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Romantic love story




Heart touching love story|Hindi love story|Best love story in hindi

Romantic love story





" क्यूं प्रोफेसर साहब , आज भी दही- रोटी लाएं हैं क्या?" मैं अपना टिफिन खोल ही रहा था कि मेरे पीछे से एक जानी - पहचानी आवाज कानों में गूंजी।


मेरे कोई जवाब देने से पहले ही डॉ० प्रो० कपिल मिश्रा मेरे बगल की कुर्सी पर बैठ कर मेरे टिफिन में झांके। जब मैं टिफिन खोला तो उन्होंने अपने टिफिन से सब्जी निकालकर मेरे टिफिन के ढक्कन पर रखकर तुरंत वहां से अपने केबिन में चले गए । उनका मानना था कि खाने के समय कोई बातचीत नहीं करनी चाहिए और ऐसा कभी भी नहीं हुआ था इन एक सालों में की जब वे मेरे पास बैठे हो और बात न करें।


कपिल मिश्रा मेरे इस अनजान शहर में मेरे दिल के सबसे अच्छे जानकार थे। वो मुझसे करीब तीस साल बड़े थे ; यही कारण था कि वे अपने बीते जिंदगी के अनुभवों को ध्यान में रखकर मुझे जिंदगी के पथ पर अग्रसर होने के लिए दिशा निर्देशित करते रहते थे। ये वहीं एक मात्र जन थे जिनको मेरी गलती और सही से फर्क पड़ता था। मेरे जिंदगी के खट्टे - मीठे अनुभवों से भरा तीस साल पढ़ने में ही गुजर गया। मेरी उम्र के इस दौर तक मेरे गांव के दोस्त अपना वैवाहिक जीवन का आनंद भोग रहे थे। उन्होंने बहुत जतन की थी ताकि मेरी शादी हो जाए लेकिन मेरे प्रोफेसर बनने तक मेरे कदम से कदम मिलाकर चलने वाले का अकाल ही रहा । मेरे दिल - दिमाग में पढ़ने की लालसा हमेशा जगी रहती थी ; जी करता गांव की लाइब्रेरी की सारी किताबें पढ़ जाऊं और जी भर के पढ़ा भी।


 मुझसे बड़े दो भाइयों को किताबें खोलने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी इसलिए स्कूल जाने से बचने के लिए पिताजी के साथ खेती में हाथ बंटाते थे। अपने दोनों भाइयों की किताबें मैं ही पढ़कर उनका मूल्य चुकाता था। मेरे घर के कोई भी सदस्य मुझे खेती करने के कामों के लिए कहता नहीं था। रोज सुबह - शाम मेरी बूढ़ी दादी मुझे रामायण, महाभारत , गीता और दूसरी धार्मिक किताबें पढ़कर सुनाने को कहती । मेरे घर या गांव में पीएचडी करने के बारे में तीन को छोड़कर कोई सोचता भी नहीं था ; ये तीनों पीएचडी इच्छाधारी मेरे पड़ोस के ही दोस्त थे लेकिन ग्रेजुएशन में हुए इनके शादी ने पीएचडी इच्छा को  काम इच्छा में बदल दिया; पारिवारिक जीवन के भोग - विलास में उनको लिप्त देखकर तन्हाई उन सभी से दूर भागकर मुझे अकेला पाकर अक्सर मुझे घेर लेती और मुझे रात भर जगाए रखती।


 गांव से दो मील दूर कॉलेज मैं साईकिल से इन्हीं तीनों के साथ जाता था , रास्ते में थोड़ी देर तक का साईकिल रेस मुझे बड़ा आनंद देता था। अपने इन्हीं तीनों दोस्तों के साथ कॉलेज से आते वक़्त तालाब में स्नान करने का जो आनंद मिलता था वो मेरे हर एक सांस के साथ मिलकर रगो में समा जाता था। शाम में अब जब भी वे सभी मिलते तो यौन आकर्षण की ही बातें करते ; अब दोस्ती की बातें न होती । मैंने सपने में भी कभी न सोचा था कि अपने प्रिय सहपाठियों के दिलों से अपना कमरा खाली करना पड़ेगा। अब कभी - कभी ही मेरा मिलना उन सभी से हो पाता ; उनके घर जाता तो कभी पता चलता वह अपनी पत्नी के मायके गया हुआ है, कभी घर का सामान लाने बाजार तो कभी बीबी को घुमाने।



कभी उन सभी को जरूरत पड़ती तो मुझे बुलाते और काम की बातें करते तथा जब कभी मैं उन सभी को बातचीत करने बुलाता तो वे सभी ऐसा व्यवहार करते मानो मैं उनका प्लैटिनम समान कीमती पल उनसे छीन रहा हूं। अपने छत पर से अपने तीनों बचपन के मित्रों के चेहरे की खुशी देखकर मेरा चेहरा भी खुश हो उठता लेकिन कुछ महीनों बाद ही यह थोड़े दूर की यारी मीलों की दूरी में बदल गई । पारिवारिक जीवन को पैसों से खरीदे जा सकने वाले खुशियों से भरने के उद्देश्य से दो मित्र दिल्ली रोजगार की तलाश में एक एजेंट के सहारे चले गए और बचे एक महानुभाव अपने जीवनसंगिनी के साथ अपने ससुर की बिगड़ती तबीयत की खबर सुन चले गए और कुछ दिन बाद जब ससुर ने इकलौती संतान को अपने आंखों के पास रखने के उद्देश्य से उनको वहीं रहकर जमीन - जायदाद का चौकीदार बनने का जिम्मा सौंपा तो उनको धन को ना कहने का दिल न हुआ और वहीं घरजमाई बन के रहने लगे ।



उन सभी के दूर जाने की घटना ने मेरे बाल्य अवस्था की यादों को एकाएक मेरे जहन में जगा दिया। अब मैं जब रातों में करवटें बदल - बदल के सोने का प्रयास करता उन तीनों के साथ बिताए भूत पलों की धुंधली - धुंधली सी यादें मेरे पास दुबके चालों से आ चुपके से मेरे बिस्तर पर लेट जाती और विरह की अग्नि में मुझे रात भर जलाती। अब मैं जब भी किताबें खोल पढ़ता, दो अक्षरों के बीच थोड़े से जगह पर मेरा ध्यान केंद्रित हो जाता और सोचता मेरा जीवन भी दोस्तों बिना बिल्कुल थोड़े से में सिमट गया है और कुछ अक्षर पढ़ता तो बीच में उनकी बोली गई बातें दखल देती ; इसी तरह सिर्फ एक पेज पढ़ने में ही घंटों लगा देता ।



मेरे अकेलेपन को देखकर मेरे पिताजी मेरे ब्याह के बारे में सोचने लगें। मैं जब आंगन से होकर बाहर जा रहा था तभी मेरे पिता जी के एक मित्र की आवाज मेरे कानों में गूंजी -- " ई जवानी में अकेलापन महसूस होता ही है .... हम सब जानते हैं इ लड़का सब के क्या चाहिए .... शादी का उम्र हो गया है... अब जल्दी से कोई मालदार पार्टी ढूंढईए । "


