए अंकल - आंटी बहुत खुश हो खड़े हैं ।
रबिर घबराते हुए चिल्लाने लगा -- " मैं कहां हूं ? मेरे साथ क्या हुआ था , कोई बताएगा मुझे और आप लोग कौन हैं ......?? " उसके मुंह से एक ही सांस में बेचैन ही ढेरों सवाल निकल पड़े ।
पास खड़े अंकल सारी कहानी बयां करने लगें --- " देखो बेटा! तुम हॉस्पिटल में हो ....ICU में तुम्हारा दस दिनों से इलाज चल रहा है ; आज शाम जाके तुमने अपनी आंखें खोली है ; दस दिन बाद ! .... जब मैं गंगा नदी में नहा रहा था तब तुम बहते - बहते मेरे पैरों के पास आ लगे .... अच्छा हुआ कि मैं एक डॉक्टर था , मैंने तुरंत तुम्हारी सांसें जांची तो तुम जिंदा थे और भगवान की मर्जी से तुम अस्पताल पहुंच गए । "
रबिर के दिल - दिमाग में सीमा के यादों की बारात आने लगी ; वह बेचैन होकर बेड पर से उठने लगा और उठ भी गया ; अपने प्यार से मिलने की चाह ने उसके शरीर में जान ला दी थी ।
सभी रबिर को रोकने लगे लेकिन वह बार - बार सिर्फ सीमा - सीमा ही पुकारता रहा और उससे मिलने की जिद करता रहा । उसकी बुरी हालात को देख अंकल उसे अपने कार में बैठा सीमा के घर ले जाने लगे लेकिन पहुंच कर उन दोनों को पड़ोसी से पता चला कि सीमा की शादी एक मैरिज हॉल में होने वाली है ।
ये खबर सुन रबिर के हृदय का कोना - कोना दिल टूटने के दुख से भर गया । अब रबिर का दिल जोर - जोर से धड़कने लगा और दिल की बेचैनी सातवें आसमान पर पहुंच गया । जैसे - जैसे अंकल ने कार की गति तेज की , वैसे - वैसे घबराहट में रबिर की सांसों की गति भी बढ़ती गई । जब दोनों मैरिज हॉल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सीमा पहले ही किसी और की हो चुकी है ।
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Dedicated to all parents
I hope you will like this hindi story based on father's love... It's a sad story....this Hindi story will definitely make you emotional...
Thanks for visiting😊😊😊
There is also an emotional love story below after this heart touching story in Hindi.
Story in hindi |
सूरज के कड़कड़ाती धूप से तपती धरती बड़ी बेसब्री से बादलों के झूम - झूमकर बरसने का इंतजार कर रही थी। पोखर - तालाब सब सुख चुके थे। जब देखो तब ये भी आसमां की तरफ बादलों की घटा की राह में अपनी नजरें गड़ाए मिलतें थे। पेड़- पौधें भी सावन की बारिश में खुद को भिंगोने के लिए तत्पर थे।
हमारे गांव में नहर बनाने का काम बड़ी तेजी से हो रहा था। पिछले दो - तीन सालों से मॉनसून अपने नखरें दिखा रही थी। मैं अपने दोस्तों के साथ गांव के खेतों में ईधर - उधर भटक रहा था। पेड़ से कच्चे - कच्चे आमों को तोड़ नमक के साथ खाने का अपना ही आनंद है। हम बच्चों का गैंग आम के बागान की ओर मुड़ने लगा। इस गैंग को गांव के लोगों ने खटाई गैंग रख दिया था। हमलोगों को बागान की ओर जाते देख बनवारी बोल पड़े -- " फिर आ गए तुम सब ! आम को तुम सब पकने नहीं दोगे? पक जाए तो खाते रहना। "
मेरे झुंड में से उनके पास आवाज पहुंची -- " देखा चाचा ! आम को छोड़ देंगे पकने के लिए तो कहीं पकने के बाद कोई और तोड़ लिया तो.... हम सब इतना जोखिम नहीं उठा सकते हैं। चलिए , आप नहर खोदिए। आपसब तो बच्चा गैंग के पीछे पड़े रहते हैं ।"
बनवारी लगभग पचास - पचपन के होंगे लेकिन उनकी गरीबी ने उन्हें सत्तर का बना दिया था। ये दूसरे गांव से थे जो इस गांव से 30 किलोमीटर दूर था। उनके पास थोड़ी भी जमीन न थी सिर्फ दस धुर में बना झोपड़ी था और दस धुर में आंगन था जिसमें उनकी पत्नी और अठारह साल की एक कन्या अपने खाने के लिए सब्जियों की लताएं लगा दिया करते थे। गांव में सिर्फ तीन ही चीजें थी जिसको मैं बहुत ही चाहता था एक बनवारी चाचा, आम का बगीचा और कच्ची सड़क किनारे खड़ी सालों पुरानी एक पीपल तथा बर मिश्रित बरगद का पेड़।
बनवारी चाचा चेहरे से काले रंग के लेकिन दिल से बहुत नेक थे। उनको बच्चों से बहुत लगाव था। जब मैं पीपल के पेड़ नीचे हो रहे क्रिकेट , गिल्ली - डंडा और कंचे के खेल में हार जाता तो उनके पास चला जाता और उनसे ढेरों बातें करता। उनसे बात करके मुझे सुकून मिलता था क्योंकि वे मेरी गलतियों पर प्यार से समझाते थे। वे मेरी हर बात समझते थे और शायद मैं भी उनके दिल की बातों को समझता था तभी तो वो मुझे अपने घर और बचपन की ढेरों कहानियां सुनाते थे। ऐसा एक दिन भी न बीता होगा जिस दिन मैं उस पीपल की छांव में बैठा न था। कई पछियों को यह आश्रय प्रदान करता था। बरसात में जब जानवरों के लिए हरा चारा कम पड़ता तो इसके पत्तों को तोड़कर अपने दो गायों के लिए ले जाता। इसके मजबूत डाली से रस्सी बांध कर झूला बनाता। उस झूला पर झूलने का मजा हीरे - जवाहरात से भी ज्यादा खुशियां देता था।
एक दिन मुझे खेलने का मन न हुआ तो मैं बनवारी चाचा के पास जाकर बैठ गया। उस वक़्त वे नहर ही खोद रहे थे । मैं थोड़ा सोचते हुए बोला -- " आप इतना परिश्रम क्यूं करते हैं, चाचा? "
वे अपने कुदाल को रखते हुए बोले -- " अभी तुम छोटे हो, शाम ! बड़े होगे तो सब समझ में आ जाएगा, बेटा! क्या होती है जिंदगी ... अभी तो तुम जिंदगी के दूसरे पहलू से अनजान हो ... अभी सिर्फ खुशियां हैं तुम्हारी झोली में... न कोई चिंता ... न किसी प्रकार का दुख। " मुझे कुछ समझ न आया । मैं दुनियादारी के मामले में बहुत कमजोर था।
बनवारी चाचा को मेरा नाम " श्यामधरी " बुलाने में दिक्कत होती थी इसलिए वे मुझे " शाम " कहकर ही पुकारते थे।
वे अपने ललाट पर से पसीना पोंछते हुए बोले -- " क्या तुम चापाकल से पानी ले आओगे, शाम ? "
मैं लोटा ले दौड़ कर कुछ दूर खड़े मकान के पास गया और पानी लेने लगा तभी उस घर की नई - नवेली दुल्हन बाहर निकली और चिढ़ते हुए बोली -- " अब से यहां से किसी को पानी नहीं लेना है ... चापाकल तुम्हारे बाबूजी का है कि जब चाहो आ जाते हो? "
मैं भी जवाब दे बैठा -- " यह चापाकल सरकार लगाई है। आपका कैसे हो गया ? इसको बाउंड्री करके घेर लिए तो आपका हो गया। सरपंच को ई बात बताएंगे और आप पर केस भी करेंगे। " मैं समझता नहीं था कि कोट - कचहरी होता क्या है! कईयों के मुंह से सुना था जब वे गुस्सा में होते थे तो मैंने भी बोल दिया। पास में बैठी बुढ़िया दादी हंसते हुए बोली -- " क्या हमको भी जेल भेजोगे बबुआ ! मैं चुपचाप उनकी तरफ देखा। वह आगे बोलीं -- " यहीं से रोज पानी ले जाना , कोई दिक्कत नहीं है।" वैसे भी हमको पुलिस से डर लगता है और ऐसा कहकर जोर से हंस दी।
मैं लोटे में पानी भर वापस खेतों में बनवारी चाचा के पास पहुंचा। वे पानी पी पास के ताड़ के पेड़ के नीचे बैठ सुसताने लगे। वे कुछ मिनट के बाद मुझसे कहने लगे -- " अपने बेटी को देखने की बहुत इच्छा हो रही है ... न जाने पत्नी और बेटी कैसे होंगे ! "
मैं बीच में ही बोल पड़ा -- " कैसे होंगे क्या मतलब ! ठीक ही होंगे।"
वे मेरी तरफ शांत भाव से देखते हुए धीमी स्वर में बोले -- " तुम अक्सर पूछते थे न ... मैं अपने गांव पर्व में भी क्यूं नहीं जाता हूं। आज मैं तुमको सब बताऊंगा।" मैं पिछले दो सालों से अपने गांव नहीं गया हूं । मैं जो पैसे कमाता हूं उसमें से कुछ हिस्सा पोस्टकार्ड से घर भेजता हूं । वहां से चिठ्ठी आती रहती है और कुछ चिठ्ठी का जवाब भी लिख कर भेज देता हूं। चिठ्ठी में अक्सर मेरी पत्नी गहनों और पैसों के बारे में पूछती है। मैं घर से निकलते वक़्त बोला था कि मैं वापस तभी लौटूंगा जब मैं अपनी फूल सी बेटी की शादी के लिए साठ हजार जमा कर लूंगा और थोड़े गहनें भी बना लूंगा। एक अच्छा सा लड़का है उसी गांव में जो मेरी बेटी से शादी करने के लिए तैयार है। वहीं ये सब की मांग कर रहा है। अगर ये सब मैं इंतजाम न कर पाया तो मेरी इकलौता संतान की शादी कैसे होगी और ऐसा कहकर उदास हो बिल्कुल चुप हो गए।
Best Hindi story |
मुझे ऐसा लगा जैसे आसपास की बहती हवा जैसे कुछ पल के लिए रुक सी गई हो। मेरे हृदय में ऐसे सांसारिक भाव भरते जा रहे थे जिससे मुझे आज तक वंचित रखा गया था। एक जवान बेटी के पिता को कितना दुखों का सामना करना पड़ता है , आज मैं जान चुका था। इस शांत परिवेश में मुझे उनकी सिसकियों की आवाजें सुनाई पड़ रही थी। वे अपने चेहरे के भाव को छिपा रहे थे लेकिन उनकी आंखों की नमी सारे दर्द बयां कर रहे थे। तभी नहर का ठेकेदार के पुकारने पर चाचा चले गए लेकिन मैं वही पर कुछ देर तक बैठा कुछ सोचता रह गया। मेरा गांव समृद्ध था। उनके गांव में रोजी - रोटी और कमाई के बहुत कम अवसरों ने उन्हें इस गांव में खींच लाई थी। वे यहां बरसात में धान की रोपनी और कवाड़ना , सर्दियों में कईयों के खेत जोतकर रबी फसलों की बुआई- कटाई और गर्मियों में आम के पेड़ों की दिन - रात रखवाली ऐसी ही कामों ने उन्हें दो सालों तक इसी गांव में उलझाए रखा था।
फुरसत न मिलती दिन में
उनको अपने काम से।
बहुत डरते अपनी तन्हाई से
जो शुरू होती हर दिन शाम से।
रातों में सताता एक कर्तव्य
कैसे भूल जाते करना है कन्या दान ।
किसी को एकड़ दिए किसी को न मिला एक धुर
हे भगवान ! तू तो सच में है महान।
कई महलों से न निकले सालों
फिर भी चल जाए उनका काम।
सोच में पड़ जाता हूं अक्सर मैं
पता नहीं बनवारी चाचा के दुखों का कब मिलेगा दाम।
गर्मी की छुट्टियों में मैं अपने नानी घर गया। बड़े दिन से उनको चाहत थी कि वे मुझसे मिलें। शहरों के छोटे - छोटे बंद कमरे जिसमें ताजी हवा न आती थी, मुझे कांट खाने को दौड़ते थे। संकरी गलियों में शाम के समय लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी। गांव में इधर - उधर चहलकदमी करने की जो स्वतंत्रता थी, वह शहर में बिल्कुल नहीं थी। पेड़ - पौधों की सांसें घूंट रही थी। पेड़ इतने कम की ताजी हवा की कोई कल्पना नहीं हो सकती थी। छतों पर कुछ तुलसी , एलोवेरा जैसे पौधें अपनी जिंदगी छोटे - छोटे गमलों में अपने जीवन के अवसर तलाश रहे थे। शाम में मेरे
नाना मुझे घुमाने ले गए। सड़को पर के प्रदुषण ने मेरा जीना बेहाल करने लगे। दो कदम चलो नहीं की पीछे से वाहन शोर मचाते हुए रास्ता देने के लिए गुजरते।
मुझे अपने गांव की धरती की खुशबू याद आने लगी। बड़ी मुश्किल से मैंने अपने तीन दिन बिताए। अपने गांव के मनचले यारों की बातें और बनवारी चाचा की यादें रह - रहकर मुझे सताती। शहर वालों में वो प्यार और मोहब्बत नहीं दिखती जो गांव वालों में होती है।
सब्जी लेने जाओ तो सब्जीवाला डंडी मार ठगे।अगर कोई आदमी अपना दिमाग इस छल - कपट से भरे शहर में न लगाए तो उसका जीना मुश्किल हो जाए।
क्या शहर के हैं तौर - तरीके।
बोलने के हैं बड़े अदब सलीके।
यहां सब हैं
सिर्फ अपने - अपने घर के।
अपने पड़ोसी को जानते नहीं
बोलते हैं हम तो हैं इस शहर के।
मैं रात में कोई डरावना सपना देख डर गया। मुझे समझ में कुछ आया नहीं की क्या हुआ। फिर सोने का बहुत प्रयास किया लेकिन नींद न अाई। मुझे लगा जैसे मेरे गांव का कोई चाहने वाला मुझे पुकार रहा है। मेरे दिल की धड़कने की गति अचानक बढ़ गई। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई मुझे अपने अंतिम पलों में मेरी उपस्थिति चाहता हो। अगले दिन सुबह को मैं अपने गांव वापस लौटने लगा। मैं तो खुश था लेकिन मैं जब अपने गांव में प्रवेश किया तभी मेरे चेहरे का रंग फिका पड़ गया। नदी के किनारे बनवारी चाचा का अंतिम संस्कार हो रहा था। उनकी पत्नी और बेटी भी आए हुए थे। मेरा दिल बहुत दुखी हुआ
की मैं उनके अंतिम क्षणों में उनके पास न था; एक अंतिम बार भी उनको देख न सका। किसी ने बताया कि उनकी मौत लू लगने की वजह से हुई है; बनवारी चाचा उस दिन कड़कड़ाती धूप में ही घंटों काम कर रहे थे और रात में बहुत तेज बुखार आया और सुबह में उन्होंने अपनी अंतिम सांसे गिनी।
उन्होंने अपने झोपड़ी के एक बक्से में एक कागज का टुकड़ा और तीस हजार पैसे छोड़ गए थे। वह कागज उनकी अंतिम इच्छा को समेटे था -----
" प्रिय सुषमा! तुम्हें भी बहुत इच्छा होती होगी कि बाकी महिलाओं की तरह मेरे कंधे भी गहनों से लदे हो.... बदन पर हर दिन नई चमचमाती सारी हो ...
