Story in hindi
College story in Hindi
मेरे कदम अत्यधिक गति से कॉलेज की तरफ बढ़ते जा रहे थे ; जैसे मेरे कदम रुकते ही मृत्यु मुझे अपने पंजे में जकड़ लेगी । अपने पैरों पर भौतिकी के कुछ फार्मूले लिखने के कारण मुझे ग्रेजुएशन पार्ट -3 की परीक्षा के लिए देर हो चुकी थी । मैं समय का पक्का आदमी था लेकिन क्या करे ! जीवन की अजीबो - गरीब परिस्थितियों में मैं अक्सर फंस जाता था । जब इंटर अच्छे नंबरों से पास हुआ , पिताजी बोले - बेटा ! तुम फिजिक्स से स्नातक करो ; जीवन में आगे बढ़ने का बहुत ज्यादा स्कोप है । जब प्रोफेसर का लेक्चर सुनने लगा तब धीरे - धीरे जीवन से जोश और उमंग गायब होने लगा ; विज्ञान के प्रति रुझान गायब होने लगा और स्नातक पार्ट 3 में तो बिल्कुल शून्य ।
फिजिक्स में जीवन संवारने का स्कोप भी शून्य ।
रोबोटिक्स , एन्वाइरन्मेंट साइंस , कुछ मशीन से संबंधित बातों में ही मेरी रुचि थी । लेकिन मेरे इंटर पास होते ही मेरे शब्दकोश के रुचि , दिलचस्पी , शौक जैसे शब्द लिए पन्नों को परिवार के सदस्यों द्वारा जला दिया गया । एग्जाम में अच्छे अंक लाना ही जीवन का ध्येय बन गया ।
कॉलेज के पहले दिन का वो दो घंटे का लेक्चर वो भी सिर्फ एक प्रोफेसर के मुंह से , वो दिन मेरी जिंदगी का काला दिन था ।
एक बड़ा सा निकला हुआ पेट ; मानो पेट में कोई छह - सात महीने का बच्चा हो , ढीला - ढाला काला पैंट आधे पेट तक ; बदन पर सिर्फ़ ब्लाउज पहन लें तो पूरा बदन ढक जाए , शर्ट पहनने की जरूरत न पड़े ; काला मुंह और लाल - लाल पान लटके मोटे - मोटे होंठ , पान के शौकीन बाबू : ये सब के सब मुझे नरक से आए किसी विचित्र दानव के जैसा प्रतीत हो रहे थे । असल में वे फिजिक्स डिपार्टमेंट के HOD थे ।
प्रोफेसर बोलने लगे ; वहीं सब बातें जो वो हर साल नए छात्रों को सुनाते हैं ; ये सब उनके जहन में बैठा हुआ था बिल्कुल उस पंडित के जैसा, जो शादी - पूजा कराते वक्त बोलते हैं - इतना जेट फाइटर प्लेन के स्पीड से की दिमाग को भी न मालूम पड़े की , क्या बोला जा रहा है ।
-- ' आप सब बहुत ही भाग्यशाली है जो ग्रेजुएशन में फिजिक्स से एडमिशन लिए ; आप फिजिक्स को नहीं चुने हैं बल्कि फिजिक्स आपको चुना है ; फिजिक्स पढ़कर आप कुछ भी बन सकते हैं ; कुछ भी मतलब बहुत कुछ -- आईएएस , आईपीएस , समझदार पॉलिटीशियन ; डीआरडीओ , इसरो में जाकर देश का नाम ऊंचा कर सकते हैं ; प्रोफेसर बन के देश के भविष्य का निर्माण कर सकते हैं और रही बात पैसों की तो , वो प्रोफेसर बनने में हैं ही । '
इनके भाषण का सही अर्थ कॉलेज में एक साल पढ़ने के बाद समझ आया । कॉलेज की पढ़ाई आज से तीस साल पहले जो थी , वहीं आज भी विद्यमान थी । दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी थी लेकिन विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम नहीं । क्लास में प्रोफेसर पढ़ाते -- इस डिब्बे में गैस है , एक कण दूसरे कण से निम्नतम दूरी पर जो टकराएगा , वहीं न्यूनतम दूरी हमें निकालना है और फिर चालू होता एक लंबा - चौड़ा फॉर्मूला का डेरिवेशन ( व्युत्पत्ति ) जो चालीस से पचास मिनटों तक चलता , अगर बच गया तो फिर अगले क्लास में ।