यही कुछ सुनी हुई पंक्तियां पूरे दिन मेरे कानों में गूंजती रही । मैं अपने इक्कीस साल के जीवन से सीख ले आगे बढ़ना चाहता था ; शादी की इच्छा न थी पर बूढ़ी दादी अपनी अंतिम सांसे गिन रहीं थीं ; उनकी अंतिम अभिलाषा थी कि वे अपने जीवन के आखिरी पलों में अपने आखिरी पोते की पत्नी से भी झगड़े और अपने पोते को जोरू का गुलाम पुकारे।


एक सुंदर लड़की की तस्वीर मुझे दिखाई गई ; उसके चेहरे पर कमाल की चमक थी ; उसके एक नयन में जब देखा तो ऐसा उसकी गहराई में डूबा की दूसरी आंख की चांद जैसी दिल को सुकून देने वाली रोशनी में खोने का अवसर खुद को न दे पाया। उसके समुन्द्र सी गहराई लिए आंखों में डूबकर मुझे सुख के दूसरे संसार की अनुभूति हुई । इससे पहले की मैं इस नए जीवन की गहराई में गोते लगाता, मेरी दादी ने मेरे बदन को झकझोरते हुए हिलाकर मुझे बाहर निकाला
। मेरे हामी भरने से पहले ही दादी खुशी से उछल पड़ी ।



शादी की तैयारियों का जो मंजर शुरू हुआ वो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। फोन कॉल के बिल बहुत बढ़ने लगे ; महिलाएं बड़े ही उत्साह से ढेरों साड़ियां और गहनों को देखती और बातचीत ऐसे करतीं जैसे कोई विश्व स्तर की वार्ता हो ; उन सभी को पैसों की कोई चिंता नहीं थी। मुझे पता चला कि दहेज की सदियों से चलती परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए मेरे माता - पिता की ओर से कोई दस लाख, एक मोटरसाइकिल और एक गले का चेन की मांग हुई है और मध्य वर्गीय परिवार के होते हुए भी ये सब भीख देने के लिए मेरे  होने वाले किसान ससुर जी मान गए हैं। अपना हाथ फैलाने से पहले मैं क्या चाहता हूं और क्या नहीं , किसी ने भी न पूछा। जैसे - जैसे शादी का मुहरत नजदीक आ रहा था मेरा दिल और अधिक बेचैन होने लगा ; मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसके आंखों में आंखें कैसे मिलाने की हिम्मत करूंगा ।  " पता नहीं उसके आंखों के सामने एक लोभी पति का चित्र आता होगा या कुछ और । " इसी तरह के ख्यालों से मेरा दिमाग भरता जा रहा था।



अब शादी के बस एक दिन बचे हुए थे; मेरे घर के सभी कमरें स्टोररूम में तब्दील हो चुके थे ; कई अनजान चेहरे मेरे सामने आते और अपनी बात शुरू करते -- " मुझे पहचाना बबुआ ... हम ही तोहार मम्मी के ममेरा भाई .... हम ही तोहार नाना के चचेरा भाई ....हम ही तोहर चचेरा भईया के साली... "  इसी तरह  के सवालों को मुझ पर फेंक कर मुझे अपने शादी के आखिरी दिन तक परेशान करने में लोगों ने एक भी कसर न छोड़ी। शादी के पहले वाली आखिरी शाम मेरी नयी जिंदगी के सपनों पर पानी फेर के चली गई। लड़की पक्ष अभी तक चार लाख रुपए दहेज स्वरूप सौंपी थी ; बाकी बचे पैसे आज शाम ही भेजने वाली थी लेकिन फोन कर भविष्य के ससुर जी ने असमर्थता जाहिर की । ये सुन मेरे पिताजी और मामा जी गुस्से से आग बबूला हो मेरी शादी तोड़ने का निश्चय कर लिए। यह सुनने के बाद मैं उदास हो अपने कमरे की ओर जाने लगा तभी 


दिल टूटने की आवाजें मुझे सुनाई पड़ी । उस दिन की काली रात की टूटी यादें मेरे जहन से कभी न गई ; उस रात मई की गर्मी में बेमौसम बरसात कर मेरी आंखों ने बदन को भिगो दिया ; करवटें बदल - बदलकर किसी तरह रात गुजारी इस आशा में की कल की सुबह सूरज की किरणें इस काली रात के अंधेरे को दूर कर दो दिलों में फिर से उजाला ले आए।
सुबह - सुबह ही सभी बड़े - बुजुर्ग आंगन में जमा हो चाय पीते हुए वार्ता कर रहे थे जब मामा जी किसी बच्चे से बोलकर मुझे बुलाए। मैं चुपचाप बैठ उन सब की बातें सुन रहा था कि तभी मेरे पिता जी के फोन की घंटी जोर से बजी ।
फोन के स्क्रीन पर देखकर पिताजी चिढ़ते हुए बोले -- " " अब ये क्यूं कॉल कर रहे हैं ? " "


मामा जी उत्सुकता से पूछ बैठे -- " कौन है ? "

" " समधी जी हैं। " "


" उठाइये ! जल्दी कीजिए.... लगता है काम बन गया ... बाकी बचा हुआ पैसा देने के लिए फोन किए होंगे " मामा जी ने अपना लालच प्रकट करते हुए कहा।


सभी के सुनने के लिए पिताजी ने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया। उधर से एक महिला की रोने बिलखने की आवाज आने लगी, शायद मेरी होने वाली सास की थी वह आवाज। पता चला कि पिछले रात ही एक कुंवारी स्त्री अपने ब्याह के सपनों का गला घोंट खुद भी पंखे से लटक कर अपनी विदाई का इंतजाम खुद ही कर ली।


यह सुन मेरी बूढ़ी दादी के हृदय ने उस लड़की को मरणोपरांत सम्मान प्रदान करने के उद्देश्य से अनंत काल के लिए अपनी गति रोक दी ।


इन दो लोगों की मृत्यु ने मुझे अंदर से झंकझोर दिया ; मैंने निर्णय ले लिया की अब मैं कभी भी शादी नहीं करूंगा।  उस दिन के बाद से उसकी ही तस्वीर लिए सोता था .....मुझे बहुत ही दुख हो रहा था कि मैं अपनी दादी की अंतिम इच्छा पूरा न कर पाया और साथ ही साथ एक आत्महत्या का जिम्मेदार भी कहीं न कहीं मैं ही था। जब भी आइने में अपना चेहरा देखता, उस युवती का चेहरा प्रकट हो जाता और मुझे अपनी गलती का एहसास कराता और उसके मुंह से सिर्फ तीन शब्द ही निकलते -- "" दहेज के लोभी ""....


"" दहेज के लोभी ""...."" दहेज के लोभी ""...."" दहेज के लोभी ""....