फिर भी तुम कभी भी मुझसे कोई शिकायत न रही...
तुमने अपनी सारी उभरती चाहतों का गला घोंटा सिर्फ मेरे कारण।
लेकिन मुझे इसका बहुत अफ़सोस है कि मैं तुम्हारी
तमन्नाओं को अंतिम मंजिल तक न पहुंचा पाया। शायद अगले जनम में तुम्हारी आकांक्षाओं को जरूर पूरा करूंगा। तुम जैसी जीवनसंगिनी पाकर मैं धन्य हो गया... अब तुम्हारे हाथों है हमारी बेटी का कन्या दान...हमारी बेटी बहुत सुशील और रूपवान है, उसे कोई अच्छा वर अवश्य मिल जाएगा... मेरी दो सालों की मेहनत का फल हैं ये तीस हजार रूपए।
हमेशा खुश रहना मेरी बेटी रूपमती। भगवान से जरूर विनती करूंगा की तुम दोनों को ढेर सारी खुशियां दे जो आज तक मैं तुम्हें नहीं दे पाया।
उनकी पत्नी सुषमा से पता चला कि जिस लड़के से रूपमती का रिश्ता होना था वह बनवारी चाचा के गांव वापस आने का इंतजार न कर सका और किसी दूसरी लड़की से शादी कर ली।
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This second one is love story
School vala मोहब्बत :::::::::::::
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मैं आज थोड़ा घबराया हुआ था ; घबराहट हो भी क्यों न , मेरे स्कूल का आज पहला दिन जो था । इस घबराहट में खुशी का भी मिश्रण था , ग्रेजुएशन की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद मेरी जिंदगी की एक नई शुरुआत आठवीं तक के प्राइवेट स्कूल में शिक्षक के रूप में होने वाली थी । एक सप्ताह पहले ही ग्रेजुएशन की परीक्षाएं ख़तम हुई थी कि जिंदगी की राहों को पटरी पर लाने की जद्दोजहत शुरू हो गई ।
वैसे मैं आठवीं से दसवीं तक के विद्यार्थियों को पिछले एक साल से प्राइवेट कोचिंग में पढ़ा रहा था तो ज्ञान की कोई कमी न थी लेकिन हिचकिचाहट तो होती ही है, पता नहीं नए स्कूल में किस तरह के बच्चें मिलेंगे ; पढ़ने वाले होंगे या सिर्फ शरारत करने वाले ।
मेरी चाहत थी कि मैं नौवीं और दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाऊं लेकिन उसके लिए स्कूल B.Ed डिग्री की मांग कर रहे थे और मैं ठहरा सिर्फ ग्रेजुएट । 😔😔😔
मुझे याद है उस दिन की घटना जब मैं पहले - पहल कोचिंग में अंग्रेजी पढ़ाने गया था । जब मैं पहली बार अपने सामने तीस - पैंतीस विद्यार्थीयों को देखा तो एक पल के लिए मेरा दिमाग सुन्न - सा हो गया और घबराहट से पसीने - पसीने हो गया लेकिन जब किताब ले पढ़ाने लगा तो अपने आप ज्ञान के सागर में डूबता चला गया और कब एक घंटा बीत गया , पता ही न चला ।
ये जो मेरा शिक्षक के रूप में भूत का बुरा अनुभव था , कभी - कभी मुझे याद आए जा रहा था और मेरा मन इस पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था ।
खैर, मैं स्कूल पहुंचा और सीधे प्रिंसिपल ऑफिस में जाकर मुस्कुराते हुए शुभ प्रभात बोला ।
प्रधानाध्यापक ने मुझे वर्ग छठी की एक रजिस्टर और एक लाल कलम थमा पास में बैठी एक मिस की ओर इशारा करते हुए बोले -- " ये मैडम आपको आपका क्लास दिखा देंगी । "
वो मिस मुझे ऊपर से नीचे देखने लगी और मेरी भी नजर उनके चेहरे पर गई । जब मैंने उस लड़की को देखा तो ज्ञात हुआ वह तो मेरी ही उम्र की है लेकिन सम्मान प्रकट करने के लिए तो तुम की जगह आप ही बोलना पड़ता है । गोरे चेहरे पर का मेक-अप और आंखों में लगा काजल उसकी सूरत पर चार चांद लगाने जैसा था । मेरे दिल- दिमाग को उसकी शक्ल बहुत ही आकर्षक लगा और उसके चेहरे पर की चमक के बारे में क्या कहना , ऐसा लगा जैसे रब ने बड़ी फुरसत में उसके मिट्टी के शरीर को बनाया होगा । मुझे भूरा रंग वैसे ही प्रिय था ; उसका भूरा वस्त्र तो मुझे अंदर से झकझोर दिया , मुझे ऐसा लगा जैसे कोई अनजान शक्ति मुझे उसकी ओर खींच रही हो । मेरा दिल के धड़कने की गति अचानक बढ़ गई ।
वह प्रिंसीपल को बोलने लगी -- " इनका आज पहला क्लास है क्या ? कभी देखे नहीं ?? "
प्रिंसिपल सर हां में जवाब दिए । उसका सिर्फ शरीर ही आकर्षक नहीं था अपितु उसकी प्यारी और मनमोहक आवाज ने तो मेरे दिल को घायल करने में कोई कसर न छोड़ी । ऐसा मेरे पूरे बदन में खासकर दिल में कम्पन मुझे कभी नहीं महसूस हुआ था ; इस कम्पन में किसी अनजान को अपने दिल में बसाने की तीव्र इच्छा थी ; मेरे दिल की धड़कने किसी को पुकारे जा रही थी ....बस पुकारे जा रही थी । मेरे स्कूल का ही आज पहला दिन नहीं था बल्कि आज मेरे दिल के एहसासों का भी एक नया जन्म हुआ था ।
मैं उसके साथ - साथ सीढ़ियों से होते हुए फर्स्ट फ्लोर पर जाने लगा । वह मुझे विद्यालय के बारे में कुछ - कुछ बताई जा रही थी लेकिन मेरा दिन तो उसकी बातों में ही खो गया था । उसके मुंह से निकली ध्वनियां जब उसके कदमों की आवाज से मिलती तो एक संगीत - सा मेरे कानों को मालूम पड़ता । उसकी आंखों की गहराई पूरी दुनिया को अपने में डुबाने के लिए सामर्थ्य रखे हुए थी जो अभी - अभी कदमों से कदमों को मिलाकर चलते हुए एक ग्रेजुएट लड़के को पूरी तरह डूबो दी थी ।
मोहब्बत के सागर में यह मेरे जीवन का पहला गोता था ; प्यार के समुन्द्र की लहरों के साथ बहते हुए मुझे अत्यन्त आनंद का अनुभव हो रहा था और मेरा जी चाह रहा था कि यह पल बस बीते ही न , यही ठहरा रहे और मेरे कान बस उसकी बातों को सुनते रहें । अनेक चाहतों की बारिश मेरे दिल में होने लगी ; अनंत काल के लिए उसकी राहें मेरी राहों से जुड़ एक हो जाए और जब भी मैं अपने दिल की खिड़की खोलुं तो बस उसका ही मुखरा दिखे । बातों ही बातों में वह अपना नाम ऋतु कुमारी बतलाई ।
मैं अपने क्लास में पहुंचा ; सभी छात्र अपने नए शिक्षक को देख चुपचाप हो पढ़ रहे थे । मैं पढ़ाने में मग्न होने लगा लेकिन दस मिनटों के बाद मेरा ध्यान भंग होने लगा ; बार - बार प्रिंसिपल क्लास के दरवाजे के पास से गुजरकर मुझे देखते और फिर बच्चों को तथा कभी - कभी तो दरवाजे के पास खड़े हो मोबाइल पर टिप - टाप करने का नाटक करने लगते ; असलियत यह थी कि वे सिर्फ मेरा पढ़ाने के तरीके से अवगत होना चाहते थे ; मैं अपने लय में पढ़ाता गया ।
तीन घंटों के बाद लंच हुआ । मैं टिफिन नहीं लाया था इसलिए बाहर में समोसा खाया और आकर टीचर्स रूम में बैठ गया तभी मेरे पास ऋतु आने लगी । मैं थोड़ा हिचका ; वह मेरे पास आ हंसते - हंसते बोलने लगी --- " आप कहां चले गए थे ? मैं आपको ढूंढ़ रही थी ? "
और फिर मुझे एक डब्बा पकड़ाते हुए बोली -- " ये लीजिए , इसमें चार - पांच तरह की मिठाईयां और एक समोसा है ...... आज स्वाति mam का जन्मदिन है । " और हंसते हुए वहां से चली गई ।
मुझे समझ में नहीं आता था ये लड़कियां इतना हंसती क्यूं हैं ? छोटी तुच्छ बातों पर खिलखिला उठती हैं ? जब मैं कमरे में आसपास अपनी नजरें दौड़ाया तो मालूम हुआ एक झुंड में छह मिस और चार मैडम एक लय में जोर - जोर से हंसे जा रहीं हैं तथा पांच अधेड़ सर आपस में कुछ गंभीर बातें कर रहे हैं ; इन पांचों के चेहरे पर सिर्फ चिंता की लकीरें ही दिख रही थी , ऐसा मानो जैसे पूरे देश की अर्थव्यवस्था का भार इन्हीं पांचों के कंधे पर हो । उन महिलाओं के चेहरे की हंसी देख मेरा मन भी खुशी के गगन में पंख लगा एक पक्षी की तरह उड़ने लगा लेकिन फिर जब पास बैठे पांचों पुरुषों पर पड़ती , वही खुशी का पक्षी धड़ाम से जमीन पड़ गिरने लगता ।
विद्यालय से अपने घर जाने पर मुझे ऋतु की ही बातें याद आ रही थी ; सिर्फ वह लड़की ही तो मेरे स्कूल का पहला दिन खास बनाई । जितना सौंदर्य उसके चेहरे पर था उससे कई गुना अधिक वह दिल से सुन्दर थी ; जरा भी घमंड भी नहीं खुद पर । पहले दिन किसी भी शिक्षक ने मुझसे बात करने की जरूरत न समझी सिवाय ऋतु के ।
उसकी प्यारी सी हंसी और प्यार भरी बातों को याद करते - करते मैं सो गया और जब सुबह - सुबह मेरी नींद खुली तो उसका मुस्कुराता चेहरा मेरे आंखों के सामने तैरने लगा और मेरे दिल को खुश कर दिया । जब आप किसी को मुस्कुराते देखते हैं न , तो आप चाहे कितना भी उदासी से भरे हों , आप थोड़ा न थोड़ा खुश हो ही जाते हैं ; जहां तक रही बात मेरी तो , मैं ठहरा आशिक दीवाना : उसकी हंसी मेरे दिल को तो भानी ही है ।
आज मैं जल्दी हो स्कूल पहुंच गया ; सोचा उससे थोड़ी बातें हो जाएगी लेकिन प्रिंसिपल मेरे पीछे पड़ गए । ऋतु प्रिंसिपल ऑफिस के बगल वाले कमरे में छोटे - छोटे बच्चों से बातें कर रही थी ; मेरे लिए अच्छा अवसर था , कोई भी मैडम उसको नहीं घेरे थी लेकिन प्रिंसिपल मेरे बारे में जानने की उत्सुकता से पूरी तरह भरे हुए थे और मुझे अपनी बातों के जाल में फंसाए ही जा रहे थे और मुझे छोड़ ही नहीं रहे थे , बिल्कुल वैसे ही जैसे एक भूखा नवजात शिशु अपने मां के स्तनों को नहीं छोड़ता है ।
इसी तरह मेरे दो सप्ताह बीत गए । कभी जब ऋतु और मेरे बीच बातचीत शुरू होती तो कोई मैडम आ जाती और उसे अपने गपशप समूह में शामिल कर लेती; कभी लंच आवर में कोई बच्चा अपना सवाल लेकर मेरे पास आ जाता तो कभी तीन अधेड़ पुरुष शिक्षक किसी राष्ट्रीय समस्या पर मेरी राय मांगने लगतें तो कभी मेरे न चाहते हुए भी मुझसे बहस करने लगते तो कभी कोई विद्यार्थी आपस में खेलते - खेलते झगड़ जाते तो मुझे देखने जाना पड़ता । अगर एक वाक्य में अपने दिल की बात कहूं तो मोहब्बत के दुश्मन हर जगह कदम - कदम पर खड़े हैं ।
