Cute and romantic love story ।Hindi love story । Emotional heart touching love story
This is a very beautiful love story in Hindi . I hope you will feel the feelings and emotions of love after reading this heart touching love story .
Heart touching love story in hindi |
एमबॉलमर का प्यार
Embalmer's love
" ट्रिंग ! ट्रिंग ! ...... " मेरे फोन की घंटी बजी ।
मेरे फोन उठाने पर एक पुरुष की आवाज आने लगी -- " हेलो ! मैं , ज्ञांडिल , इंदिरा नगर गली के श्याम विला से बोल रहा हूं ..... मेरे पिताजी का देहांत हो गया है इसीलिए सब लोगों के आने से पहले आप मृत शरीर पर लेप चढ़ा दें .... बाकी बात आप मेरे घर पर आकर कर लीजिए , लेकिन हां ! पूरी तैयारी के साथ आइएगा । "
मेरा एमबॉलमर का बड़ा अजीब पेशा है ; ये मैंने अपने पिताजी से सीखा था । शुरू - शुरू में मैं बहुत डरा था ; हाथ कांप रहे थे जब पहली बार एक शव का संलेपन मुझे करना पड़ा था । खैर ईसाई समुदाय के इसी रीति रिवाज ने मुझे जीवनयापन करने का अवसर दिया था ; इसमें शव को नहला - धोकर चेहरे और दिखने वाले शरीर के बाकी अंगों जैसे गला , हथेली और पैर की अंगुलियों को लेपित कर डरावना दिखने से रोका जाता है ताकि जब लोग अंतिम बार बड़े से खुले बॉक्स में पड़े शव को देंखे तो डरे नहीं ।
मैं अपनी सारी तैयारियां कर ज्ञांडिल के यहां पहुंच गया और एक बड़े से निर्जन कमरे में बुर्जुग शव के गालों पर लेप चढ़ा ही रहा था कि अचानक मुझे शव के सांस लेने की आहट महसूस होने लगी ।
मैं बहुत डर गया ; आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कोई मृत व्यक्ति में सांसें चल रही हो । मैं खुद को समझाने लगा , ये जरूर मेरा भ्रम है ; भूत - प्रेत नहीं होते हैं और यही सोचते हुए लेप लगाता रहा । कुछ मिनटों बाद वह शव तीव्र गति से सांसे लेते हुए अपनी आंखें खोल दिया । ये देखकर मैं घबराहट में तेजी से पीछे हट जमीन पर गिर पड़ा ; मेरे पूरा बदन में कंपकपी जग गई । लाश को उठते देख भय के मारे मेरा गला सूखने लगा ; मैं पसीने से तर हो गया और मुझे उस कमरे के दरवाजे के पास यमराज खड़े दिखने लगे । जब लाश की आंखें मुझे घूरने लगी तो मैं समझ गया कि आज मेरे जीवन का अंतिम दिन है ।
वह बूढ़ा बोलने लगा --- " डरो नहीं बेटा ! मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा ; मैं पिशाच थोड़े ही न हूं । "
और फिर वह अपने दाएं हाथ से बाएं हाथ को छूते हुए बोलने लगे -- " मुझे छू कर देखो , मैं अभी जिंदा हूं । "
लगभग पांच मिनट तक तो मैं चुपचाप कुछ कहे उनकी बातें सुनता रहा ; मेरे अंदर भय इतना ज्यादा था कि मेरे मुंह से चाहने पर भी चिल्लाने की आवाज नहीं निकल रही थी । जब वे बॉक्स से उठकर बाहर आने की कोशिश करने लगे तो लड़खड़ाकर बॉक्स से बाहर फर्श पर गिर पड़े और अपना पैर पकड़कर दर्द से कराहने लगे । मुझे उनका दर्द नहीं देखा गया ; मेरे अंदर से डर अचानक छू मंतर हो गया और मैं तेजी से आगे बढ़ उनको संभालकर वापस बॉक्स में लेटा दिया ।
" रुकिए ! मैं आपके बेटे को बुलाकर लाता हूं । " मैं घबराया हुआ बोला ।