नदी किनारे घंटों बैठा रहता... नदी की कल - कल करती ध्वनि मेरे दिल की बेचैनी को कम कर देती थी .... दूर - दूर तक पसरे खेतों में अकेले ही घूमता फिरता .....और थक कर एकांत देख पीपल की छांव में बैठ जाता ; ठंडी - ठंडी हवाएं जब मेरे चेहरे को स्पर्श करतीं तो दिल की बेचैनी बाहर निकल उन हवाओं के साथ खेलने लगती सुर मैं चुपचाप बैठा रहता।
ग्रेजुएशन के आखिरी साल का रिजल्ट निकलते ही परिवार के सभी सदस्यों ने मुझे पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के लिए शहर भेज दिया। कई सालों तक मैं पढ़ता गया और इसी का फल था कि मेरा सिलेक्शन एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए हो गया। इस कॉलेज में आए हुए सिर्फ चार महीने ही बीते थे कि मेरा कपिल मिश्रा जैसे अनुभवी प्रोफेसर से गहरा जुड़ाव हो गया। मैं प्यार से उन्हें प्रोफेसर साहब बुलाता था ; उन्हें भी इसमें कोई ऐतराज नहीं था।
मेरे मन में ये सब बातें ही दौड़ रही थी कि फिर से प्रोफेसर कपिल जी का आगमन हुआ।


" " अरे ! अभी तक खाए नहीं तुम....क्या - क्या सोचते रहते हो तुम ....कहीं तुम मेरे फेयरवेल के बारे में तो नहीं सोच रहे हो? " " प्रोफेसर साहब कुर्सी पर बैठते हुए बोले।


वे मेरे जवाब का इंतजार न करते हुए आगे बोले -- 


" " मेरे इस कॉलेज से जाने के बाद तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा .... तुम्हें स्वादिष्ट सब्जी कौन देगा... इसी सोच में अक्सर पड़ जाता हूं। " "


मैं उनका ध्यान भंग करने के उद्देश्य से बीच में बोल पड़ा --" अच्छा बताईए प्रोफेसर साहब! आपको अपने कॉलेज फेयरवेल पर क्या गिफ्ट चाहिए ? "


" " क्या सच में गिफ्ट देना चाहते हो ? " "


" हां , सच में ... आप बोलिए तो सही , अगर मेरे बस में होगा तो जरूर दूंगा । "


" " तुम शादी कर लो... यही मेरे लिए सबसे बढ़िया उपहार होगा ।" "


वो मेरे बारे में सब कुछ जानते थें ; कई बार मैंने अपने जिंदगी के पन्नों से उनको रूबरू कराया था।


" " उस लड़की के मौत के जिम्मेदार क्यूं खुद को मानते हो! शादी कर लो... अभी बहुत लंबी उम्र बची हुई है .... अकेले कैसे काटोगे जिंदगी... कोई न कोई जीवन में डगर - डगर पर साथ देने वाला होना चाहिए.... मैं तो तुम्हारे साथ हमेशा रह नहीं सकता हूं न .... अगले सप्ताह की सोमवार को मेरी विदाई समारोह होगा .... उसके बाद तुम मेरे घर पर ही रहोगे.... मेरा घर वैसे भी बहुत बड़ा है... तुम आ जाओगे तो अच्छा रहेगा...कॉलेज से रिटायर होने के बाद न जाने दिन कैसे कटेंगे। " "


जितने दिन भी वे कॉलेज आए , मुझे याद दिलाते रहे की मुझे उनके यहां ही रहना है। उनके हठी प्रवृति को देख मुझे अपना कमरा खाली कर उनके घर जाना पड़ा। मुझे पहले तल्ले पर का एक बड़ा सा कमरा दिया गया जो गेस्ट रूम के बगल में था और ग्राउंड फ्लोर पर तीनों जन कपिल मिश्रा, उनकी पत्नी और इकलौती पुत्री रहते थें। जब मैं आया तो कुछ दिन तो बहुत अच्छे से बीते; सुबह - सुबह नौकर मेरे कमरे में चाय दे जाता फिर सभी के साथ खा मैं कॉलेज के लिए निकल पड़ता। रविवार की शाम को सोचा , चलता हूं बरामदे में थोड़ा प्रोफेसर साहब से कुछ बातें  कर लूं ; मेरे कदम सीढ़ियों पर ही एकदम से रुक गया जब उनकी पत्नी के कटु स्वर मेरे कानों में गूंजना शुरू किया --

 " ' उस लड़के को यहां से जाने के लिए कह दीजिए ... घर में एक जवान लड़की है... न जाने कहीं कुछ उल्टा - सीधा हो गया तो भगवान हमें कभी माफ़ नहीं करेगा... मुझे तो बहुत घबराहट होती है जब भी सोचती हूं अपने बेटी के बारे में । " '


 प्रोफेसर साहब सोफे पर बैठे एक किताब पढ़ रहे थे ; वे अपनी पत्नी के रुकने का इंतजार कर रहे थे , फिर अपनी भार्या को समझाते हुए बोलने लगे -- " " ऐसी बात नहीं है मैडम ! थोड़ा सोचिए भी तो आप क्या बोल रहीं हैं ! वह लड़का दिल से नेक है..... लेकिन आपको ऐसा क्यूं लगता है कि वह हमारी बेटी के साथ कुछ गलत कर सकता है? " "


ज्योति आजकल बड़ी ख्याल रखने लगी है उस लड़के का....  बार - बार मुझसे पूछते रहती है खाना खाए की नहीं वो? ... खुद सुबह में चाय - नाश्ता उसके कमरे में ले जाती है .... शाम में हर दिन उसके कमरे में चली जाती है और खूब ठहाके की आवाज ऊपर से आती रहती है ..... पूछी बेटी से तो बोलती है
पढ़ाई करने जाती हूं .... मुझे तो इस लड़के का रंग - रूप अच्छा नहीं लग रहा है.... आप ही बताइए कौन हंस - हंस कर पढ़ाई करता है ,चुपचाप से होता है न  पढ़ाई ?? पता नहीं उस लडकें ने अपनी बेटी पर क्या जादू कर दिया है .... मुझसे तो कभी पूछती नही , खाए की नहीं खाए ; खाली उस लड़के के पीछे ही पड़ी रहती है ।


अपनी पत्नी का मुंह न बंद होते देख वे बीच में ही बोल पड़े -- " " ऐसी बात नहीं है ... आप गलत समझ रहे हैं .... आपका देखभाल करने के लिए नौकर तो है ही.... इसलिए बेटी आपसे कुछ पूछती नहीं है ....;  वो लड़का कुछ बोलता नहीं है ... उसे क्या जरूरत है और कभी बोलेगा भी नहीं .... मैंने ही ज्योति से कहा था , उसका देखभाल करने को । आपका सेवा में हम हाज़िर हैं ही ... बोलिए जाहपनाह! क्या हुक्म है ? ऐसा कहकर हंस पड़े। " "


" ' आप तो कभी गंभीर होते ही नहीं हैं ; जवान बेटी के बाप हैं .... अब कोई अच्छा सा लड़का ढूंढिए अपनी बेटी की शादी के लिए ....  " ' कल का वाकया मैं कभी भूलूंगी नहीं ; ऐसा कह वह रोने लगीं।


" " अब क्या हुआ मैडम! क्यूं अपनी आंखों के मोती बर्बाद कर रहीं हैं .... संभाल के रखिए बेटी की विदाई में काम आएंगे । " "