स्नातक पार्ट - 1 में मैं बहुत समझने का प्रयास करता था लेकिन जैसे - जैसे महीने बीतते गए वैसे - वैसे दिमाग अपंग होने लगा । कॉलेज से जब घर जाता तो मां कहती -- थोड़ा देखो तो ये पंखा बहुत आवाज कर करा है , ठीक कर दो । ये सुनते ही दिमाग मुझसे कहता - ' प्रोफेसर जो आज लंबा - चौड़ा फॉर्मूला बताए हैं , वहीं लगा के देखो ! शायद इससे पंखे की समस्या हल हो जाए । ऐसा कहकर जोर से हंसने लगता । ये मेरी समझ से बाहर था कि आखिर क्यूं प्रोफेसर सब जो आम जीवन में काम है वो सिखाते नहीं है । घर में पंखा लगाना हो या कोई तार जोड़ना हो या मोटरसाइकिल में कोई खराबी हो जाए तो दिमाग सुन्न हो जाता है , कुछ बुझाता ही नहीं - क्या करे , क्या न करें और मैकेनिक सिर्फ एक - दो तार जोड़ने के ही दो - तीन सौ ले लेता है । आखिर कॉलेज की पढ़ाई कोई काम ही नहीं आ रही तो हम क्यूं पढ़े ।
वे आगे बोलते रहे --
" फिजिक्स ही जीवन है , फिजिक्स ही कर्म है और पूजा भी ; फिजिक्स नहीं पढ़ना मतलब अपनी जिंदगी बर्बाद करना ; आसपास देखो जरा ! हर तरफ सिर्फ फिजिक्स के नियम ही काम करते हैं ; हिस्ट्री , जियोग्राफी ,हिंदी , इंग्लिश के नहीं । "
मेरे बगल में बैठा एक मनचला नर बोल पड़ा -- ' बाहर जो लड़का - लड़की एक दूसरे की ओर खिंचे चले जाते हैं, उसमें भी तो फिजिक्स है -- न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम । '
प्रोफेसर साहब की कानों को यह उदाहरण अप्रिय लगा लेकिन उस लड़के की सच्चाई को अनदेखा कर अपना व्याख्यान जारी रखे रहे ।वैसे भी ये ऐटिट्यूड में रहने वाले प्रोफेसर छात्रों की सुनते कहां हैं । खैर ! ऐटिट्यूड आए भी क्यूं न , लाख में जो कमाते हैं । तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता , छात्र - छात्राओं का क्या मत है । मोटा नर ऐसा एक्टिंग किए जैसे लड़के की बात सुने ही नहीं हो । यह सुनकर क्लास की कुछ शर्मीली लड़कियां हल्के से मुस्कुराई और कुछ दिल खोल के खिलखिलाई । इन्हीं खुले दिल की लड़कियों के सुंदर चेहरों को देखकर मेरा ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता था, जो प्रोफेसर के लेक्चर सुनके बार - बार हाई हो जाता था । गौतम बुद्ध के बोले गए वचन मुझे याद आए --- " जहां समस्या है , वहां उसका हल भी है ; बस हमें ढूंढने की जरूरत है । "
प्रोफेसर साहब लाख में कमाते तो थे लेकिन फिर भी उनके पास फेयर हैंडसम खरीदने के पैसे नहीं थे इसीलिए उनकी कुरूपता अपने चरम सीमा पर थी और दूसरी तरफ लड़कियों का सौन्दर्य देखते बनता था । लड़कियां सुंदर - सुंदर रंग - बिरंगे वस्त्रों और नकली आभूषणों से सुसज्जित थी ; मानो वे किसी फैशन शो में अाई हों । लड़कों की बात ही क्या करे ; वही काली जींस और उजले या हल्के रंग के शर्ट । हलके आसमानी रंग के जींस और लड़कों का चोली - दामन जैसा बहुत ही गहरा रिश्ता है ।
मैं कॉलेज पहुंचा तो पहले से ही सारे दोस्त विद्यमान थे ; कुछ पढ़ाकू मित्र और सहेलियां अपने - अपने नोट्स से पढ़ रहे थे ; इन सबको पढ़ते देखकर मेरा दायां हाथ खुद - ब - खुद दिल पर चला गया और कुछ वाक्य मुंह से धीरे से निकल पड़े - ' हे प्रभु ! सब संभाल लेना । अब मेरे भाग्य का निर्णय आपको ही करना है ।