प्रिंसिपल सर एक वॉट्सएप ग्रुप बनाए जिसमें कोई भी शिक्षक स्कूल से संबंधित किसी भी समस्या पर विचार - विमर्श कर सकता था । मैं तो खुश हुआ ; सोचा ऋतु का मोबाइल नंबर मिलने से शायद मेरे दिल की बेचैनी और तन्हा रातों में नींद न आने की मेरी समस्या भी सुलझ जाए । अध्यापकों के वॉट्सएप ग्रुप से ऋतु का नंबर तो मुझे मिल गया लेकिन मैं बहुत भयभीत था न जाने वह मेरे बारे में क्या सोचेगी जब मैं कॉल करूंगा ।
स्कूल में हर वक़्त तो ऋतु अपने महिला शिक्षकों से घिरी ही रहती थी ; उससे बात न होने से मेरे दिल की बेचैनी तो बढ़ती ही जा रही थी । नंबर मिलने के पांच दिन बाद एक रात किसी तरह हिचकिचाते हुए उसके पर्सनल वॉट्सएप पर hi भेज दिया । जब मेरी नजर typing......... पर पड़ी तो मेरा दिल घबरा कर बैठने लगा फिर जब लिखा आया ' Hello ' तब मेरे जान में जान अाई और फिर वह एक गुलाब के फूल वाला एक तस्वीर भेजी जिसपर लिखा था
' '' तुम्हें मानने लगे हैं हम अपना !
मत समझना ये है कोई सपना !
जब तुम हमसे पहली बार मिले
दिल में तुम आए तो बना दिया हमने चारों ओर किले
अब हमारे हृदय में ही तुम्हें रहना पड़ेगा
साथ मत छोड़ना चाहे संसार कितना भी जुल्म करेगा
Good night
मत समझना ये है कोई सपना !
जब तुम हमसे पहली बार मिले
दिल में तुम आए तो बना दिया हमने चारों ओर किले
अब हमारे हृदय में ही तुम्हें रहना पड़ेगा
साथ मत छोड़ना चाहे संसार कितना भी जुल्म करेगा
Good night
😊😊😊
मैंने भी उसे शुभ रात्रि लिखकर भेज दिया । इस रात मुझे नींद नहीं आयी ; रह - रहकर बस उसका चेहरा मेरे आंखों में आता और एक ख्वाब जगा जाता ; उसकी भेजी गई शायरी मुझे ऐसा लगता जैसे वह खुद अपनी मीठी आवाज में बोल रही हो । सुबह के चार बजे मुझे नींद आने लगी , अच्छा हुआ बीती रात शनिवार थी । नींद से जगा तो सबसे पहले उसकी शायरी का ही ख्याल आया ।
रविवार की ही शाम को मैं पार्क में टहल रहा था ; आसपास के रंग - बिरंगे फूल मुझे सिर्फ ऋतु का ही स्मरण करा रहे थें , कुछ दूर पर कई प्रेमी युगल घास पर बैठे - बैठे प्रेम का राग अलाप रहे थे । तभी कुछ मिनटों बाद आकाश में घटा छाने लगी और पेड़ों की डालियां ठंडी हवाओं के झोंके से झूमने लगी । ये सब दृश्य देख मेरा हृदय भी प्यार के झोकों से झूमने लगा । मैं हिचकते हुए कांपती अंगुलियों से उसे फोन लगा दिया ;
उधर से आवाज आई --- " हैलो ! कौन ?.... हैलो ! कौन ? हेलो ! .... कोई बोलता क्यूं नहीं ? "
मैं चुपचाप उसकी आवाज सुनता रहा ; उससे बात करने की हिम्मत न हुई । मेरे सांस की गति तेज होने लगी । फिर वह बोली --- " साहिल धवन आप हो क्या ? "
मेरे मुंह से निकल पड़ा -- " हां , मैं ही हूं ! Sorry , आपके पास लग गया , मैं कहीं और लगा रहा था । "
वह बोलने लगी -- " कोई बात नहीं , थोड़ी देर बात कीजिए । आपको पता है आशुतोष सर और सुधा मैडम का चक्कर चल रहा है ? "
ऋतु मुझे आप कहकर ही बुलाती थी और मैं तो अपने आदत से ही लाचार हूं , किसी लड़की को देखता हूं तो मुंह से आप शब्द ही निकलता है ।
वह थोड़े रहस्यमय तरीके से आगे बोली -- " आशुतोष सर का तो शायद पचास साल हो रहा होगा , शादी के बाद भी चक्कर चल रहा है , कितनी बुरी बात है .... दोनों शादीशुदा लोग कल स्कूल से छुट्टी लेकर चिड़ियाघर घूमने गए थे ..... ईश्क - मोहब्बत करने का हम सब का उमर है और वो सब प्यार करने में लिप्त हैं ..... कितना अजीब है न , साहिल धवन ! "
मैं तो सिर्फ उसकी बातें सुनने में ही दिल लगाए हुए था ; वह बोलती जा रही थी और अपने दिल की अनजान राहों से मुझे परिचित कराए जा रही थी । ऋतु बहुत ही स्पष्टवादी थी ; कोई भी बात अपने में छुपाना तो वह जानती ही नहीं थी । सोचता रहता था इतना खुले विचारों वाली लड़की अगर जीवनसाथी बन जाएगी तो मैं धन्य हो जाऊंगा । लगभग एक घंटा तक उससे बातचीत हुआ तो मुझे पहली बार ऐसा लगा जिओ सिम के फ्री कॉल का फायदा ही फायदा है अगर अच्छे से इसका कोई इस्तेमाल करे तो ।
इसी दिन के बाद से वह खुद ही मुझे ऑनलाइन देख वॉट्सएप पर hi ! Hello ! Good morning ! आदि भेजने लगी ; शायद एक घंटे की बातचीत ने उसके दिल में भी प्यार जग गया हो या कम से कम दोस्ती ही सही ; आखिरकार कई प्यार की राहें तो दोस्ती से ही तो शुरू होती है । अब लंच आवर में भी वॉट्सएप पर बात होने लगा ; वह महिला शिक्षकों के समूह में होती और मैं पुरुष शिक्षकों के झुंड में बैठा होता फिर भी शब्दों को लिखने - भेजने के सहारे एक - दूसरे के दिल के पास होते ।
इसी तरह तीन महीने बीत गए और हमारी बातचीत प्रतिदिन के वॉट्सएप और सप्ताह के दो - तीन कॉल तक सीमित रही । कई बार मेरे अंदर चाहत जगती , काश ! हम दोनों साथ बैठकर लंच आवर में खाना खाते और खूब बातचीत करते लेकिन शिक्षकों की निगाहें हमें ऐसा करने से रोके रखती ।
मैं पांच दिनों की छुट्टी लेकर अपने गांव चला गया ; बड़े चाचा के लड़के की शादी थी । वहां जाकर मैं बहुत ही व्यस्त हो गया ; पहले शहर में मेरा मोबाइल सबसे बड़ा करीबी साथी था लेकिन गांव आते ही बचपन के दोस्तों के सामने इसका कोई महत्व न रह गया सिर्फ स्मार्टफोन को फोटो खींचने के वक़्त ही याद करते । अगली रात को देखा तो ऋतु के कई missed call थे ; बहुत रात हो चुकी थी इसलिए कॉल बैक नहीं कर पाया । सुबह उठते ही उसे फोन लगाने लगा लेकिन गांव में जिओ का बहुत ही खराब नेटवर्क बीच में बाधा बनकर सामने आ गया और बात नहीं हो पाई ।
फिर मैं अपने रिश्तेदारों और दोस्तों संग व्यस्त हो जाता , इसी तरह दो दिन बीत गए । एक रात मेरे मोबाइल पर ऋतु का मैसेज आया
---- " बहुत याद कर रहे हैं तुमको .... और तुम हो की बस मुझे याद ही नहीं करते " -------
---- " बहुत याद कर रहे हैं तुमको .... और तुम हो की बस मुझे याद ही नहीं करते " -------
मैं थोड़ा खुश हुआ , चलो ! इन महीनों की मुलाकात ने आपको से तुमको कर दिया है और ये प्यार में अच्छी बात थी ।
मैं मैसेज का जवाब देने लगा -------- "
मैं भी आपको बहुत याद करता हूं
याद आने पर आपकी तस्वीर देखा करता हूं
आपसे बात करने में जिओ का नेटवर्क है एक बड़ी बाधा
जिस दिन आपसे बातें न करूं, महसूस करता हूं मैं हूं आधा
😊😊😊😊😊 " --------
जिस दिन आपसे बातें न करूं, महसूस करता हूं मैं हूं आधा
😊😊😊😊😊 " --------
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मेरे मैसेज भेजते ही मेरा बचपन का मित्र श्याम दिनकर मुझसे मोबाइल छीन लिया और मुझसे मैसेज करने वाली लड़की के बारे में बड़ी उत्सुकता से पूछने लगा और फिर मैं उसे ऋतु के बारे में बताने में खो गया और फिर कब मेरी आंख लग गई , मुझे याद नहीं । अब मुझे समझ में आ गया कि ऋतु के दिल में मैंने जगह बना ली है तभी तो वह मुझे हर दिन मैसेज करती है और मैसेज के रिप्लाई में देरी होने पर डाटती भी है ।
अगली सुबह ही मेरा मित्र दिनकर ऋतु को फोन लगा दिया और जब उससे फोन छीनने लगा तो बाकी पांच - छह दोस्त मुझे पकड़ लिए , दिनकर बोलने लगा -- " हेलो , भाभी ! कैसी हैं ? हम दिनकर बोल रहे हैं , नहीं पहचानी आपके देवर ...... साहिल धवन तो आपके प्यार में पागल हो गया है .... न खाता है ., न पीता है , बस खुली आँखों से आपके ही सपने देखता रहता है .... "
और फिर मुझे फोन देते हुए बोला --- " लीजिए बात कर लीजिए अपने सजना से .... बहुत तड़प रही हैं न मैडम ! "
दिनकर मेरे कान में फोन लगा दिया , मैं बोलने लगा --- " हेलो ! हेलो ! ....." लेकिन कोई जवाब न मिला । मैं बहुत घबरा गया , अभी दिनकर को पता ही न था कि उसने मेरा दिल ही तोड़ दिया है .... ऋतु नाराज हो गई थी , मुझे दिनकर और बाकी दोस्तों पर बहुत गुस्सा आया लेकिन सभी दोस्त तो हंसते ही जा रहे थे । लगभग दस मिनट के बाद उन्होंने बताया कि ये सब मजाक था , कोई फोन दिनकर ने ऋतु को नहीं किया था , बल्कि अपने ही किसी दोस्त को किया था ।
गांव से मैं वापस आकर अगले दिन स्कूल गया । विद्यालय में कई विद्यार्थी और कुछ शिक्षक भी अनुपस्थित थे ; शादी - ब्याह का महीना जो चल रहा था । दूसरे तल्ले पर से सभी बच्चों को बाहर निकालने पर बाकी सर और मैडम नीचे जाने लगे तो मैं और ऋतु सभी वर्गों में एक नजर दौड़ाकर देखने लगे कि किसी बच्चे का बोतल टिफिन या और कुछ छूटा तो नहीं है , यह कार्य विद्यालय के हर रोज के दिनचर्या में शामिल था तो आज कोई नहीं बात नहीं थी । आसपास किसी और को न देख ऋतु मेरे पास अाई और मुझसे गले लग गई । मुझे तो कुछ समझ में न आया तो मैं भी अपने हाथों से उसे पकड़कर अपने बाहों में भर लिया । वह बोलने लगी -- " मुझे तुमसे बातें करना अच्छा लगता है और मैं जानती हूं तुम्हें भी मुझसे बातें करना बहुत पसंद है । "
मैंने हां कहकर जवाब दिया ।
वह आगे बोली -- " जब तुम पांच दिनों के लिए गांव चले गए तो मेरी आंखें तुम्हें यहां न पाकर बहुत ही बेचैन होती थीं ..... मेरा दिल बस तुम्हारा ही नाम पुकारे जा रहा था ..... जब तुम मुझसे कई मील दूर थे तब मुझे एहसास हुआ कि तुम मेरे दिल के बहुत करीब हो ..... फिर से मुझे छोड़ के नहीं जाना , कभी नहीं ..... तुम्हारे बिना मेरे दिल का आकाश और धरती सब बेरंग हैं ..... तुमने जो मेरे पर ईश्क का रंग चढ़ा दिया है , वह मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं मिटेगा .......