" ' कल दोपहर में नौकर से कहकर खीर बनवाई ... पड़ोस की शर्मा जी की पत्नी आ गई थी तो सोचा उनको भी खीर खिला दूं ।" '


" ' शाम में आपकी प्यारी बेटी रसोईघर में आ चिल्लाने लगी ; बोलने लगी -- ' प्रोफेसर जी खीर अभी खाए भी नहीं हैं और सब खत्म हो गया ' ; वह मुझ पर भी चिल्लाई .... अपने मां पर , वो भी सिर्फ उस गैर आदमी के लिए । " ' आंसू पोंछते हुए दुःख भरे शब्दों में वो बोलीं ।


मैं तो सीढ़ियों पर खड़ा - खड़ा सुनता रहा ; जी आया अभी ही घर छोड़ चला जाऊं लेकिन फिर दिमाग में आया , हंगामा कर प्रोफेसर साहब को कोई टेंशन न दूं । उनके पत्नी के मन में मेरे लिए सिर्फ नकारात्मक भाव ही थे ; इन सब को जानकर मेरा दिल बहुत दुखा। मेरे कानों में कटु शब्द सुनाई पड़ते रहे।
" ' हद तो तब हो गई जब वह खुद खीर बना उस लड़के को खिला लाई । मेरे लिए तो कभी कुछ नहीं बनाई । " '


" " अब चुप भी हो जाइए ... मैं बात करता हूं ज्योति से। " "
उस दिन के बाद से मैं ज्योति से बचने का प्रयास करता रहा। इस घटना की अगली सुबह ही जब वह चाय देने मेरे कमरे में आयी तो मैंने चिढ़ने का नाटक करते हुए कह दिया -- " देखो इस तरह बार - बार मेरे कमरे में मत आया करो ; मुझे अच्छा नहीं लगता तुमसे बातें करके  और सुनो ! शाम में पढ़ने भी मत आना ; आकर सिर्फ तुम मेरा समय बर्बाद करती हो , मुझे खुद पढ़ने में दिक्कत हो जाती है । "


वह कुछ न बोली और चुपचाप मेरी ओर देखकर चली गई । मेरे दिल को बहुत बेचैनी महसूस हुआ जब मैंने उसके गुलाब जैसे खिलते चेहरे को मुरझाते हुए देखा लेकिन मैं कर भी क्या सकता था और कोई दूसरा उपाय न था। उस घटना वाली शाम की रात ही प्रोफेसर साहब मेरे कमरे में आए थे और अपनी पत्नी के कहे विचारों को प्रकट करने लगे। उनका दिल बहुत ही साफ़ था ; कभी भी वो दिल में बातें छुपा नहीं रखते थे , उनकी यही स्पष्टवादिता मुझे बहुत भाती थी। इससे पहले कि मैं कुछ बोलता उन्होंने मुझे अपनी कसम दे दी --


 " " देखो तुम इसी घर में रहोगे ; तुम्हें मेरी कसम है .... तुम्हीं तो हो जिससे अपने दिल की बात बिना हिचक के कह सकता हूं ; मेरा दिल हल्का हो जाता है तुमसे बातें करके .... पत्नी तो कुछ समझती नहीं है और बेटी तो PCS कि तैयारी में और अपने दोस्तों के साथ ही व्यस्त रहती है । क्या तुम चाहते हो ; इन चार दीवारों के बीच मेरा दम घूंट कर इस दुनिया को छोड़ूं ! बताओ तुम्हीं ?? " "


" नहीं सर ! " मेरे मुंह से बस यही निकला।


उस रात में बस ज्योति के ही ख्यालों से मेरा दिल का कमरा भरा हुआ था। उससे बातें करना मेरे दिल - दिमाग को एक सुकून देता था जैसे ठंड से कांपते बच्चे को आग के पास रख दिया गया हो । उसकी पतली सी मीठी ध्वनि जब मेरे कानों में सुनाई पड़ती मानो जून की गर्मी से खेतों में पड़े दरारों को पहली बरसात से मुलाकात हुई हो। हर शाम के आने का इंतजार में अब दिन भर करने लगा था और शाम में जब आती तो दिल से एक ख्वाहिश सी जग जाती -- काश ! समय के कांटे रुक जाएं और यूं ही उसकी बातें घंटों सुनता जाऊं ; कई शाम उसके साथ गुजारने के बाद मैं अपने दिल की धड़कनों को स्पष्ट सुनने लगा था ; यह कला सिखाने के लिए मैं जीवन भर उसका एहसान के तले दबा रहूंगा ...


 बदले में मैं उसका PCS कि तैयारी में हाथ बंटाता । वो आईआईटी खड़गपुर से पढ़ कर डेढ़ साल पहले ही अाई थी और तब जाके उस पर जनसेवा का भूत सवार हुआ। कोचिंग में सामाजिक मामलों पर मिले लेख लिखने और डिस्कशन करने के लिए हर शाम आती थी ; एक दिन भी उसकी हाजिरी शाम के चर्चे में कम न हुई .... गरीबी , भ्रष्टाचार , लोकतंत्र आदि के बारे  में बोलते - बोलते न जाने कब कुछ मोहब्बत की पंक्तियां हम दोनों के मुंह से निकल जाती पता ही नहीं चलता .... इस दिल की यात्रा की शुरुआत तो उसने ही की थी। एक शाम एक घंटे की जोरदार चर्चा के बाद वह नीचे मेरे लिए पानी लाने गई ; मैं उसके कोचिंग के कॉपी के पन्नों को पलटने लगा ; मैं जानना चाह रहा था कि ये कोचिंग वाले क्या - क्या पढ़ाते हैं। 



एक पन्ने पर आकर अपना नाम देख मेरा ध्यान केंद्रित हो गया ;  पूरा पन्ना शब्दों से भरा था



" " __ I LOVE U , SAMIR __ " "    " " __ I LOVE U ,SAMIR  __ " "      " " __ I LOVE U , SAMIR  __ " "  ......... ....... ...... ....... ...... and so on to infinite ..... YOU CAN COUNT MY REPEATED FOUR WORDS BUT NONE CAN IMAGINE THE SKY OF MY LOVE IN WHICH I'M FLYING EVERY SECOND  BEING SOUL ...... 

YOU
ALWAYS FIND YOU READING BOOKS BUT NOW , TIME HAS COME TO READ THE BOOKS OF LOVE ..... YOU SHOULD TEACH ME ALSO WHAT IS LOVE.... WHY I'M DESIROUS FOR YOU , I DON'T KNOW .....



💓💓💓💓💓💓☑️☑️☑️💓💓💓💓💓



WHY SOMETIMES I BECOME VERY THIRSTY TO GET THE DROPS OF LOVE , I DON'T KNOW..... BUT I KNOW THAT WHENEVER I LOOK AT YOUR FACE, SOMETHING STARTS TO SHIVER WITHIN ME.... I CAN'T EXPLAIN IT TO YOU NEITHER I CAN WRITE IT DOWN IN WORDS ....