फेल करके मुझे पूरे समाज में तिरस्कार और निंदा का पात्र बनाना चाहते हैं या फिर फर्स्ट डिवीजन से उत्तीर्ण करवाके प्रशंसा का पात्र ; ये आपको ही निर्णय करना है । मेरे कदम आगे बढ़ते ही मुझे याद आया ; अरे भाई ! मैं तो नास्तिक हूं , मैं तो भूत - भगवान में भरोसा ही नहीं करता । मेरा दिमाग मुझ पर हंसा और बोलने लगा -- " विकिपीडिया पर पढ़ा था न ! आज तक कोई भी सिद्ध नहीं कर पाया है कि भूत होते हैं । अगर भूत नहीं होते हैं तो भगवान कैसे हो सकते हैं ; तुम तो ईश्वर को देखे ही नहीं हो तो कैसे मान सकते हो कि प्रभु हैं । "
मेरे पूरे बदन में जोश और खुशी की लहर दौड़ गई जब मेरी नजरें पास के ही झुंड के दस - बारह नर - मादाओं पर गई । मेरे क्लास के ही लड़के - लड़कियां आपस में हंसी - ठिठोली कर रहे थे , इन सबको देखकर मालूम होता था - अभी कुछ देर में अंदर पार्टी होने वाला है , एग्जाम का कोई टेंशन ही नहीं । लड़कियों का लाल - लाल 💄 लिपस्टिक तो मुझे दूर से ही दिख गया ; लाल रंग का तरंगदैर्ध्य जो बहुत अधिक होता है ।
मेरे पहुंचते ही एक सहपाठी अंकुर बोल पड़ा -- " आने में देर हो गया तुमको भाई ! पैर में मेहंदी लगाए हुए थे क्या !! "
इन वाक्यों के ख़तम होते ही पूजा के मुंह से एक सुरीली ध्वनि निकल पड़ी -- " न न ! अभी देर न हुआ है , अभी तो आधा घंटा बचा हुआ है ।" पूजा एक उभरती हुई गायिका थी । वह जब भी बोलती ऐसा लगता जैसे कोई कोयल अपने प्रियतम के लिए गीत गा रही हो । फिजिक्स क्यूं ली , पूजा को खुद नहीं पता था ; फिजिक्स में भले ही कमजोर हो लेकिन बाल संवारना , अलग - अलग स्टाइलिश लुक में दिखने खातिर रंग - बिरंगे कपड़े पहनना वो अच्छे से जानती थी और सबसे खास बात : वो कई डिपार्टमेंट के लड़कों को एक ही समय में संभालना जानती थी । पढ़ती बिल्कुल न थी फिर भी एग्जाम में फर्स्ट डिवीजन में पास ; वो पार्ट 1 और पार्ट 2 में कैसे पास हो गई , ये कोई नहीं जानता , यहां तक कि पूजा भी नहीं ।
मैं अंकुर की ओर देखकर अपने देर होने का कारण बताने लगा -- " अरे यार ! चार - पांच फॉर्मूला का डेरिवेशन याद नहीं हो रहा था ; कहीं ये सब एग्जाम में आ गया तो क्या करेंगे ; यही से दोनों पैर पर लिख लिए । "
" लेकिन जैसे ही लिखने लगे तो मैंने देखा कि पैर तो सिर्फ बालों से ही भरा हुआ है , लिखने का तो जगह ही नहीं है। Gillete गार्ड से फिर घुटना के नीचे का बाल बनाया और फिर लिखा ; इसी में समय बर्बाद हो गया । "
पूजा हंसते हुए बोली -- " तुम्हारे पास veet नहीं था क्या ? " सभी लड़कियां और लड़के हंसने लगे ।
मेरे कुछ नहीं बोलने पर कुछ सेकंड बाद
पूजा कहने लगी -- " मुझसे मांग लेते , तुम्हारे पास नहीं था तो ! "
मैंने मुस्कुराते हुए कहा -- " क्या करे ! ये सब क्रीम खरीदने के लिए पैसा ही नहीं है ; पढ़ाई करें या कमाएं ? "
सब एक स्वर में हंस पड़े ।