वे मेरी बात से असहमति प्रकट करते हुए कहने लगे --- " मेरे बेटे को मत बुलाओ .... वह बेटा नहीं सांप है , सांप ; कुछ घंटों पहले उसने मुझे डस लिया था। "
मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ; आखिर ये अंड - संड क्या बक रहे हैं ।
वे आगे कहने लगे -- " मेरा शराबी बेटा मुझे आज सुबह सीढ़ियों से धकेल दिया ताकि मैं मर जाऊं और सारी जायज़ाद उसकी हो जाए लेकिन उसे पता नहीं मैंने अपनी सारी संपत्ति अपनी पोती नताल्या के नाम कर दी है , वो वसीयत मेरे वकील के पास है ..... नताल्या को जरूर बता देना । "
वे दर्द से जोर से कराहने लगे और कुछ पीड़ा की सिसकियां लेकर आगे बोले --- " मेरा बेटा एक वैश्या के झूठे प्यार में पड़कर दो साल पहले अपनी पत्नी को तलाक दे दिया .... इस घर से जाने के बाद उसकी पत्नी को भूखे मरने की नौबत आ गई है ; जबरन बेचारी बहू को अपनी बाईस साल की इकलौती बेटी के साथ अपने गरीब माता - पिता के गांव जाना पड़ा ..... ।
मैं बिना कुछ कहे इस बुजुर्ग की व्यथा सुनता जा रहा था । फिर उन्होंने हकलाते हुए कहा --- " मुझे पानी पिला दो थोड़ा । "
मैं पास में पड़े बोतल से उनको जल पिलाने लगा । जल की दो घूंट ही उनके गले से उतरा की उन्होंने अपनी आंखें बन्द कर ली और मेरे हजारों प्रयास के बाद भी दोबारा अपना मुंह नहीं खोले ।
मेरे लेप लगाने का काम लगभग पूरा हो चुका था ; मैं कमरे की एक कुर्सी पर बैठा उनके बारे में ही सोच रहा था कि ज्ञांडिल कमरे में दाखिल हुए । उनके पिताजी के मृत्यु के कारण के बारे में मेरे सवाल करने पर वे बोलने लगे --
" आज सुबह बाबूजी सीढ़ियों से लड़खड़ाकर गिर गए और उनके सिर में अाई गंभीर चोट ने उनको हम सब से हमेशा के लिए छीन लिया ..... पोस्टमॉर्टम के बाद पता चला कि उनकी जान लेने में दोनों टांगों में हुए फ्रैक्चर के दर्द का भी हाथ था । "
" जीसस क्राइस्ट उनकी आत्मा को शांति दें ! " ऐसा कह वे अपना चेहरा उदास कर कमरे से बाहर चले गए । मैं उनके नाटक से भरे झूठ बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया ।
अंतिम संस्कार की क्रिया सम्पूर्ण होने के एक दिन बाद ज्ञांडिल जी के बुलाने पर मैं अपने पैसों के लिए उनके घर गया लेकिन वे खुद नहीं मिले और खाली हाथ मैं वापस आना पड़ा । घर से निकलते वक़्त एक सुंदर स्त्री को बगीचे में टहलते देखा । मैं दूर से देख के ही समझ गया कि वह जरूर बुजुर्ग की पोती नताल्या होगी लेकिन माली से पूछकर मैंने अपना संदेह दूर कर लिया ।
उसकी तरफ़ जैसे - जैसे मैं अपने कदमों को बढ़ाता , मेरे दिल की धड़कनें तेज होती जाती ; एक गुरुत्वाकर्षण बल मुझे उसकी ओर खिंचे जा रहा था जिसके कारण मैं चाह कर भी अपने कदमों को पीछे नहीं ले पा रहा था । मुझे ऐसा लग रहा था जैसे धूप भरी गार्डेन की फूलों से भरी वादियां हम दोनों के मिलने का इंतजार वर्षों से कर रही हों ; रंग - बिरंगे पुष्पों की खुशबू से वातावरण मदमस्त था और मुझे भी अपने इत्र जैसे महक में मदहोश कर रहा था ।
हरा - भरा वातावरण और पेड़ों की छांव में अपने हाथों में एक पुस्तक लिए टहलते हुए पढ़ने में लिन लड़की तो मेरे दिल में ख्वाबों का अंबार लगाने लगी ।