फिर वह रोने लग गई तो मैं उसके आंखों से गिरते मोतियों को रोकने लगा । वह चुप हो बोली -- " तुमने वॉट्सएप पर क्यूं बताया कि तुम मुझे प्यार करते हो ?.....मुझसे आमने - सामने कह दिया होता कभी ! .... मेरे आंखों में आंखे डाल कर एक बार फिर कहो ' तुम मुझसे मोहब्बत करते हो ! '
मुझे समझ में नहीं आया , मैंने कब ऋतु को वॉट्सएप पर लिख कर अपने प्यार का इजहार किया ।
मुझे सोच में पड़ा देख वह बोली --- " अब तुम्हें डर लग रहा है न ! मुझे भी डर लगता था तुमसे बोलने में की " मैं तुमसे दिल लगा बैठी हूं । "
वह फिर अपने होठों को मेरे होंठो पर रख दी और चूमने लगी ; मैंने कोई आपत्ति नहीं जताई और उसके इस कार्य में सहभागी हो गया । तभी सीढ़ियों पर से किसी के आने की कदमों की आहट सुनाई पड़ने लगी और हम दोनों का रोमांस ख़तम हो गया ।
अगले दिन वह कोई भी मैसेज नहीं की ; मेरे मैसेज करने पर कोई जवाब नहीं देती थी और स्कूल में भी मुझसे नज़रें चुराने लगी । यही क्रम दो दिनों तक चलता रहा ।
अगले दिन मैं लंच आवर में चुपचाप बैठा था । मुझे उदास देख आशुतोष सर बोलने लगे
अगले दिन मैं लंच आवर में चुपचाप बैठा था । मुझे उदास देख आशुतोष सर बोलने लगे
---
" अब बातचीत नहीं हो रहा है , क्या ? "
मैं उनके बोलने के ढंग से समझ गया वे ऋतु के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन न समझने का नाटक करते हुए बोला " आप क्या बोल रहे हैं , मैं समझा नहीं ? "
अच्छा हुआ इस दिन सिर्फ आशुतोष सर ही मेरे बगल में बैठे हुए थे , बाकी सर खाना खत्म करने के बाद हाथ धोने गए हुए थे ।
वे चुटकी लेते हुए कहने लगे -- " हम सब समझते हैं , तुम्हारे और ऋतु के बीच क्या पक रहा है ! ..... कभी हम भी तुम्हारी उम्र के थे ...... कुछ दिन पहले जो तुम दोनों चुम्बन कर रहे थे , वह भी देख लिए थे । "
मैं उनको आश्चर्य भरी निगाहों से देखने लगा तो वे बोलने लगे --- " अरे ! प्रिंसिपल भेजे थे हमको देखने के लिए की ऊपर ताला लगा की नहीं !! " समझे !!!
" वैसे भी प्यार में कुछ सेकंड के चुम्बन से क्या होता है ! ...... कभी जाओ उसे लेकर चिड़ियाघर ...... वहां जंगल जैसा माहौल है , पेड़ों के नीचे प्रेमी युगल बाहों में बाहें डाल दिल की बातें करते हुए एक - दूसरे के साथ कीमती वक़्त बिताते हैं ..... ।। "
अगले दिन रविवार था तो मैंने तुरंत उसे जू जाने के लिए छुट्टी वक़्त बोल दिया और वह नहीं मानी लेकिन दुबारा मनाने पर वह सहमत हो गई ।
चिड़ियाघर जाते वक़्त मैंने अपना बैग खाने की चीजों से भर लिया । हम दोनों एक - दूसरे की हाथ में हाथ डाल लगभग एक घंटे घूमते रहे और फिर जू के घने पेड़ों के बीच छांव में बैठ गए ; यहां पर और भी प्रेमी जोड़े थे , जू का यह भाग जेल के सभी जानवरों से बहुत दूर था इसीलिए प्रेमालाप करने का यह स्थान बन चुका था ।
हम दोनों केक खाए और फिर मैं जमीन पर लेट गया ; वह पेड़ से अड़ कर बैठी और अपने गोद में रखे मेरे सिर से बालों को अपनी अंगुलियों से सहलाती हुई बातचीत करने लगी । कई घंटे साथ गुजारने का यह हम दोनों का पहला अवसर था इसलिए इसे गवाना नहीं चाहते थे । वह अपने परिवार और सहेलियों के बारे में बताती गई और मैं सुनता रहा । मुझे तो बस उसके बोलने का टोन बहुत भा रहा था ; चाहे वह कुछ भी बोलती जाए , मुझे तो उसके बातें सुनना ही अच्छा लगता था । कुछ देर बाद मैं भी उठ कर बैठ गया । आसपास हरे - भरे पेड़ - पौधे थे , कुछ जंगली सुन्दर फूल भी उगे हुए थे और सूरज के प्रकाश की किरण पेड़ के पत्तों के बीच से होकर धरती पर पड़ रही थी ; आसपास शांति से भरे नजारे हमें मंत्रमुग्ध कर रहे थे । जी कर रहा था बस यूं ही बाहों में बाहें डाल बैठ बात करते रहें ।
हम दोनों की नजरें एक प्रेमी युगल पर जा टिकी जो एक दूसरे को बाहों में भरे हुए थे और फिर चुम्बन करने लगे । उन दोनों के प्यार को देखकर ऋतु मेरे आंखों में टकटकी निगाहों से देखने लगी और कुछ देर बाद मेरे होठों पर अपना होंठ रख दी और जो अभी - अभी देखी थी , उस कार्य में लिप्त हो गई ।
उसके होंठ जब मेरे होंठ से सटे तो मेरी सांसें बहुत तेज़ हो गई और दिल की धड़कनें अप्रत्याशित दर से बढ़ने लगी ; चेहरे पर पसीना आने लगा , इस तरह के अनुभव मुझे मेरी पूरी जिंदगी में नहीं हुए थे । हम दोनों बस एक - दूसरे में खो गए । जब पेड़ पर से कुछ पक्षी झुंड बना के फड़फड़ाते हुए उड़ने लगे तो हम दोनों का ध्यान भंग हुआ । बातों - बातों में कब दो घंटे बीत गए , पता ही न चला ।
इस दिन के लंबे वार्तालाप के बाद से हम दोनों एक - दूसरे को अच्छे ढंग से समझने लगे । अब बातचीत काफी बढ़ गई ; आधी रातों में वॉट्सएप पर टेक्स्ट मैसेज जारी रहता । अगले दो महीने में हम दोनों साथ - साथ कई जगह घूमने गए सिनेमा हॉल और पार्क जिसमें सबसे सामान्य जगह था । अब एक दिन भी बात न करते तो चैन न आता ।
एक दिन जब स्कूल से घर गया तो सभी परिवार के लोग खुश थे । पूछने पर मां ने बताया की मेरा एयरफोर्स में जॉब लग गया है , कुछ घंटे पहले ही कॉल लेटर आया है । अब मुझे याद आया कि मैं तो एयरफोर्स के X / Y ग्रुप की परीक्षा दिया था ।
मैं बहुत खुश हुआ कि मेरा बचपन का सपना रक्षा क्षेत्र में जाकर देश की सेवा करने का पूरा हो गया लेकिन फिर ऋतु से दूर जाने के बारे में सोच कर उदास हो गया ।
अब मैं ऋतु को कैसे बतलाऊंगा की मुझे कुछ दिन बाद ही आठ महीनों की ट्रेनिंग के लिए कर्नाटक जाना पड़ेगा । मेरे खून में उससे जुदाई के दर्द का एहसास पूरे बदन में फैल गया ; आखिरकार मैं पूरे आठ महीने उसे बिना देखे कैसे रहूंगा । कई घंटे अब बात भी नहीं हो पाएगी ; ट्रेनिंग कैंप में पहले आठ महीनों की ट्रेनिंग के समय में कोई फोन ले जाने की अनुमति नहीं थी ।
मैं उसे शांति से सब कुछ बतलाना चाहता था इसलिए एक दिन रविवार को ही उसे अपने दोस्त के घर पर ले गया । जब मैंने पूरी बात बतलाई तो उसके आंखों से मोतियों की बरसात होने लगी और वह मुझसे लिपट गई । उसके आंसुओं को पोछते हुए बोला --- " देखो जानू ! ऐसे रोओ मत , नहीं तो मैं देश सेवा करने कैसे जाऊंगा .... तुम्हारे आंसू मुझे कमजोर बना रहे हैं ..... एक एयरफोर्स के जवान की गर्लफ्रेंड कभी कमजोर नहीं हो सकती है । "
वह रोना बंद की और मुझे देखने लगी ।
मैं आगे कहने लगा --- " आठ महीनों बाद आऊंगा तो तुम्हारे पिताजी से हमारे शादी के बारे में बात कर लूंगा ..... वे मान जाएंगे , मेरी जॉब भी तो लग गई है न । "
वह मेरे गालों को चूमने लगी और फिर मेरे सीने से अपना सिर लगा मेरे दिल की धड़कनों को सुनने लगी । ऋतु के मोहब्बत को देखकर मेरे आंखों से भी कुछ आंसू गिर पड़े और उसे अपने बाहों में थामते हुए बोला ---- " जानू ! तुम मेरा इंतजार करना .... मैं वापस आऊंगा तुम्हें लेने ..... तुम मेरा इंतजार करोगी न ? बोलो ? "
वो सिर्फ हां बोली कि उसका गला जुदाई के अनचाहे भावनाओं के कारण बैठ गया ।
अगले दिन की फ्लाइट पकड़कर मैं एयरफोर्स कैंप पर पहुंच गया ; रास्ते भर सिर्फ अपने जीवनसाथी के बारे में ही सोचता रहा । यहां बहुत ही कड़े नियम - कानून थे ; शाम में रोज जूते साफ कर पोलिश करना , दिन में कपड़े चमकाना , दाढ़ी - मूंछ बनाना ढेर तरह के काम थे । सुबह - सुबह कई किलोमीटर दौड़ कर तो मैं बहुत थक जाता था ; कुछ दिन तो मुझे लगा जैसे किसी जेल में हूं , सारी स्वतंत्रता छीन ली गई । खाने का समय निर्धारित था ; शुरू में तीन - चार बार मैं निर्धारित समय पर कैंटीन नहीं गया तो मुझे शाम में भूखे रहना पड़ा ।
एक बार तो मैं गंदे जूते पहन ट्रेनिंग ग्राउंड में चला गया ; मुझे बहुत डांट पड़ी और मुझे बार - बार दिन में रिपोर्टिंग करने डेस्क पर जाना पड़ता ; यह एक तरह का मानसिक टॉर्चर था ताकि प्रशिक्षु फिर से ऐसी हरकत दोबारा न करें । रात में जैसे ही बिस्तर पर लेटता , कुछ सेकंड में ही नींद के आगोश में डूब जाता और सुबह ही उठता और फिर से वही कठिन प्रशिक्षण चालू हो जाता । बहुत ही व्यस्तता वाला जीवन था ; और तो और टेक्निकल ग्रुप में होने के कारण कई घंटो की पढ़ाई भी करनी पड़ती थी ।
एक महीने तो ऋतु और परिवार वालों की याद बहुत आई लेकिन फिर धीरे - धीरे उस माहौल में ढलने लगा ; दूसरे राज्यों से आए नए - नए दोस्त बने तथा बातचीत और हंसी - मजाक होने लगी । दोपहर में कभी - कभी अपनी मां को फोन करता था । फोन बूथ पर एक कॉल करने के लिए लंबा लाइन में लगना पड़ता था तब जाके कुछ मिनट बात हो पाती थी । भीड़ इतनी की फोन बूथ में घुसते ही दूसरा लड़का निकलने के लिए बोलने लगता ।