I TRIED VERY HARD TO GIVE SHAPE MY FEELINGS FOR YOU INTO A SET OF WORDS, BUT I DIDN'T FIND APPROPRIATE WORDS IN MY DICTIONARY EVEN AFTER LIMITLESS HOURS OF SEARCHING .....


I WANT YOU TO BE A GARDENER WHO CAN GROW  THOUSANDS OF  BEAUTIFUL AND COLOURFUL FLOWERS IN THE PLEASURE GROUND OF MY HEART ...... I WANT YOU TO HUG ME IN THIS GARDEN IN THE PRESENCE OF FULL MOON LIGHT



🌕🌕🌕🌕...... LOVE YOU MY HEART CHAMPION🏆 !!!!🌹🌹🌹🌹



❤️🧡💛💚💙💜☑️☑️☑️☑️💜💙💚💛🧡❤️



PLEASE DON'T REPLY IN " " " NO ! " " "
I ALREADY HANGED A BOARD OF " NO ENTRY " ON THE WALL OF MY HEART....


ये सब देख मेरे पूरे बदन में एक भूकंप सा कम्पन फैल गया था ....  इस भूकम्प का केंद्र मेरे दिल में ही था। वह आकर मेरे हाथों से अपना कॉपी झट से छीन ली और जब मैं उससे कुछ पूछना चाहा इसके पहले ही वहां से शरमाते हुए चली गई। मेरा कंठ घबरा हट में और भी अधिक प्यासा हो गया ; मैंने जैसे ही पानी भरा गिलास उठाया , मेरे कांपते हाथों से गिलास गिर गया ; कंठ की प्यास तो न बुझ सकी पर मुझे ऐसा लगा जैसे दिल के रेगिस्तान की बरसों की प्यास उस शाम बुझ गई ।
उस दिन के बाद से फिर कभी मेरे में हिम्मत न हुई की मैं उससे कुछ पूछ सकूं सिर्फ उसने अपने आंखों से ही हां कह दिया था।



उस दिन के बाद से सामाजिक मामलों पर हुई बहसों में तो मेरा जीतना जारी था लेकिन ईश्क की बाजी मैं उससे हारने लगा था।



मेरे मना करने के बाद भी वह मुझे सुबह - सुबह चाय मेरे कमरे में रख जाती और फिर मुझे देखती ; मैं सिर्फ अपना चिढ़ा चेहरा करते दिखाता फिर भी उस पर कोई प्रभाव न पड़ता और मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चली जाती । अब शाम में जब पढ़ने आती तो दिमाग कहता उसे कमरे से बाहर निकलने के लिए कह दो लेकिन दिल को तो अब उसकी बातों की आदत पड़ चुकी थी और इस दिल - दिमाग के द्वंद में दिल की जीत होती ।  अब वह मुझसे थोड़ा - थोड़ा शरमाने लगी थी ; अब हम दोनों को प्यार की किताबें पढ़ने में ही आनंद आता ।




 इसी तरह आठ महीनें बीत गए ; अगर एक दिन भी एक - दूसरे को न देखते तो दिल बेचैन हो उठता । एक दिन आधी रात को वह मेरे कमरे की खिड़की से झांक रही थी ... कॉलेज में ठंड की छुट्टियां शुरू हुई थी ; दिन में सो गया था इसलिए उस रात मुझे भी नींद नहीं आ रही थी । उसे देखकर मैं आश्चर्य के साथ दरवाजा खोला तो वह मुझे अपनी बाहों में भर ली ; मुझे समझ में नहीं आया कि ये क्या हो रहा है। वह चार - पांच मिनटों तक यूं ही मुझसे गले लगाए रही ऐसा मानों जैसे अब कभी मुलाकात नहीं होगी ; उसके शरीर से आती खुशबू मुझे भाने लगी और  उसकी भावनाओं में बहकर मैं भी उससे लिपट गया । फिर वह मुझे बताई की उसकी मां उसके लिए लड़का ढूंढने की बात उसके पिता जी से कर रहीं थीं ; " मैं आपसे दूर नहीं होना चाहती हूं " वह बार - बार यही रट लगाए हुए थी और फिर रोने लगी।



उसके आंखों के आंसू मुझे भी अंदर से झकझोरने लगे ; मैंने उसके आंसुओ की पोछने की कोशिश की फिर भी वह चुप नहीं हो रही थी । उसे समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन अपने नयनों से मोती गिराना जारी रखी ; कोई उपाय न देख पास जाकर मैंने उसको खींच गले लगा लिया और उसको अपने बाहों में जकड़ लिया । हम दोनों के शरीर की गर्मी एक - दूसरे को शांति प्रदान कर रही थी। कुछ मिनटों तक यही सिलसिला जारी रहा । अचानक वह मेरी बाहों से खुद को छुड़ा वह अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दी और चूमने लगी ; एक अजीब सा कम्पन उसके होंठो से मेरे खून में फैल पूरे बदन को पूरी तरह झकझोर रख दिया ; मुझे बिल्कुल समझ ना पाया जो नया एहसास वह मेरी जिंदगी में उस पल लाई .... 

 यह एहसास पूरी जिंदगी मेरे साथ जियी और मेरे अंतिम सांस के साथ ही ख़तम हुई । फिर मैं समझा बुझा कर किसी तरह उसे भेजा ।



अब वह रातों में भी मेरे कमरे में दस्तक देने लगी और जब तक वह मुझे अपने सीने से न लगा ले उसे चैन न मिलता । इसी तरह कुछ सप्ताह बीत गए । एक रात प्रोफेसर साहब की पत्नी मेरे कमरे की खिड़की से झांक हम दोनों को देख ली ; उस वक़्त ज्योति मेरे बाहों में बाहें डाले अपने दिल की बातें बयां कर रही थी । ये देखकर वो अपने गुस्से पर काबू न रख पाईं और हंगामा मचा दीं।


जितने जोर का थप्पड़ उन्होंने मारा ,उतना पूरी जिंदगी में किसी ने न मारा था ; गालियों की जैसे उन्होंने बौछारें कर दीं । प्रोफेसर साहब को इस घटना के बारे में जानकर बड़ा अचरज हुआ लेकिन थोड़ा भी गुस्सा न हुए।


किसी तरह प्रोफेसर साहब ने बीच - बचाव किया और अपनी पत्नी को शांत किए । 


प्रोफेसर साहब मेरी ओर देखें ; ऐसा लगा जैसे पूछ रहें हो इतनी बड़ी बात मैंने उनसे क्यूं छुपाई , उनसे आंख मिलाने की हिम्मत न हुई और मैंने अपना सिर नीचे कर लिया । तब फिर वे ज्योति की तरफ देख बोले -- " " तुम दोनों वास्तव में एक - दूसरे से प्यार करते हो?" "


इससे पहले कि ज्योति जवाब देती उसकी मां बोल गुस्से से बोल पड़ी -- " ' इससे क्या पूछते हैं ... अभी के अभी इस लड़के को घर से बाहर निकालिए .... ये मेरी बेटी को बहला फुसलाकर न जाने क्या - क्या किया होगा इसके साथ .... हे भगवान ! अपना मुंह काला करवाके बिरादरी में कही का न छोड़ी  । " '