मैं उसके पास पहुंचा तो वह मेरे कदमों की आहट सुन पीछे मुड़ मेरे चेहरे की ओर देखने लगी । उसकी आंखें मेरे आंखों से जब टकराई तो कुछ देर तक हम दोनों बस यूं ही एक - दूसरे को देखते रहे । उसके मुखरे की चमक के सामने सूर्य की चमक मुझे फीकी लग रही थी ; उसकी आंखों का काजल और होठों की लाली मेरे दिल को मोहब्बत के सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर रही थी । हम दोनों का ध्यान भटक गया जब सहसा पक्षियों का एक झुंड पास के एक पेड़ से उड़ा ।
वह मुझसे बोलने लगी --- " आप तो एमबॉलमर हैं न ?? "
उसकी आवाज जब तेज सर - सर बहते पवन की ध्वनि से मिली तो मेरे कानों को संगीत जैसा मालूम पड़ा । मैं उसके मुंह से निकलने वाले दूसरे वाक्य का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा और खामोश हो उसके चेहरे को ही निहारता रहा ।
वह जब अपने पुराने प्रश्न को दोहराई तो मैं अपने सपनों की नगरी से वापस वास्तविक लोक में आ पहुंचा । मैंने नताल्या को उसके दादाजी की सारी बातें बता दी ; सारी बातें सुनकर उसके मुंह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए ।
चार दिन बाद ज्ञांडिल जी मुझे पैसे देने के लिए फिर बुलाए । अबकी बार में उनके बुलाए समय से थोड़ी देर पहले ही उनके घर पहुंच गया लेकिन वे फिर नहीं थे । सोफे पर बैठे - बैठे नताल्या से कॉफी पीते हुए बात होने लगी । वह मुझे बताई की वह अब अपने मां के साथ उसी घर में रहेगी ; ऐसा उसके पिताजी ने कहा था क्यूंकि वकील ने उसके पिताजी को बताया कि सारी सम्पत्ति तो नताल्या के नाम ही है ।
उसके मन में अपने पिताजी के लिए किसी भी प्रकार का क्रोध या हिन भावना नहीं थी ; यह जानकर मैं अचंभित हुआ और मुझे ये जानकर बहुत ही खुशी हुई की अब नताल्या इसी शहर में रहेगी , तब शायद हम दोनों का मिलना भी बराबर होता रहे ।
मैं जब से उसकी आवाज को पहली बार सुना था , मेरे कान पुनः उसकी मीठी और प्यारी सी आवाज को सुनने के लिए बेचैन हो रहे थे ; मेरी आंखें बार - बार सिर्फ नताल्या का चेहरा ही देखने की जिद कर रही थी । अभी उसे अपने पास बैठा देख मेरे रूह को बड़ा ही सुकून मिल रहा था ; ऐसा मानो जैसे इस ब्रह्माण्ड ने अपने सारे सुखों से मुझे परिचित कराया हो । कुछ देर के बाद हमारी बातचीत में विघ्न डालने के लिए उसके पिताजी उपस्थित हो गए और तुरंत पैसे लेकर मैं उनके घर से रवाना हो गया । रास्ते भर बस यही सोचता रहा कि मेरी कहानी बस यही समाप्त हो गई ।
जब भी मैं कहीं भी अकेला होता बस नताल्या की यादें आकर मुझे चारों ओर से घेर लेती और मुझे हंसाती और किसी अनजाने से प्यार के लोक में मैं खो जाता लेकिन जब वास्तविक स्तिथि का मुझे एहसास होता मैं उदास हो जाता । यही क्रम लगभग दस दिनों तक चलता रहा लेकिन एक रात मुझे उसकी बातें सुनने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ ।
मैं बिस्तर पर लेटे हुए ख्यालों में मदमस्त था कि फोन की घंटी बजी ; मालूम हुआ ये तो नताल्या है।
वह बोलने लगी --- " सॉरी , इतनी रात को कॉल करने के लिए ..... मैं सोची की तुम दिन में व्यस्त रहते होगे वो अभी कॉल कर ली । "
मैं कहा -- " नहीं ! नहीं ! कोई बात नहीं ..... मैं आपके बारे में ही सोच रहा था । "