एक दिन CDS का एग्जाम देने के लिए मुझे कैंप से बाहर निकलने का अवसर मिला । परीक्षा केंद्र कैंप से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर था ; बस में बैठे - बैठे सोच रहा था कि भाग कर वापस अपने शहर चला जाऊं और फिर ऋतु को अपने सीने से लगा लूं लेकिन देश सेवा सर्वोपरि है । प्यार बहुत ही कीमती है लेकिन अगर किसी देशभक्त रक्षक को मातृभूमि और प्यार में से किसी एक को चुनना पड़े तो वह बेशक अपने देश की मिट्टी को ही चुनेगा ।
कभी - कभी कैंप के टेलीफोन बूथ पर ऋतु से कुछ मिनट बात हो जाती थी लेकिन कैंप में आने के तीन महीने बाद उसका मोबाइल हमेशा ऑफ ही आने लगा । किसी प्रकार अपना ट्रेनिंग के आठ महीने गुजार कर वापस फ्लाइट से आने लगा ; सोच रहा था उसके सामने वर्दी - टोपी में जाऊं या बस नॉर्मल कपड़ों में ; कहीं वो मेरे छोटे - छोटे बालों को देखकर हंस दी तो ..... ; इसी तरह के विचारों से मेरा दिमाग रास्ते भार भरे हुए थे ।
घर पहुंचकर सीधे मैं अपने स्कूल गया ; अत्यन्त असीम आनंद से मेरा हृदय भरा हुआ था । आशुतोष सर से मिला तो उन्होंने मुझे बताया कि ऋतु की शादी मेरे जाने के लगभग पांच महीने पहले ही हो गई । ये सुनकर तो मेरे दिल को धक्का लगा ; ऐसा लग जैसे मेरे शरीर से आत्मा निकल गई और मैं बेजान हो गया हूं । मेरे खड़ा - खड़ा लड़खड़ाने लगा , आशुतोष सर मुझे संभालते हुए पास की कुर्सी पर बैठा दिए ।
वे मुझे एक चिठ्ठी देते हुए बोले -- " यह तुम्हारे लिए वो छोड़ के गई है .....मुझे यह चिठ्ठी देते हुए बोली थी --" यह कागच का कोई टुकड़ा नहीं बल्कि मेरा दिल हैं "
वह शादी में बहुत नाखुश दिख रही थी ।
मैं लिफाफा खोल पढ़ने लगा --
साहिल धवन ! मैं तुमसे बहुत ही प्यार करती हूं ।
जो पल मैंने तुम्हारे साथ जिया , वो मेरी जिंदगी के सुनहरे पल थे ; इनको मैं कभी भुला नहीं सकती हूं । अगर तुम्हारी यादें जिस दिन मेरे दिलो - दिमाग से निकल जाएगी तो मेरे अंदर के प्राण को मेरे शरीर से बाहर निकलने में एक सेकंड भी नहीं लगेंगे ।
ये कभी अपने ख्याल में मत लाना की मैं तुम्हें धोखा दे जा रही हूं । तुम्हारे जाने के बाद मैंने अपने ख्वाबों में तुम्हारे साथ ही अपना सारा पल बिताई हूं .... सिर्फ मैं और तुम । एक दिन स्कूल से घर अाई तो देखी लड़के वाले मुझे देखने आए हैं ; लड़के के पिताजी दिल्ली में रहते हैं , मेरे पापा के बचपन के मित्र हैं । मैंने साफ़ - साफ़ शादी करने से इंकार कर दिया ; मां कारण पूछी तो तुम्हारे बारे में सब बता दी ।
उस दिन के बाद से मेरा घर से निकलना बंद हो गया । कुछ दिन बाद मां मेरी शादी तुमसे कराने के लिए मान गई और तुमसे मिलना चाहतीं थीं लेकिन तुम्हें आने की इजाजत थी ही नहीं तो कैसे आते ; वैसे भी जब मैंने बताया कि तुम किसी दूसरी जाति के हो तो पिताजी आग बबूला हो गए और अपने रूढ़िवादी विचारों का बोझ मेरे सिर पर डाल मुझे एक अनजान लड़के के साथ मेरा हाथ सौंप अपने घर से रवाना करने की ठान लिए ।
तुम्हारी यादें मुझे जिंदगी भर बहुत तड़पाएगी ।
मुझे भूल जाना और हां ! अपने देश की सेवा जी - जान लगाकर करना ।
ढेर सारा प्यार मिले इस जमाने का तुम्हें ।
Love you so much Sahil Dhawan !
❤️❤️❤️💞🌹💞❤️❤️❤️
उसके लिखे प्यार के शब्दों को पढ़कर मेरे आंखों के आंसू बहने की इजाजत मांगे बिना नदी के धारा की तरह बहने लगें । समय हर जख्म को भर देता है इसी ख्याल से अपना कदमों को आगे बढ़ाया और चिठ्ठी को अपने दिल से लगा जाने लगा ।
पांच - छह दिन तो परिवार से सदस्यों और दोस्तों से साथ बीत गए । मुझे फिर से आठ महीनों की ट्रेनिंग के लिए जाना था ; यह प्रशिक्षण का दूसरा चरण था इसलिए परिवार वाले मेरे साथ अच्छे से समय बिताना चाहते थे । मां ने लालकिला और इंडिया गेट देखने की इच्छा जताई तो हम सभी दो दिन बाद दिल्ली के लिए रवाना हो गए ।
जब किसी का सपना पूरा होता है न तो उसे एक अजीब तरह का अनुभव होता है । मेरी मां जब लालकिले को देखी तो उन्हें चक्कर आ गया और उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनके बचपन का स्वपन पूरा हो गया है जिसके बारे में सिर्फ किताबों में ही पढ़ती थीं । हम सब जंतर मंतर और लोटस टेंपल भी गए । नए - नए अनुभवों से परिचय होने के कारण मेरा भारी दिल हल्का होने लगा ।
एक शाम मैं अपने होटल से निकल बाहर सड़क पर अकेला ही टहल रहा था ; तभी देखा सड़क के दूसरे तरफ़ से ऋतु आ रही है ; वह साड़ी में और भी सुन्दर लग रही थी , एक पल के लिए मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वह ऋतु है लेकिन ध्यान से देखने पर मालूम हो गया । मैं उसके घर का पता लगाना चाहता था इसलिए उसको टोका नहीं ।
मैं सावधानीपूर्वक उसका पीछा करने लगा ; वह एक अपार्टमेंट के नौवें तल्ले पर जाकर एक फ्लैट में जा घुसी । मेरा दिल खुश हुआ , यह जानकर कि उसका पति अमीर है और वह खुश है । कुछ देर बाद ढेर सारे लड़के - लड़कियों का आगमन होने लगा ; सब उसी फ्लैट में घुस रहे थे जिसमें वह गई थी । मैं तो अचंभित हो गया , आखिर बात क्या है । उन लोगों के साथ मैं भी अंदर चला गया तो देखा सामने वह अपने कपड़े उतार एक स्पेशल पोज में बैठी हुई है और लड़के - लड़कियां पीछे और दो पुरुष आगे बैठ बड़े - बड़े कैनवास पर उसके नंगे बदन को देख पेंटिंग बना रहे हैं ।
मुझे वहां का एक स्टाफ देख लिया तो मैंने उसे बताया कि मैं उसका पति हूं ; वह स्टाफ बोलने लगा --- " आप गलत मत समझिए .... यहां कोई भी गलत काम नहीं होता है ..... यहां art college के छात्र शाम में आकर पेंटिंग का ट्यूशन लेते हैं ..... आपकी बीबी को पोज में बैठना या खड़ा होना पड़ता है और सभी देख कर पेंटिंग बनाते हैं , बदले में आपकी बीबी को पैसे मिलते हैं । "
जब एक घंटे के बाद वह मुझे केबिन में बैठा देखी तो वह चौंक गई । हम दोनों बाहर निकल एक रेस्टोरेंट में भोजन करने चले गए । वह उदास हो मुझे बताने लगी --- " " शादी के समय मेरे पति की नई - नई एक IT
कंपनी में नौकरी लगी थी लेकिन दो महीने बाद ही उन्होंने कुछ और कर्मचारियों के साथ मिलकर कोई छोटा - मोटा घोटाला कर दिया तो कंपनी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया ...... दहेज में पिताजी ने दस लाख दिए लेकिन हमें बाद में पता चला कि ससुर के सिर पर भारी कर्ज था तो सारा पैसा उसी में चला गया ..... दिल्ली का घर बेच सास - ससुर गांव चले गए और हम दोनों पति - पत्नी को यही छोड़ गए । " "
वेटर के आने पर वह चुप हो गई । मैंने ऑर्डर दिया और ऋतु से बोला --- " तब तुम बिहार माता - पिता के पास चले जाओ या फिर अपने माता - पिता से मदद क्यूं नहीं मांगती ? "
वह रोते हुए कहने लगी -- " " अभी मेरे दो बहनों की शादी होनी बाकी है ..... वे दहेज के लिए एक - एक करके पैसे इकट्ठा कर रहे हैं ... मैं उनपर बोझ नहीं बनना चाहती हूं । " "
मैं उसके दाईं हथेली पर अपना हाथ रख कर बोलने लगा --- " ' तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद कर दूं ..... यहां तो मुझे कोई पहचानता नहीं है लेकिन अगर तुम पटना आ जाओ तो सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दूंगा .... ढेर सारे लोगों की मेरी पहचान कब काम आएगी ...... " '
वह मेरे हाथ पर से अपना हाथ हटाते हुए बोली --- " " नहीं साहिल , मैं तुमसे मदद नहीं ले सकती ..... मेरे पति बहुत ही शकी मिजाज के हैं .... अगर उन्हें पता चल गया कि हम दोनों कभी एक दूसरे के थे .... वो तो मुझे जान से मार देंगे । " "
" ' तब तुम क्या करोगी , ऐसे ही नग्न हो सभी के सामने बैठते रहोगी ?? बोलो ? " ' मैं चिढ़ते हुए बोला
" " मुझे अपने हाल पर छोड़ दो , साहिल ..... जब किस्मत ने मुझे शादी के बंधन में बांध दिया है तो उसके साथ जिंदगी भर निभानी ही है , चाहे किसी भी तरह जिए ..... बस जीते जाना है .... बस जीते जाना है । " "
" ' तुम्हारे पति कोई दूसरा काम क्यूं नहीं करते ? " ' मैं उत्सुकतावश पूछ दिया ।
" " घोटाला करने के कारण उनको पांच महीनों की जेल तो हुई ही और उन पर जुर्माना भी ठोका गया .... जेल से घर आने के बाद नकारात्मक मनोदशा हो गई है ... सिर्फ शराब के नशे में ही डूबे रहते हैं .... जब एक बार बेईमानी का कलंक लगता है न तो उसको मिटने में वर्षों लग जाते हैं । " "
अब रात होने लगी थी इसलिए वह अपने घर जाने की जिद करने लगी । हम दोनों साथ - साथ सड़क के किनारे चलने लगे । मैं उससे कुछ बोल ही रहा था कि अचानक वह तेज चलती मार्शल वाहन के सामने दौड़ते हुए आ गई ; ये सब इतना जल्दी हुआ की सब सपना जैसा मालूम पड़ा । वो खून से लथपथ सड़क पर पड़े हुए मुझे देखते रही और मेरे पास जाने पर लड़खड़ाती ज़बान से love you कह अपनी अंतिम सांसे ली।
मैं फिर से अपनी मातृभूमि की सेवा करने के प्रशिक्षण के लिए फिर से बैंगलोर चला गया । अक्सर सोच में पड़ जाता हूं ---- आखिर भगवान किसी की झोली को सिर्फ दर्द ही दर्द से कैसे भर सकता है ..... रब का दिल पत्थर जितना कठोर नहीं हो सकता , बिल्कुल नहीं ???