ज्योति अपनी मां को मनाते हुए कही -- ' ' नहीं मां , ऐसी बात नहीं है ... हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं । ' '
" ' इतनी रात को बाहों में बाहें डाल कर कैसा प्यार होता है , सब पता है हमें। " '


" " अरे अब हमको भी बात करने देंगे , आप ! चुप हो जाइए थोड़ी देर । " " प्रोफेसर साहब अपनी भार्या पर चिढ़ते हुए बोले।


" " तुम दोनों एक - दूसरे से प्यार करते हो तो इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन एक बार बता देते .... ये सब कितने दिनों से चल रहा है ?? " "


' ' करीब चार - पांच महीनों से ' ' ज्योति हिचकते हुए बोली।
" ' न जाने इन पांच महीनों में दोनों ने मिलकर क्या गुल खिलाए होंगे .... कभी तक मैं जिंदा क्यूं हूं ; मुझे तो मर जाना चाहिए । " ' ऐसा कहकर उनकी पत्नी रसोईघर की ओर जाने लगी।


लेकिन तुरंत प्रोफेसर साहब उन्हें पकड़कर सोफे पर बिठा खुद भी सट कर बैठ गए और बोलने लगें -- " " अगर वे दोनों साथ - साथ खुश रहोगे  तो ठीक है उन दोनों की शादी करा देते हैं ; हमको तो कोई आपत्ती नहीं है ; वैसे भी लड़का एसोसिएट प्रोफेसर है .... अच्छा आय है और क्या चाहिए । " "


लेकिन उनकी पत्नी न मानी और बहुत गुस्सा होने लगी ; उन्हें विश्वास न आया की जो पति उनके हर बात में हामी भरते थे , वे अब एक बड़े मामले पर उनकी बात मानने से इंकार कर रहे हैं। अचानक वह बैठे - बैठे बेहोश हो गिर पड़ीं। जब मुंह पर पानी छींटा गया तब जाकर उनको होश आया। डॉक्टर ने हॉस्पिटल में भर्ती करने को कहा ।


अस्पताल में कई दिनों तक इलाज चला लेकिन उनकी तबीयत में कोई सुधार न हुआ ; वे न कुछ खाना चाहतीं न कुछ पीना , बस बिस्तर पर पड़े - पड़े छत को देखती रहतीं । उन्हें मन से कोई ठीक होने की कोई इच्छा नहीं थी । उनका शरीर पतला - दुबला हो गया ; हर कोई देखकर आश्चर्य करता उनकी हालत को देख । मनोचिकित्सक ने हम सभी को सलाह दी की उन्हें किसी बात से बहुत दुख हुआ है; उन्हें खुश रखने की कोशिश करें ।


उनकी हालत देख मैंने अपने प्यार के कदमों को पीछे लेने की सोचा। प्रोफेसर साहब के अपनी पत्नी की इच्छा पूछने पर उन्होंने अपने बचपन की सहेली के बेटे से अपनी बेटी का रिश्ता कराने की चाहत जताई।


उनकी सहेली का बेटा एक अमीर नेताओं के खानदान से था । वो सब उन्हें हॉस्पिटल देखने रोज आने लगे ; अब मेरी कोई जरूरत न रहीं इसलिए मैं प्रोफेसर साहब से आज्ञा लेकर अगले सुबह अपने गांव वापस लौटने का इरादा बना लिया। वैसे भी उनकी हालत में अब काफी सुधार होने लगा था।
शाम में मैं अपना बैग पैक कर रहा था कि पीछे से एक जानी - पहचानी ध्वनि मुझ तक पहुंची। ज्योति मेरे पीछे से आके मुझसे लिपट गई ; मैंने भी कोई आपत्ती न जताई। वो भावुक हो बोलने लगीं --" पिताजी ने बताया कि तुम कल जा रहे हो ! जब पता चला तब मुझसे रहा न गया और दौड़ी चली अाई ; न जाने तुम वापस भी आओगे की नहीं ....आओगे भी तो अब मुझसे मुलाकात न हो पायेगी .... शायद कभी नहीं । ये आखिरी शाम और रात तुम्हारे साथ जी भर के जीना चाहती हूं .....


मैं अपने पूरे बदन पर तुम्हारे हाथों का स्पर्श  महसूस करना चाहती हूं  .... आज ऐसी मोहब्बत की बारिश कर दो की मैं उसमें पूरी तरह भींग जाऊं और सारे - के - सारे गम दिल से बह जाएं। ' ' ऐसा कहकर वह फिर से मुझे अपने सीने से लगा ली .... रात्रि का अंधकार हम दोनों के दिलों में जलते दिए ने दूर कर दिया.... एक - दूसरे की बाहें हमें सुकून दे रहीं थीं और हम दोनों इस संसार के सभी बंदिशें तोड़ एक - दूसरे की रूह में उतर गए .... वह रात बहुत ही छोटी थी ; कैसे बीत गया पता ही न चला । उगते सूर्य के किरणें के साथ  मेरे जीवन में अंधकार के एक नए युग का आगमन हुआ।



सुबह उठा तो देखा ज्योति सोई हुई है .... मैं ये सोच के दुखी हुआ कि उसके चेहरे की वर्तमान की असीम शांति कुछ घंटों की बाद की बेचैनी से कैसे लड़ पाएगी । उसके द्वारा दिए गए उसके चार तस्वीर और एक सोने की चेन जिसपर मेरे और ज्योति के नाम का पहला अक्षर लिखा हुआ था , अपने बैग में रखा और उसके हथेलियों तथा सिर को आखिरी बार चूमकर वापस अपने मिट्टी कि ओर चल पड़ा ..... वापस मुड़ने की चाह कई बार जागी लेकिन मैं बहुत हिम्मत की और न मुड़ा ।
गांव की शांति मुझे काटने को दौड़ती .... दिन किसी तरह गुजर जाता लेकिन जैसे ही सूरज डूबने लगता , मैं घबरा जाता और सोचता, न जाने ये रात कैसे गुजरेगी ।



 जब मैं रातों में जागता रहता तो उसकी चार तस्वीरें भी मेरे साथ जागती रहतीं .... मेरा शरीर तो बिस्तर पर पड़ा रहता लेकिन दिल उसकी यादों के साथ मीलों का रास्ता तय कर वापस आ जाता .... उसके द्वारा दिए गए चेन को अपने गले से एक पल के लिए भी न उतारा। बड़ी मुश्किल से दिन और रातें कट रही थी । गांव के सरपंच ने मुझे कॉलेज में पढ़ाने का प्रस्ताव किया ; ये वही कॉलेज था जिसमें मैंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई की थी।