वह मेरे अंतिम वाक्य पर आश्चर्य प्रकट करते हुए बोली --- " क्या !! मुझे ही याद कर रहे थे !!! "
उसके पूछने के तरीके से मैं थोड़ा हिचकिचाहट से उसका ध्यान भटकाने के उद्देश्य से बोल पड़ा --- " आप जो बगीचे में ' संभोग से समाधि की ओर , ओशो ' किताब पढ़ रही थीं , वह तो बहुत बढ़िया पुस्तक है। " वह फिर मुझे ' sex to superconscious ' पुस्तक की खूबियों के बारे में बताने लगी और अंत में अपने फोन करने का कारण बताने लगी --- " मैं ब्लॉग लिखती हूं और आजकल एक सीरीज चला रही हूं जिसमें मैं विभिन्न व्यवसायों से जुड़े अनुभवी लोगों के जीवन के बारे में लिख रही हूं , तो मैं तुम्हारे एमबॉलमर के रूप में अनुभवों को शब्दों में पिरोना चाहती हूं ..... क्या कल हम दोनों पार्क में मिल सकते हैं ? "
मैंने हामी भर दी । अगले दिन पार्क की खूबसूरत परिवेश में हम दोनों कोमल घास पर बैठ कर बातें करते रहे। वह मुझसे सवाल पूछती जाती और मैं जवाब देता जाता ; शुरू में मुझे थोड़ा झिझक हुआ क्यूंकि वह मेरी आवाज को एक साउंड रिकॉर्डर में कैद कर रही थी ; अगर गलती से भी मेरे मुंह से कुछ ग़लत शब्द निकल जाते तो पार्क में हो सकता है , उसका ध्यान न जाए लेकिन घर पर जाकर जब वह साउंड फिर से सुनेगी तो मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं रह जाएगी । लेकिन कुछ देर बाद हम दोनों ऐसे बात करने लगे जैसे कोई बचपन के मित्र हों ।
मुझे उससे बातें करने में बहुत सुकून मिल रहा था । बातचीत के बीच में वह अपनी बातें भी मुझे बताती जाती जिससे मुझे उसके बारे में पता चला कि वह ओशो रजनीश की बहुत बड़ी प्रशंसक है । इसी तरह वह अपने ब्लॉग लेखन के लिए मुझसे तीन दिन तक मिली ; इन तीन दिनों में हम दोनों ने दिल की बातें भी की और हम दोनों के द्वारा पसंद - नापसंद के अनुसार रेस्टोरेंट में कॉफी और स्वादिष्ट खानों का लुफ्त भी उठाया गया ।
फिर हम दोनों में लगातार गुफ़्तगू होने लगी । उसके जीवन में दोस्त और सगे- संबंधी तो कई थे किन्तु
ऐसा कोई नहीं था जो उसकी बातों को ध्यान से सुनने का धैर्य दिखाए ; क्या करे लोग आजकल ऐसे ही हो गए हैं , सिर्फ दूसरों को बताना चाहते हैं लेकिन दूसरों की दर्द और सुख भरी खट्टी - मीठी बातों को सुनना कोई नहीं चाहता । वह मुझसे अक्सर कहती थी कि उसे मुझसे बात करने में अच्छा एहसास होता है ।
ऐसा कोई नहीं था जो उसकी बातों को ध्यान से सुनने का धैर्य दिखाए ; क्या करे लोग आजकल ऐसे ही हो गए हैं , सिर्फ दूसरों को बताना चाहते हैं लेकिन दूसरों की दर्द और सुख भरी खट्टी - मीठी बातों को सुनना कोई नहीं चाहता । वह मुझसे अक्सर कहती थी कि उसे मुझसे बात करने में अच्छा एहसास होता है ।
इसी तरह फोन कॉल और सप्ताह में दो - तीन बार मिलते रहे और कैसे दो महीने बीत गए , मालूम ही न चला । अब तो ऐसा हो गया कि अगर एक दिन भी वॉट्सएप पर मैं उसके hi ! Hello ! का भी जवाब न दे पाऊं तो वह मुझसे चिढ़ जाती और मुझे किसी तरह उसे मनाना पड़ता और अगर न मनाऊं तो वह वॉट्सएप और fb स्टेटस पर ब्रेकअप शायरी की आंसू भरी ढेरों शायरी डालती और मुझे देखने के लिए लिख कर बोलती । एक वाक्य में कहूं तो मेरी जिंदगी बेहाल हो जाती अगर वो मुझसे रूठ जाती ।