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---------दिल के चोरी की सजा ---------
रबिर बहुत ही शांत स्वभाव का अंतर्मुखी लड़का था । उसे दिन भर कुछ न कुछ किताबी ज्ञान की बातों से खुद को ओढ़ने की आदत थी ; कभी वह कॉलेज के की किताबों में तो कभी प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकों के ज्ञान के सागर में गोते लगाते रहता था और जब बोरियत का एहसास उसे होता तो बालकनी ( Balcony ) की खिड़की से बाहर की दुनिया को टकटकी निगाहों से देखने लगता ; कभी सड़क पर चाहते अनजान चेहरों को देखता तो कभी गली के कुत्तों के झगड़े और जब उसका ध्यान बाहर खड़े अनगिनत गगनचुंबी इमारतों की ओर जाता तो कभी - कभी उसका मन दुखित हो जाता और सोचने लगता -- काश ! मेरा भी एक अपना घर होता ; जब चाहे तब छत पर जाता , जिसे चाहे उसे बुलाता और खासकर सुजाता को बुलाता ; पढ़ने में इतना तेज कैसे है वह । फिर, मकानमालिक को मन ही मन गाली देने लगता , उसकी बेटी लड़कों - लड़कियों के साथ घर में पार्टी मनाए , चाहे घूमे - फिरे लेकिन किरायदार पर ढेर सारे बंधन , कोई लड़का - लड़की साथ में मिल नहीं सकते हैं : अरे, son of polyandry , son of bitch , house owner ! मैं किसी लड़की को बुलाऊं या लड़के को , उससे मकानमालिक को क्या मतलब है । यही सब सोच उसका खून खौलने लगता तो रसोई घर में जाकर फ्रिज से ठंडा पानी पी खुद को ठंडा करता ।
रबिर की एक महीने पहले बाइक चोरी हो गई थी जिसके कारण उसे कॉलेज टेंपो से जाना पड़ता था ; उसे लोगों से सट कर बैठना पड़ता था तो उसे बहुत गुस्सा आता था : चिढ़ आए भी क्यूं न , नहा - धोकर घर से निकलते ही टेंपो में अक्सर बैठे मजदूर या दूसरे छोटे कामगारों के शरीर के पसीने रबीर के शर्ट को दुर्गन्धित कर देते थे ।
स्पोर्ट्स बाइक उसने लोन पर खरीद रखी थी ; वह BBA के छात्रों को एक कोचिंग में पढ़ाने गया था और एक ही जगह पर प्रतिदिन बाइक लगा देख कोई चोर उसका आने - जाने के समय का खबर रखने लगा और दसवें दिन बाइक चोरी कर ली ; इस घटना को हुए पांच महीने बीत चुके थे लेकिन लोन के रकम के बोझ से वह अभी भी दबा हुआ था ।
दो दिन पहले की घटना ने उसका दिल तोड़ दिया । कॉलेज में एक लड़की के चक्कर में उसका एक दोस्त और फिजिक्स डिपार्टमेंट के एक लड़के में मारपीट हो गई जिसके कारण उसके दोस्त का सिर फट गया और वह एक निजी अस्पताल में भर्ती था । इसी दोस्त से मिलकर वह देर रात करीब ग्यारह बजे अपने घर वापस आ रहा था ; रास्ते में वह फोन पर बात करते - करते जा रहा था कि तभी एक तेज चलती बाइक उसके पास से गुजरी और उस पर पीछे बैठा लड़का उसका स्मार्टफोन छीन बड़ी तेजी से निकल गया ।
उसे ज्यादा दुःख तो लोगों का रवैया देखकर हुआ ; जैसे ही रबीर चोर - चोर चिल्लाने लगा और दौड़कर बाइक का पीछा करने के लिए अपने कदमों को आगे बढ़ाया की पास के सड़क के गड्ढे में उसका पैर फंसने से वह गिर पड़ा । उसे गिरा और चोर - चोर चिल्लाता देख कई लोगों के मुंह से हंसी निकल गई ; शायद उन सब ने ऐसे बिना सांस लिए किसी को चिल्लाते हुए कभी न सुना था । आगे कई लोग थे जो उस बाइक को रोक सकते थे लेकिन उन सब ने जरा भी प्रयास न किया । लोगों के द्वारा अपना खिल्ली उड़ाता हुआ देखकर उसमें समाज के खिलाफ बदले की भावना घर कर गई ।
वह फिर उठ कर थाने में मोबाइल चोरी का मामला दर्ज कराने जाने लगा । रास्ते भर उसे यही अफ़सोस हो रहा था बाइक का नंबर देख पाता । सड़क पर थोड़ा अंधेरा था इसलिए वह चोरों के बाइक का नंबर भी नहीं देख पाया था ।
थानेदार उसको देखते ही पहचान गया और चिढ़ते हुए बोला -- " तुम्हारा बाइक अभी नहीं मिला है .... तुम सब का क्या है ! चले आते हो मुंह उठाकर रिपोर्ट लिखाने । "
तभी पास खड़ा हवालदार थानेदार को बोलने लगा -- " साहब ! लड़का बहुत दुःखी लग रहा है ... इतनी रात को बाइक के बारे में पूछने थोड़े ही न आया होगा ... एक बार सुन तो लीजिए .... क्या बोलना चाहता है यह लड़का ?"
रबीर अपने मोटरसाइकिल की चोरी का केस दर्ज कराया था लेकिन बिहार पुलिस अपने काम को करने में कितनी कोताही बरतती है इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की पांच महीने बीतने के बाद भी उसके चोरी किए गए बाइक के बारे में कुछ भी पता न चल सका ।
रबिर अपने बाइक की कोई न खबर पाकर भी पुलिस के काम करने के तरीके से संतुष्ट हो जाता लेकिन वह बार - बार सोचता था कि किसी नेता के लड़के का बाइक चोरी होने पर कुछ दिनों के अंदर कैसे मिल जाता है । कुछ दिनों पहले ही वह न्यूज देख रहा था ; किसी नेताजी के पत्नी का पर्स रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरते वक़्त चोरी हो गया था और वह पर्स सिर्फ एक घंटे के अंदर ही मिल गया : : बड़े - बड़े लोगों के चोरी किए गए सामान पुलिस को जल्दी मिल जाते हैं लेकिन एक गरीब - सामान्य आदमी का नहीं मिलता ; वाह रेे कानून तेरी महिमा अपरंपार है !!!
रबिर अपने स्मार्टफोन की चोरी का केस दर्ज कराकर घर वापस आ गया और अगले दिन मोबाइल के सारे कागजात भी जमा करा आया । अब उसे MBA की पढ़ाई में मोबाइल खोने की वजह से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा । यह स्मार्टफोन 14,000 रुपयों का था ; इसको खरीदने के लिए उसने 7000 रुपए अपने एक दोस्त से उधार लिए थे जो अभी तक चूकता नहीं हुए थे ।
बीस दिन बीत गए लेकिन मोबाइल का कुछ पता नहीं चला । उसे पुलिस के कार्यशैली पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था ; सोचने लगा आखिरकार टेक्नोलॉजी का जमाना है फिर भी मोबाइल का कुछ अता पता नहीं ।
एक तो मुश्किल से वह गांव से शहर में पढ़ने आया था लेकिन शहर की आवो - हवा से उसका जीना दुर्भर हो गया था ; एक तो गरीबी सता रही थी और दूसरी शहर के चोर ।
एक रात वह टहलते - टहलते अपने घर के गली से थोड़े दूर मेन रोड पर आ गया । अंधेरा बहुत था ; उसे ध्यान ही न रहा कहां जा रहा है , सिर्फ अपने विचारों में ही खोया हुआ था । तीन लोग आए और उसे पकड़कर उससे पैसे मांगने लगे ; फिर एक गुंडा उसका पॉकेट चेक करने लगा लेकिन कुछ न मिला तो रबिर को भिखारी बोल जाने लगे ।
रबिर दौड़ कर उनके पीछे गया और बोलने लगा --- " मुझे भी अपने गैंग में शामिल कर लो .... मैं भी चोरी करूंगा । " रबिर के अंदर के गुस्से को देखकर वे तीनों सहमत हो गए । अगले दिन उन तीनों से वार्तालाप करने के बाद रबिर को पता चला कि वे कैसे इस चोरी और लूटपाट के धंधे में आए ।
इसमें दो अमीर शहजादे थे लेकिन जब उनको अपने पिताजी से ड्रग्स के नशे के लिए पैसे नहीं मिलने लगे तो वे लूटपाट के धंधे में शामिल हो गए और अंतिम तीसरा लड़का गरीब था और डोम लोगों के गंदे चौल में रहता था ; पहले वह एक फ्लैट में रहता था लेकिन तीन महीनों का किराया गिरने के बाद मकानमालिक एक रात अपने लोगों के साथ उनके फ्लैट में घुस तोड़ - फोड़ मचा दिया और उसकी मां के साथ बहुत ही बदसुलूकी की । इसी कारण अगले दिन वह अपनी मां के साथ जल्दबाजी में इस गन्दी चौल में रहने लगा ; तब से वह वही रह रहा था ।
अब चारों के बीच चोरी की एक नई योजना बनने लगी । रबिर अपने गली में रहने वाले एक अमीर दंपत्ति के बारे में तीनों को बताने लगा -- " देखो! उनके घर में सिर्फ तीन जन ही हैं :- श्रीवास्तव जी दिनभर ऑफिस में रहते हैं और उनकी पत्नी आजकल सावन में रोज किसी न किसी के यहां शिव चर्चा में जाते रहती हैं और रही बात श्रीवास्तव जी के बूढ़े पिताजी की तो , उनको तो ठीक से दिखाई भी नहीं पड़ता है । "
तभी एक लड़का सवाल किया -- " अरे ! लेकिन कोई बेटा - बेटी तो होगा न , श्रीवास्तव का ? "
रबिर आगे बोलने लगा -- " उनका एक बेटा बाहर रहता है और उनकी इकलौती बेटी का शादी हो चुका है , समझे ! "
अगले दिन श्रीवास्तव जी के घर के चारों ओर वे सब चक्कर लगाकर आवश्यक सूचनाएं एकत्रित करने लगे और पांच दिन बाद अच्छे कपड़े पहन लग गए काम पर । घर में दोपहर को सिर्फ बूढ़ा ही था । दोनों अमीर लड़का अपने हाथ में एक - एक रजिस्टर लेकर बूढ़ा को बाहर बुला बातों में फंसाने लगा --- " देखिए , चाचा ! हम चारों सरकार की तरफ से आए हैं ..... आपकी उम्र साठ के ऊपर हो चुकी है तो आपको बुजुर्ग पेंशन मिलेगा .... इसी का फॉर्म भर रहे हैं घर - घर जाकर । "
वो बूढ़ा ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सकता था इसलिए वह उन चारों को बरामदे में बुलाकर बैठाया ।
दोनों अमीर शहजादे बारी - बारी से सभी सदस्यों का नाम , काम , पता ये सब पूछने में बूढ़े को उलझा लिए और उधर धीरे से खिसककर बाकी दो कमरे में घुस गए ।
सबसे पहले रबिर की नजर एक टेबुल पर रखे लैपटॉप पर गई , वह उठाकर अपने साथी को दे दिया और एक बड़े टिन के बक्से को खोलने लगा ; कपड़ों को हटा - हटा देखने पर उन दोनों को लाखों रुपयों के गहने हाथ लगे । रबिर बहुत ही आराम से कपड़ों को सजाने लगा जैसे पहले था और फिर गहनों को अपने बैग में रखकर बाहर आने लगा तब रबिर को ख्याल आया कि अगर लैपटॉप श्रीवास्तव जी के परिवार को नहीं मिला तो तुरंत चोरी का मामला सभी के प्रकाश में आ जाएगा लेकिन गहनें कभी ढूंढेंगे तभी जाकर मालूम होगा कि चोरी हुई है । वह लैपटॉप अपने चोर साथी से छीन वही वापस रख दिया और चुपके से बुजुर्ग के पीछे आ खड़ा हो गया ।
फिर पेंशन हर महीने मिलने का बुजुर्ग को आश्वस्त कर चारों चल पड़े । उन सब के जाने के कुछ घंटे बाद ही बूढ़ा सब कुछ भूल गया -- अल्जाइमर का शिकार से वो लाचार था ।
फिर पेंशन हर महीने मिलने का बुजुर्ग को आश्वस्त कर चारों चल पड़े । उन सब के जाने के कुछ घंटे बाद ही बूढ़ा सब कुछ भूल गया -- अल्जाइमर का शिकार से वो लाचार था ।