इस कॉलेज के एक प्रोफेसर के रिटायर होने के कारण कई महीनों से पद खाली था । भर्ती की सारी प्रक्रियाओं को पार कर मैं पढ़ाने लगा; अब मेरा दिल पढ़ने - पढ़ाने में फिर से लगने लगा ; अब तन्हाई भी रातों में मुझे किताबों में डूबा देख कमरे की खिड़की से झांक कर ही भाग जाती ; सिर्फ कॉलेज की छुट्टियों में और रविवार को उसकी यादें थोड़ी बहुत सताती थी । उस शहर की गालियां और सड़कें मुझे अक्सर बुलाती थीं पर मैं कभी राजी न हुआ ; पुराने कॉलेज में तनख्वाह नए कॉलेज से अधिक मिलती थी लेकिन एक अकेले आदमी को जीने के लिए जितने चाहिए उससे अधिक ही धन भगवान ने दिया था पर शायद धन और प्यार में सामंजस्य बैठाने में उनसे चूक हो गई , " धन अधिक और प्यार बहुत कम । " 



अब तक सात महीने बीत चुके थे लेकिन प्रोफेसर साहब अपनी बेटी की शादी का कार्ड न भेजे । शायद अपनी बेटी की शादी में कोई हंगामा न चाहते होंगे .... या फिर प्रोफेसर साहब की पत्नी मेरा चेहरा न देखना  चाहती होंगी .... इसी तरह के ख्याल मेरे दिमाग में कभी - कभी चलतें । फिर दो साल के बाद मेरी शादी गांव के ही सरपंच की लड़की से हो गई ।
अपने शादी के पांच सालों में मैं अपने शहर के प्यार को पूरी तरह भूल गया था ; वो चारों तस्वीर और चेन किसी बक्से में ताला लगा मैं उसको भूल ही गया था। 



" देखिए आपकी बेटी बाल नहीं बनवा रही है ... आप ही इसको समझाए " मेरी पत्नी की आवाज मेरे कानों में गूंजी।
अपने बच्चे को गोद में उठा मैं प्यार से बोला ---


" " अरे मेरी प्यारी बेटी ज्योति ! हमलोग ताजमहल देखने जा रहे हैं न अभी .... हवाईजहाज से और ऐसा कह अपने हथेलियों को जहाज बना उड़ाया .... एयरोप्लेन छूट जाएगा ; जल्दी से तैयार हो जाओ। " "


हम तीन जन ऐरोप्लेन में दाखिल हुए । 


" अरे ये क्या ! हवाई जहाज वाले विंडो सीट तो दिए ही नहीं; बहुत इच्छा था खिड़की से बादलों को देखें , पूरी दुनियां नजर आती है पापा कह रहे थे  लेकिन सब बर्बाद हो गया आपकी वजह से । " मेरी पत्नी चिढ़ कर बोली।


" " अब हम क्या किए बताओ तुम ?? इसमें हमारी गलती है विंडो सीट पहले से ही बुक हो गया था । " "
"नहीं - नहीं आपकी गलती नहीं है, सारी गलती मेरी है जो आपके साथ घूमने की सोची। "



" " अरे ! सभी लोग देख रहें हैं ...... तमाशा मत बनाओ सबके सामने । " "



ऐसे झगड़े तो अक्सर मेरा पत्नी के साथ होते रहता था ; वो मुझे ठीक से समझती नहीं थी या मैं उसको ठीक से समझता नहीं था , ये शोध का विषय था लेकिन कभी शोध न कर पाया ; क्या करूं जिस कॉलेज में पढ़ाता था, उस कॉलेज में प्रैक्टिकल करने के कोई उपकरण ही न थे ।



' ' आपलोग बहस क्यूं कर रहे हैं ?? मैं दे देती हूं अपनी सीट । ' ' 


विंडो सीट पर बैठी महिला की आवाज मेरी पीछे से अाई ; आवाज कुछ जानी - पहचानी सी लग रही थी ; पीछे मुड़कर देखा तो एक महिला अपने एक चार - पांच साल के बेटे के साथ थी । उस महिला का चेहरा ऐसे लगा जैसे सदियों से पहचानता हूं ; लेकिन जब उसकी आंखों में देखा तो कुछ नैनो सेकंड में ही सालों पीछे चला गया ; ये आंखें तो उसी ज्योति की थी जिसको मैं अपना बुरा भूत काल समझ भूल गया था ।
'' अब खड़े क्या हैं ... हटिए .... हमको जाने दीजिए विंडो सीट पर। "  मेरी पत्नी की ध्वनि ने मुझे भूत से वर्तमान में खींच लाई ।



दिल को एक झटका सा लगा ; बिल्कुल वैसा ही झटका था जो मुझे तब महसूस हुआ था जब ज्योति पहली बार मेरे होठों पर अपने होंठ रखी थी।



ज्योति मेरे साथ लड़की को देख मेरे पत्नी से बोली --  ' ' क्या नाम है इस प्यारी बच्ची का ??  ' '
" ज्योति ! ज्योति नाम है इसका .... और आपके बेटे का ? "
' ' समीर ! ' '



" सुना आपने !! आपका नाम इस प्यारे से बच्चे से मेल खाता है .... और देखिए तो इसका चेहरा भी थोड़ा - थोड़ा मिलता है .... अगर आप अपना मूंछ - दाढ़ी बना लेंगे तो बिल्कुल आपका बेटा जैसा लगेगा । " मेरी पत्नी बड़े उत्साह से मुझसे बोली।



अभी हवाईजहाज खुलने में समय था । मैं चुपचाप बैठ दोनों महिलाओं का वार्तालाप सुन रहा था।


मेरी पत्नी फिर एक सवाल ज्योति से की
-- " मेरा नाम चमेली है और आपका ??? आपके पति क्यूं नहीं आए साथ में ??? "


' ' ज्योति मिश्रा है मेरा नाम ! ' '


उसकी वो प्यारी आवाज जब मेरे कानों में पहुंची तो मुझे संगीत सा मालूम हुआ ; सुकून के पल बहुत दिनों बाद फिर से नसीब हुआ था।


' ' अरे ! ये क्या हो रहा है .... मेरी बेटी का नाम और आपका .... मेरे पति का नाम और आपके बेटे का नाम एक ही है .... इतना संयोग तो अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे हैं। ' ' मेरी पत्नी बोलना जारी रखी।


' ' और पति की बात आप पूछी तो बता दूं

मेरे पति का एक कार दुर्घटना में देहांत हो गया , कुछ सालों पहले । ' '


ये जानकर मुझे बड़ा दुःख हुआ । अब तो उसको अपना सिर रखने के लिए अपना कंधा भी नहीं दे सकता था ; अपने आपको बहुत  असहाय स्थिति में पाया ।


कुछ घंटों के बाद जब मेरी बीबी वॉशरूम गई तो बहुत दिल हुआ ... उसका हाल - चाल ले लूं  ; पूछ लूं
क्या हाल है प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी का लेकिन जैसे ही मैं उसकी तरफ देखा वो भी मेरे तरफ देखी ; मैं अपना सिर किसी और दिशा में करके देखने लगा ।