उसे ओशो के कैंप जाकर ध्यान सीखने की बड़ी लालसा थी ; आसपास अनेक गुरुओं के द्वारा योग और ध्यान के कई प्रोग्राम चलाए जाते थे लेकिन वह वहां नहीं जाती और एक ही जिद पर अड़ी रहती ; मुझे हरियाणा के मुरथल कैंप में जाना है । हमारे शहर से ओशो का पुणे वाला कैंप नजदीक पड़ता लेकिन उसके हरियाणा जाने के जिद को देखकर एक दिन मैंने इसके कारण के बारे में पूछ दिया तो वह बोलने लगी कि उसकी एक सहेली वहां गई थी इसलिए वह भी वहां ही जाएगी ।
हम दोनों मुरथल ओशो कैंप में साथ जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिए । फिर नताल्या बोलने लगी कि वह कश्मीर की बर्फबारी का आंनद भी लेना चाहती है क्यूंकि वह कभी भी बर्फ से ढकी वादियों का नजारा नहीं देखी थी । मैं भी मान गया क्यूंकि जो हाल उसका था , वही मेरा भी था ; मैंने भी अपनी जिंदगी में कभी कश्मीर की धरती पर अपने कदम नहीं रखे थे ।
हम दोनों दस दिन बाद निकल पड़े कश्मीर स्वर्ग की धरती की यात्रा पड़ । वहां बर्फ के गोले एक - दूसरे पर फेंकना और बर्फ से ढकी पूरी धरती पर स्केटिंग का मजा लेने का आनंद असीमित था । नताल्या को खुश देख मेरा दिल भी बहुत खुश था । जब पहली बार कश्मीर में वह बर्फ से ढके पेड़ और पहाड़ों को देखी तो वह प्रसन्नता से उछलने - कूदने लगी और बार - बार मुझसे कहने लगी --- " क्या ये सच है ! मेरा एक बचपन का सपना पूरा हो गया ; लग रहा है जैसे एक फोटो देख रही हूं । " ऐसा कह वह पास पड़े एक बर्फ के गोले को उठाई और मुझ पर दे मारी और फिर भागने लगी ।
हम दोनों ने झील के ऊपर बनाए गए लकड़ियों वाले होटल में दो अलग - अलग कमरे लिए । रात में भोजन कर मैं अपने बिस्तर पर लेटे हुए दिन के बीते अच्छे पलों के बारे में सोच रहा था तभी मेरे कमरे का दरवाजा कोई खटखटाने लगा । दरवाजा खोला तो नताल्या मुझसे चिपक अपने बाहों में भर ली और बोलने लगी --- " क्रिश वान ! मुझे अकेले नींद नहीं आ रही है .... मुझे यहां रात में डर लगता है .... क्या मैं तुम्हारे कमरे में सो सकती हूं ? "
मैं उसके इस प्रस्ताव को मना न कर सका ; उसके चेहरे की मासूमियत किसी का भी दिल पिघलाने में काबिल थी ; मैं तो ठहरा एक मामूली इंसान । हम दोनों एक ही बिस्तर पर लेट कर आंखों में नींद के आने का इंतजार करने लगें । कुछ देर बाद वह अपने एक हाथ की हथेली को मेरे सीने पर रखकर बोली --- " क्या तुम्हें नींद आ रही है ? "
मुझे तो बिल्कुल नींद नहीं आ रही थी । मेरी आंखें मेरे ज़बान को खामोश कर सिर्फ नताल्या के सुन्दर चेहरों को निहारने में मशगूल हो गईं । वह मेरी खुली आंखों को देखते हुए फिर बोली -- " तुम्हें भी नींद नहीं आ रही है न ! बिना नींद के ये लंबी रात कैसे कटेगी ? "
फिर वह अपने दिल की डायरी के लिखे पन्नों को खोल कर पढ़ती गई और मैं मौन के सागर में डूब कर उसकी बातों को सुनता रहा ; मेरे दिल को उसकी छोटी से छोटी बात भी बड़ी सुकून देने वाली प्रतीत होती थी ।
वह मेरी आंखों में देखते हुए शब्दों की बारिश से मुझे भिंगाने लगी --- " तुम मेरी जिंदगी में बहुत खास हो ..... तुम खुदा का दिया हुआ एक अमूल्य उपहार हो ..... अगर तुम न मेरी जिंदगी में आए होते तो मुझे दिल के तह में छुपे मोहब्बत के खजाने का पता ही नहीं चलता । "