ये चोरी सफल हो गई । लाखों की चोरी कर चारों ने अपने डोम की गन्दी बस्ती वाले अड्डे पर जाकर खूब मज़े करने लगे । दोनों अमीर लड़का ड्रग्स खरीदकर सूंघा और कोई अजनबी दुनिया में खो गया जहां कोई दर्द नहीं , जहां सिर्फ अपने अनुसार ही सारे काम होते हैं -- ख्वाबों की दुनिया । रबिर चार - पांच दिन के बाद एक बाइक और iphone खरीद लिया और चौथा गरीब लड़का अपने घर एक बड़ा सा टीवी ले आया । ये एक बड़ी चोरी थी इसीलिए उन सब को दो महीने कोई चोरी करने की जरूरत न पड़ी । बस दारू और मुर्गा खाते रहो , यही उनकी दुनिया थी । रबिर अपने कॉलेज जाना छोड़ शराब के नशे में डूब गया ।
दो महीने बाद रबिर के गली में एक शाम हंगामा मच गया । पुलिस बुलाकर हंगामा मचाने वाली और कोई नहीं बल्कि श्रीवास्तव जी की पत्नी थी । जब उन्होंने शादी में शरीक होने के लिए तैयार होकर गहने ढूंढने लगी तो मिला नहीं , तब उनको पता चला गहनें चोरी हो गए हैं । जब पुलिस ने पूछा शक किस पर है तो उन्होंने शिव चर्चा में अाई महिलाओं की ओर इशारा करते हुए बोली --- " मेरे घर में कोई नहीं आता है सिवाय गली के महिलाओं के ..... इस सप्ताह चार बार शिव चर्चा करवाई थी तब गली के ढेर सारी महिलाओं को बुलाई थी ..... मुझे लगता है चोर कोई उन्हीं औरतों में से कोई है । "
पुलिस इसी दिशा में छानबीन करना चालू कर दी पर कुछ दिनों के बाद थकने लगी । कुछ दिन के बाद दो अमीर लड़के के माता - पिता को भनक लग गई की उनका बेटा ड्रग्स का आदी हो चुका है इसलिए उन्होंने उन दोनों में सुधार लाने के लिए rehabilitation centre मे भेज दिए । अब रबिर और उसका एक साथी गैंग में बच गए ।
उन दोनों ने एक और चोरी करने का निर्णय किया । रात में काली मंदिर के पास खड़े हो किसी अकेले मुल्ले का इंतजार कर रहे थे ; दो कार गुजरी ; फिर एक हवाई जहाज के स्पीड से चलती एक बाइक और फिर एक पुलिस की गाड़ी । दोनों पुलिस के गाड़ी के सायरन को सुनकर बगल के गली में अंधेरे में चले गए फिर दोबारा वही आ इंतजार कर रहे थे कि एक लड़की धीरे - धीरे स्कूटी चलाती हुए आने लगी ।
दोनों दौड़कर उससे रुकवाए और गले में लटकता पर्स छीनने - झपटने लगे ; वह लड़की चिल्लाई लेकिन वहां मेन रोड पर कोई घर नहीं था सिर्फ दुकानें ही थी जो रात में बंद थी । दोनों उस लड़की का पर्स छीन लिए तो वह लड़की अपना हेलमेट उतारी ही थी कि स्कूटी लड़खड़ाने से वह गिर गई ।
रबिर की नजर जब उस लड़की के मासूम चेहरे पर पड़ी तो वह भौचक्का हो बस उसके चेहरे को देखता ही रह गया ; वह उन दोनों को गाली दिए जा रही थी लेकिन रबिर के कानों को उस लड़की की बातें तो संगीत सी मालूम पड़ रही थी ।
रबिर उसकी स्कूटी को उठाने लगे तभी उसका दोस्त बोला --- " अरे भाई ! ये तू क्या कर रहा है ?? भाग , नहीं तो पुलिस आ जाएगी । " लेकिन रबिर स्कूटी को उठाकर ही दम लिया । लड़की का पैर स्कूटी से दबने के कारण वह जमीन पर से उठ नहीं पाई और पैर के दर्द से तड़पने लगी ; उस लड़की का दर्द देख अचानक रबिर के हृदय में अनजान भावनाओं का सागर बहने लगा , उसे तुरंत चोरी - डकैती पाप लगने लगी तभी एक आदमी दूर से दौड़ता हुआ आने लगा । उसको देख रबिर का दोस्त उसका हाथ जबरदस्ती पकड़कर दौड़ने लगा ; तब जाके रबिर अपने ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकला और पकड़ाने के डर से बगल वाली गली के अंधेरे में भागते हुए डोम के चौल पहुंच गया जहां रबिर का दोस्त रहता था ।
रबिर पर्स खोला तो उसके हाथ कुछ चार - पांच हजार रूपए और आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और एक आईडी कार्ड भी लगी । Id card एक प्राइवेट हॉस्पिटल की थी जिस पर लिखा हुआ था ---
डॉ० सीमा कुमारी , Psychoanalyst
और फिर हॉस्पिटल का नाम - पता लिखा हुआ था ।
रबिर अपने दोस्त के हाथों एक रुपया भी नहीं लगने दिया और उसके आंखों में बस सीमा का मासूम चेहरा ही तैर रहा था ; उसका हृदय परिवर्तन हो गया और वह पर्स वापस लौटाने का दृढ़ निश्चय कर लिया । रात में उसे नींद नहीं आ रही थी ; उसके कानों में सिर्फ सीमा के चीखने - चिल्लाने और पैर के दर्द से तड़पने की आवाजें गूंजने लगी और जब भी वह अपनी आंखें मूंद सोने का प्रयास करता , सीमा की सुंदर झील की गहराई लिए आंखें उसके दिल की धड़कनों को बढ़ा देती । किसी प्रकार करवटें बदलते - बदलते उसने रात गुजारी ।
रबिर अपने दोस्त के हाथों एक रुपया भी नहीं लगने दिया और उसके आंखों में बस सीमा का मासूम चेहरा ही तैर रहा था ; उसका हृदय परिवर्तन हो गया और वह पर्स वापस लौटाने का दृढ़ निश्चय कर लिया । रात में उसे नींद नहीं आ रही थी ; उसके कानों में सिर्फ सीमा के चीखने - चिल्लाने और पैर के दर्द से तड़पने की आवाजें गूंजने लगी और जब भी वह अपनी आंखें मूंद सोने का प्रयास करता , सीमा की सुंदर झील की गहराई लिए आंखें उसके दिल की धड़कनों को बढ़ा देती । किसी प्रकार करवटें बदलते - बदलते उसने रात गुजारी ।
अगले दिन रबिर हॉस्पिटल में सीमा के वार्ड में पहुंच गया तो देखा डॉक्टर सीमा से मिलने के लिए लोगों की भीड़ जमा है , फिर भी वह रजिस्टर में अपना नाम लिखवा अपनी बारी का इंतजार करने लगा । दो घंटों के बाद उसका नाम पुकारा गया तो वह अंदर गया । वह अपने बैग से निकलकर सीमा को उसका महिला पर्स देने लगा तो सीमा एक दम से चौंक गई और उसका खुशी का ठिकाना न रहा ।
कुछ देर बाद एक लंबी सांस भरते हुए बोली --- " तुमको ये कहां से मिला ? .... मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता , इसमें मेरे कई महत्वपूर्ण आईडी कार्ड और कागजात थे । "
Thanks
रबिर अफ़सोस भरे शब्दों में बोलने लगा --- " थैंक्स कहने की कोई जरूरत नहीं है ..... चोरी किया हुआ सामान वापस लौटाने में थैंक्स कैसा !!! "
सीमा उसकी आंखों में देखते हुए बोली --- " अच्छा , तुम ही थे रात में मुंह को गमछी से ढके ! "
फिर चिढ़ते हुए बोलने लगी --- " अभी जवान हो .... भगवान ने हाथ - पैर दिए हैं तो कमाते क्यूं नहीं ?? "
वह पर्स से नोट निकालते हुए बोली --- " तुम चोर लोग पैसों के लिए जीते हो न .... तो ये लो तुम्हारे पैसे .... सब रख लो । "
रबिर अपनी आंखों को ऊपर करके सीमा के चेहरे की ओर देखा और फिर आंखों को जमीन की ओर करते हुए बोला --- " नहीं चाहिए मुझे पैसे ..... अब मैं चोर नहीं रहा , पूरी तरह बदल गया हूं । "
सीमा के पूछने पर रबिर अपने बारे में सब कुछ बता दिया । सीमा उदासी से भर कर बोली --- " तुम अपना का एग्जाम फॉर्म भी नहीं भरे , तो समझो की तुम कॉलेज छोड़ ही दिए ...... तुम मेरे वार्ड में हेल्पर ( सहायक ) का काम कर सकते हो , पुराना वाला सहायक अपने गांव जा रहा है ।
रबिर मान गया और अगले दिन से काम पड़ लग गया । जितने सारे मरीज सीमा से इलाज के लिए आते , वह उन सब का नाम रजिस्टर पर लिखता और बारी - बारी से उनका नाम पुकारा करता । तीन - चार महीनों में रबिर की जिंदगी पटरी पर वापस आ गई ।
इन महीनों में न जाने कितनी बार दोनों साथ खाना खाए और साथ घूमे भी । सीमा रबिर की ईमानदारी और लगन के साथ काम करने की आदत से बहुत ही प्रभावित थी ।
एक दिन सीमा रबिर से कहने लगी --- " मुझे तुमसे बातें करना बहुत ही अच्छा लगता है , मुझे नहीं पता क्यूं । "
रबिर भी अपने दिल की किताब के पन्नों को हिचकते हुए खोलने लगा --- " मुझे भी आपकी मीठी आवाज सुनने में आंनद आता है ..... जब मैं यहां दिन में काम करता हूं तो बहुत खुश रहता हूं ..... और कोई उदास कैसे रह सकता है , आपकी चेहरे की मुस्कान किसी के भी दिल को छू जाती है । "
रबिर भी अपने दिल की किताब के पन्नों को हिचकते हुए खोलने लगा --- " मुझे भी आपकी मीठी आवाज सुनने में आंनद आता है ..... जब मैं यहां दिन में काम करता हूं तो बहुत खुश रहता हूं ..... और कोई उदास कैसे रह सकता है , आपकी चेहरे की मुस्कान किसी के भी दिल को छू जाती है । "
अगले दिन सीमा सारे मरीज को देखने के बाद अपने केबिन में बैठी हुई थी ; वह रबिर को बुलाई तो कुछ मिनट बाद रबिर आकर कहने लगा --- " हां , बोलिए ! क्या कोई काम था ? "
सीमा रबिर को देखकर मुस्कुराई और हंसने लगी । सीमा को खिलखिलाता देख रबिर की भी हंसी निकल गई ; उसके समझ से बिल्कुल बाहर था की सीमा क्यूं हंसे जा रही थी लेकिन उसकी मुस्कुराहट रबिर के हृदय को भेद रही थी ।
कुछ देर बाद सीमा बोलने लगी --- " तुमको जब बुलाऊंगी तब कोई काम ही होना चाहिए ..... दिल की बातें भी तो कर सकती हूं ; अगर बातचीत नहीं होगा तो एक - दूसरे से हमेशा अनजान ही रहेंगे । "
कुछ दिन बाद एक शाम रबिर ऑफिस बंद कर रहा था कि पीछे से कोई आकर उसे बाहों में समेट लिया ।रबिर थोड़ा घबराया लेकिन हाथों की अंगुलियों से वह पहचान गया कि यह सीमा है । सीमा प्यार के शब्दों में बोलने लगी --- " रबिर ! तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो ..... तुम्हारे साथ घूमना - फिरना मेरे दिल को बहुत भाता है ..... मुझे तुमसे प्यार हो गया है ; यह एहसास मुझे तब हुआ जब तुम पांच दिनों पहले अपने गांव चले गए थे ...... तुम्हारे जाने के बाद मैं तुमसे बातें करने के लिए तड़पने लगी ...... रह - रहकर बस दिमाग में तुम्हारे द्वारा कही बातें ही घूमती रहती थी .... मुझे तन्हाई घेर लेती है रबिर , जब भी तुम मेरे पास नहीं होते हो ..... आजकल दिन में भी तुम्हें अपना बनाने के ख्वाब देखने लगी हूं । "
रबिर मुड़ा तो सीमा उसकी आंखों में आंखें डाल बोलने लगी --- " बोलो , तुम्हें भी मुझसे प्यार है न ?? ...... बोलो ! .... ना मत कहना रबिर ! .... नहीं तो जीते जी मर जाऊंगी । तुम्हारे बिना अब जीवन की कल्पना करना भी नामुमकिन है । "