उसकी मीठी आवाज मेरे तक पहुंची -- ' ' तुम्हारे प्रोफेसर साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे .... जब तुम छोड़ कर अपने गांव गए ; उसके कुछ दिनों बाद मां पूरी तरह ठीक हो घर आ गई लेकिन पिताजी की जिंदगी में तुम्हारे जाने से जो जगह खाली थी वह मेरे होने वाले पति नहीं भर पाए.... उनको बहुत अकेलापन महसूस होने लगा लेकिन वे तुम्हें चाह कर भी नहीं बुला सकते थे ; मेरी मां अपनी कसम उन्हें दे दी थी कि वे कभी तुमसे बात नहीं करेंगे । दो महीने तो किसी तरह गुजर गए । एक रात जब हम सभी खाना खा रहे थे तो वे तुम्हारी ही बातें किए जा रहे थे ; मेरी मां को ये सब सुन बड़ा गुस्सा आया फिर भी तुम्हारी कॉलेज की उनके साथ बिताए दिनों की बातें मुझे बताए जा रहे थें .... सुबह मां उन्हें उठाने का बहुत प्रयास की .... तुम्हें बुलाने का भी उन्हें लोभ दी ... अपने सारे कसमों को वापस ले ली लेकिन फिर भी तुम्हारे प्रोफेसर साहब नहीं उठे ।



मां तुम्हें अक्सर याद करती हैं ....कभी आना उनसे मिलने ।  ' '


मैं तो अंतिम पंक्ति सुन भौचक्का रह गया .... वो महिला मुझे याद करेगी जिसके दिल में मेरे लिए सिर्फ घृणा भरी हुई है ।
' ' हां.... हां... तुम्हें ही याद करती हैं ; पिताजी के जाने के बाद से उनका तुम्हारे प्रति सारा नजरिया बदल चुका है । ' '



" " तुम आज भी वही ज्योति हो ; बिल्कुल नहीं बदली ; बिना बोले ही मेरे दिल की बात समझ जाती हो। " " मैं इतना ही बोल पाया कि मेरी बीबी वापस आ बैठ गई।


एक महीने बाद कॉलेज के कुछ काम से उसके शहर के कॉलेज जाना हुआ तो सोचा प्रोफेसर साहब की पत्नी से मिल ही लूं । जब पहुंचा उनके घर तो देखा उनके घर की जगह एक बड़ा सा स्कूल खड़ा था ...... " SAJ CONVENT HIGH SCHOOL ''



घर तो वही था पर इसका पूरा का पूरा रंग रूप  ही बदल गया था । तभी बूढ़ी आंखें मुझे तलाशते हुए मेरे पास आयी ; मैंने प्रोफेसर साहब की पत्नी का पैर छुआ ; वो मुझे अन्दर ले जाने लगीं ।


  " ' मेरे पति के जाने के बाद ये घर खाली हो गया.....
सुनसान सा खंडहर मालूम होता था ;  तुम आए ही नहीं .... अपने जीवन की अंतिम रात्रि तक तुम्हें ही वे याद करते थे । " '


" 'तुम अपने बेटे से मिले की नहीं .... बार - बार पूछता रहता है ; पापा कब आयेंगे विदेश से। " '
" " मेरा बेटा .........
        विदेश .............
ये सब आप क्या बोल रहीं हैं ; मैं कुछ समझा नही " "
" ' सब बताती हूं सब्र करो।
तुम्हारे जाने के पहले की एक रात के प्यार से मेरी बेटी को एक लड़का हुआ था । " '



ये सुन मुझे चक्कर जैसा महसूस होने लगा।


" ' तुम्हारे नाम पर ही अपने बेटे का नाम रख दी .....
अपने नाती कि मैं बोल रखी हूं कि उसके पिता विदेश कमाने गए हैं .... जब से यह बोली हूं ; कम परेशान करता है समीर राज। " ' 


" ' बाप का नाम समीर श्रीवास्तव और बेटे का नाम समीर राज " ' .... ऐसा कह वो हंस पड़ी।



" ' इस स्कूल का नाम भी तुम्हारे नाम पर ही रखी है बेटी ! " '

* Samir and Jyoti convent high school *


" 'और तुम्हें पता है तुम्हारे चहेते प्रोफेसर ने जाते - जाते ये घर तुम्हारे नाम कर गए हैं ... मेरा क्या है जब मन चाहे गांव चली जाती हूं ; खेत की देख - रेख भी इसी बहाने कर लेती हूं  ; लिखा - पढ़ी हो जाती है दस बीघा खेतों की। " '  चलो उनकी दूसरी इच्छा पूरी हो गई आखिरकार तुम शादी के बंधन में बंध गए .... ज्योति ! तुम्हारी पत्नी और बच्चे के बारे में बताई ।
" " उसकी शादी होने वाली थी न ?   उसका क्या हुआ ? " " मैं उत्सुकता से पूछा।


" ' हमारे खानदान में रीति - रिवाज है ; अगर किसी का स्वर्गवास  हो जाता है तो उस परिवार में एक वर्ष
तक किसी भी सदस्य का ब्याह नहीं होता है । " '



" ' कुछ महीनों बाद जब ज्योति को पता चला ; उसके पेट में तुम दोनों का प्यार पल रहा है तो उसी के सहारे जीवन काटने की ठान ली। " '



तभी मेरा बेटा अपनी मां के साथ प्रकट हुआ । उसे देखते ही मैं उसके पास जा अपनी गोद में उठा कर बाप का प्यार बरसाने लगा ; दिल हुआ की अपना सारा प्यार एक पल में ही उस पर लूटा दूं ,  जिस पिता के प्यार से उसे सालों वंचित रखा गया था ।


कुछ मिनटों के बाद ही ज्योति मेरे हाथों से बच्चे को छीन अपने गोद में ले ली ।


मेरे मुंह से अफ़सोस भरे कुछ शब्द निकल गए -- " " क्या एक बाप अपने बेटे को भी प्यार नहीं कर सकता है ?  तुम इतना क्रूर कैसे हो सकती हो ज्योति ?  मैं जिस ज्योति को छोड़ कर गया था वो तुम नहीं हो सकती । " "


मेरी कठोर स्वर सुन उसके टूटे दिल से आवाज अाई -- ' ' अब दुबारा टूटने की हिम्मत नहीं है समीर ! अब
किसी से ज्यादा लगाव नहीं रख सकती ....  जितना ज्यादा किसी को प्यार करती हूं उतना ही दर्द सहना पड़ता है मुझे । ' '
' ' तुम्हारे अनुपस्थिति में जैसे सालों संभाली हूं वैसे ही  मैं अपने बच्चे को अकेले ही संभाल लूंगी ...  तुम्हारा क्या है आज यहां , कल वहां ...... दिल लगाके  फिर से छोड़ के चले जाओगे .... अगर ऐसा होगा तो जिंदा नहीं रह पाऊंगी। ' '


thanks to all my readers
😊😊😊😊😊


Best romantic love story

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7 Comments

  1. heart touching story u've written. i like this story very much

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  2. u explained this story very well. At first , i thought this story is long but when i read some paragraph, i lost in your story and when i ended reading, i didn't know.

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  3. Very impressive writing.... This love story is very good and well written

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  4. प्यार के अभागे ही प्यार की कहानियां पढ़ते हैं

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  5. Thanks HELFOO
    🙏🙏🙏 FOR YOUR PRECIOUS COMMENT

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