मैं उसकी बातों को न समझने का बहाना करते हुए पूछा -- " मैं समझा नहीं तुम क्या कहना चाह रही हो ? "
वह अपने सिर को मेरे छाती पर रख दिल की धड़कन
सुनने लगी ; रात इतनी शांति भरी थी कि मेरे जोर से धड़कते दिल की कम्पनों की आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी । वह फिर अपने होंठो को मेरे होंठो के करीब लाते हुए बहुत ही प्यार भरे शब्दों में कहने लगी --
सुनने लगी ; रात इतनी शांति भरी थी कि मेरे जोर से धड़कते दिल की कम्पनों की आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी । वह फिर अपने होंठो को मेरे होंठो के करीब लाते हुए बहुत ही प्यार भरे शब्दों में कहने लगी --
" मेरा दिल अब मेरा नहीं , तुम्हारा हो चुका है ..... कई रातें मैंने तुम्हारे बारे में भी सोचते हुए गुजारी है ..... मेरी तनहाई से तुम्हारी कही बातें हमेशा लड़ती हैं और मुझे तन्हाई के चंगुल से मुक्त करती हैं ... ऐसा लगता है जैसे मेरे दिल में कई सदियों से प्यार की प्यास है । " ऐसा कह वह अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दी और चुम्बन के एहसास से मुझे मदहोश करने लगी । इस चैन भरी रात में हम दोनों के दिलों की अभी जुड़ कर जन्मों - जन्मों तक जुड़े रहने की संधि हो गई ।
हम दोनों मोहब्बत के पलों में मशगूल हो गए । वह मेरे बदन के कपड़े को खोलने लगी ; मेरे दिल - दिमाग ने कोई आपत्ति नहीं जताई और फिर हम दोनों एक - दूसरे में ही खो गए । जब मेरी नजर दीवाल पर टंगी घड़ी की ओर पड़ी तो उसकी सुइयां सुबह के तीन बता रही थीं । अपने - अपने कमरे में थे तो एक पल भी गुजरता मालूम नहीं हो रहा था लेकिन एक - दूसरे की साथ ने कैसे चार घंटे बिता दिए , हम दोनों को बिल्कुल ही खबर न हुआ ।
वह बिस्तर पर से अपने रात्रि पोशाक को उठाकर अपने नग्न बदन को ढकने लगी और फिर एक झलक मेरी ओर देखकर मुझसे नजरें चुराते हुए अपने कमरे में चली गई । अगले दिन से अब दोस्ती वाली बातें गायब - सी हो गई ; हम दोनों अब दोस्ती की सीमा को पार करके प्यार वाले घेरे में प्रवेश कर चुके थे ।
सुबह से ही कश्मीर के खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद लेने में हम दोनों ने साथ - साथ कीमती लम्हों को जिया । वहां से फिर हम दोनों मुरथल कैंप पहुंचकर खूब मज़े किए । इस तरह नताल्या का एक और सालों का स्वपन पूरा हो गया और उसकी खुशी सातवें आसमान पर चला गया । उसकी मुस्कुराहट ही अब मेरी जिंदगी का मकसद बन गया ।
घर वापस पहुंचकर एक महीने बाद मैंने उसके बर्थडे पर सबसे सामने प्रपोज किया तो वह खुशी - खुशी मान गई और पांच सालों से हम दोनों पति - पत्नी हैं ।
ACCOUNT NUMBER :- 74261500005383
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HI ! I AM ANKAJ KUMAR FROM BIHAR, INDIA . THERE ARE A LOT OF PROBLEM S IN LOCKDOWN TO CONCENTRATE ON WRITING .
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THANK YOU GUYS
☺️🌹☺️
1 Comments
Thank you, great content..keep doing the great work.Story For Kids With Moral - THE UGLY DUCKLING
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