रबिर अपने दोनों हाथों से उसका मुंह पकड़ा और कहने लगा ---" " मैं तो उस रात तुम्हें देखते ही अपना बना लिया था .... इतने महीनों से तुम मेरे पास थी लेकिन डरता था प्रपोज करने से .... कहीं तुम न कह देती तो पता नहीं क्या होता ! ...... ना सुनने की हिम्मत नहीं थी । " "
सीमा मोहब्बत के इस प्रगाढ़ पल में खो गई और अपना होंठ रबिर के होंठो पर रख चुम्बन करने लगी ; दोनों कुछ मिनटों तक भूल ही गए की दोनों अलग - अलग जिस्म हैं , दो रूह मिलकर एक होने का प्रयास करने लगी । कुछ देर बाद दोनों का दिमाग दिल की भावनाओं पर प्रभाव जमा लिया तो सीमा कहने लगी --- " ये जो तुम्हारे होंठो का स्पर्श मेरे होंठो पर हुआ , उसे मरते दम तक नहीं भूलूंगी । "
इस घटना के अगले दिन सीमा रबिर को अपने केबिन में बुलाई और उसको कामसूत्र का एक किताब देते हुए बोली --- " तुम्हें किसी स्त्री को अच्छे से समझने के लिए ये पुस्तक पढ़ना पड़ेगा ; वरना तुम कभी नहीं समझ पाओगे कि मेरे क्या - क्या ख्वाब हैं ; तुम्हें लड़कियों के शरीर के बारे में थोड़ा भी गहन ज्ञान नहीं है ; इस किताब को लेने से इंकार मत करना । "
रबिर उस किताब को घर जाकर खोल कर देखने लगा और फिर शब्दों को पढ़कर समझने का प्रयास करने लगा । किताब के पन्नों को पलटते - पलटते कब रात बीत गई ; उसे पता ही न चला । जब वह स्त्री - पुरुष शरीर के काम ज्ञान के सागर में गोते लगाकर बाहर निकला तो देखा घड़ी सुबह के चार बता रही है ।
तीन दिनों के बाद रबिर सीमा को वापस किताब देने उसके केबिन में आया और फिर दोनों के बीच कामसूत्र से संबंधित ज्ञान का विचार - विमर्श होने लगा । कुछ मिनटों के बाद दोनों बात करते - करते दिल की भावनाओं में खोने लगे और रबिर का दोनों हाथ सीमा के गालों पर चला गया तथा रबिर और सीमा के होंठों एक - दूसरे से मिलने की इजाजत मांगे बिना ही जा मिले ।
अब दोनों जन के दिल पूरी तरह जुड़ने लगे थे ; जब भी रातों में दोनों की बातें नहीं होती तो तड़पने लगते । रबिर जब भी अपने कमरे की खिड़की से चांद को देखता तो चंद्रमा का धब्बा उसे सीमा मालूम पड़ता ।
रबिर को रातों में तन्हाई घेरने लगती और कमरे की दीवारों से सिर्फ सीमा का नाम ही निकल पड़ता । रबिर की जो ख्वाहिशें वास्तविक जगत में पूरी न होती , उसे वह अपने कल्पनाओं में पूरा करने लगा।
इसी तरह कई रातें रबिर की चांद में सीमा का चेहरा देखते हुए बिता ।
रविवार का दिन आया ; सीमा रबिर के घर पहुंच गई । उसे अपने कमरे में देखकर रबिर के खुशी का ठिकाना न रहा । सीमा बिस्तर पर बैठ कहने लगी --" आज कोई मरीज के देखने का काम तो रहता नहीं है ; घर में बैठे - बैठे तुम्हारी याद आ रही थी तो बिना कुछ सोचे तुम्हारे पास चली आई ; एक दिन भी तुम्हें नहीं देखती हूं तो आंखें मेरे दिल को बहुत तड़पाने लगती है और दिल में बेचैनी जग जाती है , मेरी तनहाई और बेचैनी का तुम ही कारण हो और तुम ही इसका इलाज भी । " ऐसा कहकर वह अपने प्रेमी से लिपट गई ।
फिर दोनों बाहों में बाहें डाल मोहब्बत की किताब पढ़ने में व्यस्त हो गए । कुछ देर बाद उन दोनों के बुद्धि पर ईश्क अपना पैर पसारने लगा और जब मोहब्बत की घटाएं पूरी तरह रूह पर छा गई तो सीमा
रबिर के शर्ट का बटन खोलने लगी ; रबिर कोई आपत्ति नहीं जताया और फिर सीमा रबिर के कामसूत्र किताब के ज्ञान का फल भोगने लगी। अगले दिन से दोनों एक - दूसरे ने अपनी नजरें चुराने लगे ; अब सीमा रबिर को तुम नहीं बल्कि आप कहकर पुकारने लगी । वह अपने बिजनेसमैन दोस्तों से मिलकर किसी बिजनेस का प्लान बनाने लगी ताकि
रबिर बिज़नेस कर खुद अपने पैरों पर पूरी तरह खड़ा हो जाए ।
रबिर के शर्ट का बटन खोलने लगी ; रबिर कोई आपत्ति नहीं जताया और फिर सीमा रबिर के कामसूत्र किताब के ज्ञान का फल भोगने लगी। अगले दिन से दोनों एक - दूसरे ने अपनी नजरें चुराने लगे ; अब सीमा रबिर को तुम नहीं बल्कि आप कहकर पुकारने लगी । वह अपने बिजनेसमैन दोस्तों से मिलकर किसी बिजनेस का प्लान बनाने लगी ताकि
रबिर बिज़नेस कर खुद अपने पैरों पर पूरी तरह खड़ा हो जाए ।
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रबिर में बिजनेस करने में बहुत ही दिमाग चलता था ; उसके इस गुण से सीमा पूरी तरह वाकिफ थी ।
एक महीने के बाद सीमा के कहने पर रबिर कपड़ों के व्यवसाय में लग गया ; वह गुजरात से कपड़े मांगकर अपने शहर में बेचने लगा और अपने इस काम से वह दस - बारह लोगों को रोजगार भी प्रदान किया । इसी तरह चार महीने बीत गए ।
एक दिन छुट्टी पाकर रबिर अपने दोस्तों संग गंगा किनारे खेलने चला गया ; जब क्रिकेट का खेल ख़तम हुआ तो सभी दस कॉलेज के दोस्त वापस जाने लगे तभी एक ने गंगा नदी में नहाने की इच्छा जताई ; सभी मान गए ।
एक दोस्त सभी से हंसते हुए बोलने लगा -- " नहा लो तुम सब , जितने पाप किए हैं न तुम सब ने , सब धूल जाएंगे । "
दूसरा दोस्त बोलने लगा -- " नहा लेते हैं , वैसे भी बहुत सालों बाद गंगा जी में स्नान करेंगे । "
सब दोस्त जब गंगा घाट पर पहुँचे तो देखे वहां कुछ लड़के - लड़कियां और कुछ अधेड़ लोगों का तीन - चार समूह बैठे बातचीत कर रहे थे । लड़कियों को देख कई दोस्त लज्जा के कारण नहाने से इंकार करने लगे तो एक लड़का उन्हें घाट से कहीं दूर ले जाने लगा ; सभी अपने इस दोस्त के पीछे - पीछे गंगा के किनारे - किनारे चलने लगें और कुछ देर पर एक सुनसान किनारे पर पहुंचकर रुक गए ।
सब बहुत ही उत्साहित थे ; गांव वालों की तरह नदी के कल - कल करते जल में शहर वाले जन गोते नहीं लगाए होते हैं तो स्वाभाविक - सी बात है , उत्साह तो उनमें होगा ही । अपने कपड़े खोल सभी मित्र एक बार ही नदी के पानी में कूद पड़े ; अभी बरसात के मौसम में गंगा में पानी वैसे ही अधिक था ; दूसरा वो सब जहां नहाने गए थे , वहां कोई घाट नहीं था । सभी मित्र वहां की गहराई में डूबने लगे ; उनमें से किसी को भी तैरने नहीं आता था । कुछ देर बाद तीन दोस्त जल के सतह पर नहीं दिखने लगे ; रबिर एक आखिरी बार आंखें बंद करके सीमा को याद किया और गंगा जल के लहरों से हार मान गहराई में चला गया ।
कुछ देर बाद दो डोम उन लोगों को डूबते देख वह नदी में कूद गया लेकिन वे दोनों चार जन को ही बचा सकें । पुलिस गोताखोर को बुलाई लेकिन सीमा को
रबिर की लाश नहीं मिली ; उसे सिर्फ रबिर के कपड़ों और स्मार्टफोन से ही दिल लगाना पड़ा । रबिर और उसके दो दोस्तों की लाश नहीं मिलने के बाद कुछ दिन के भीतर उन्हें मृत घोषित कर राज्य सरकार के द्वारा दस लाख की राशि उनके परिवार वालों को प्रदान कर दी गई ।
रबिर की लाश नहीं मिली ; उसे सिर्फ रबिर के कपड़ों और स्मार्टफोन से ही दिल लगाना पड़ा । रबिर और उसके दो दोस्तों की लाश नहीं मिलने के बाद कुछ दिन के भीतर उन्हें मृत घोषित कर राज्य सरकार के द्वारा दस लाख की राशि उनके परिवार वालों को प्रदान कर दी गई ।
सीमा अवसाद का शिकार हो गई ; वह मनोचिकित्सक बन हजारों लोगों का डिप्रेशन दूर कर चुकी थी लेकिन खुद के दुखों और तन्हाई पर उसका खुद का नियंत्रण न रहा । उसकी इस हालत को देखकर उसके पिताजी उसकी शादी करने की तैयारी करने लगे । मां के द्वारा अपनी शादी की रजामंदी के लिए पूछने पर सीमा इसे भाग्य के विधाता की मर्जी समझ अपनी शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर ली ।
अपने प्रेमी के मृत घोषित करने के दस दिनों के बाद ही सीमा अपनी आंखों में आसूं और दिल में पुराना प्यार लिए शादी के लिए सजने - संवरने लगी ।
रबिर ने आंखें खोली तो देखा वह एक अस्पताल में भर्ती है और आस पास अनजान चेहरे लिए अंकल - आंटी बहुत खुश हो खड़े हैं ।
रबिर घबराते हुए चिल्लाने लगा -- " मैं कहां हूं ? मेरे साथ क्या हुआ था , कोई बताएगा मुझे और आप लोग कौन हैं ......?? " उसके मुंह से एक ही सांस में बेचैन ही ढेरों सवाल निकल पड़े ।
पास खड़े अंकल सारी कहानी बयां करने लगें --- " देखो बेटा! तुम हॉस्पिटल में हो ....ICU में तुम्हारा दस दिनों से इलाज चल रहा है ; आज शाम जाके तुमने अपनी आंखें खोली है ; दस दिन बाद ! .... जब मैं गंगा नदी में नहा रहा था तब तुम बहते - बहते मेरे पैरों के पास आ लगे .... अच्छा हुआ कि मैं एक डॉक्टर था , मैंने तुरंत तुम्हारी सांसें जांची तो तुम जिंदा थे और भगवान की मर्जी से तुम अस्पताल पहुंच गए । "
रबिर के दिल - दिमाग में सीमा के यादों की बारात आने लगी ; वह बेचैन होकर बेड पर से उठने लगा और उठ भी गया ; अपने प्यार से मिलने की चाह ने उसके शरीर में जान ला दी थी ।
सभी रबिर को रोकने लगे लेकिन वह बार - बार सिर्फ सीमा - सीमा ही पुकारता रहा और उससे मिलने की जिद करता रहा । उसकी बुरी हालात को देख अंकल उसे अपने कार में बैठा सीमा के घर ले जाने लगे लेकिन पहुंच कर उन दोनों को पड़ोसी से पता चला कि सीमा की शादी एक मैरिज हॉल में होने वाली है ।
ये खबर सुन रबिर के हृदय का कोना - कोना दिल टूटने के दुख से भर गया । अब रबिर का दिल जोर - जोर से धड़कने लगा और दिल की बेचैनी सातवें आसमान पर पहुंच गया । जैसे - जैसे अंकल ने कार की गति तेज की , वैसे - वैसे घबराहट में रबिर की सांसों की गति भी बढ़ती गई । जब दोनों मैरिज हॉल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सीमा पहले ही किसी और की हो चुकी है ।
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HI ! I AM ANKAJ KUMAR FROM BIHAR, INDIA . THERE ARE A LOT OF PROBLEM S IN LOCKDOWN TO CONCENTRATE ON WRITING .
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