पूजा लड़कों से कोई पर्दा जरा भी नहीं रखती थी ; सबसे हंस के बतयाती ; उसकी इन्हीं बातों की वजह से तो उसे कई डिपार्टमेंट के छात्र जानते थे और हमारे क्लास की चहेती। ग्रेजुएशन के इन चार सालों के दौरान हम सबके बीच की दीवार टूट चुकी थी ; बात करते वक्त मालूम ही नहीं पड़ता था , कौन लड़का है और कौन लड़की । भगवान मगध विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर कभी खतरा न आने दे ! मगध यूनिवर्सिटी ने ही हम सभी को ग्रेजुएशन में तीन साल नहीं बल्कि चार वर्ष दिए । समय ज्यादा मिलने के कारण
हम सभी अपने दोस्ती और प्यार के रिश्ते को मजबूत और गहरा बनाने में सफल हुए ।
दूसरे यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने वाले छात्र - छात्राओं को जीवन , मित्रता , ईश्क , मोहब्बत का उतना ज्ञान नहीं हो पाता जितना मगध विश्वविद्यालय के छात्र - छात्राओं को होता है । इसलिए मगध यूनिवर्सिटी और इसके संरक्षक बहुत - बहुत धन्यवाद के पात्र हैं जो स्नातक की पढ़ाई को तीन साल में खत्म करने के बजाय चार - साढ़े चार साल लगाते हैं । भारत की सभी यूनिवर्सिटियों को मगध यूनिवर्सिटी के नक्शे - कदमों पर चलना चाहिए ।
अंकुर, पूजा, स्वाति , रवि, मोहन और शिवम सभी परीक्षा के लिए आश्वस्त दिख रहे थे ।
सोनू , अंकिता, नेहा , राकेश , सुभाष , विक्रम सभी के सभी जसपाल गेस पेपर या फेयर कॉपी से रट रहे थे ।
विक्रम के बगल में बैठ मैं भी उसके गेस पेपर में झांकने लगा । कुछ मिनट बाद मैं बोल पड़ा -- " अरे भाई ! कुछ और पढ़ो ; एक ही प्रश्न का उत्तर बार - बार पढ़ रहा है। "
वह मेरी तरफ़ आश्चर्य से देखते हुए बोला -- " यही न आने वाàaला है ; तुमको अंकुर बताया नहीं ?? क्वेश्चन पेपर आउट हो गया है । समझे ! "
ये सुनकर मुझे अन्दर से झटका लगा और कुछ सेकंड के बाद झटके से ऊबर के उत्सुकतावश पूछा -- " भाई ! बता , कौन - कौन प्रश्न आनेवाला है ? "
वह गेस पेपर में आंखें गड़ाए हुए थोड़ा चिढ़ते हुए बोला -- ' जाके अंकुर से पूछो , प्रश्न का सेट उसको चार दिन पहले ही मिल गया था , जाओ ! अब हमको पढ़ने दो । '
दो मीटर दूर खड़े अंकुर के पास जा थोड़े गुस्से से पूछा -- " क्वेश्चन पेपर तुमको कई दिन पहले ही मिल गया और हमको भेजा भी नहीं ! "
वह सफाई देते हुए बोलने लगा -- ' प्रश्न आया तो हम याद करने लगे ; हमको भेजने का फुरसत ही नहीं रहा और याद भी नहीं रहा ; नहीं तो तुमको हम जरूर भेज देते । "
कॉलेज के मुख्य द्वार की तरफ वह देखने लगा और हड़बड़ाते हुए बोला -" ठीक है , सब अंदर जा रहा है ; हम भी चलते हैं । " ऐसा कहकर वह तेजी से नजरें चुराकर जाने लगा , मानो उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो ।
मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आया । पिछले एक महीने से लगातार प्रश्नों को रट के , थोड़ा यूट्यूब से और थोड़ा क्लास नोट्स से समझ के तैयार किए जा रहा था । जब एक प्रश्न को चार - पांच पेज में लिखने का प्रयास करता तो उंगलियां दर्द करने लगती थीं , फिर भी दो - तीन प्रश्न लगातार लिखने का प्रैक्टिस करता । ये सब मेहनत मुझे बर्बाद मालूम होने लगा । एक मेहनत करने वाला विद्यार्थी और न पढ़ने वाला विद्यार्थी के अगर एक जैसे मार्क्स आए तो मेहनत तो बर्बाद मालूम होता ही है ।
अंकुर मुझसे हंस - हंस के बातें करता था । मेरी और उसकी काफी अच्छी दोस्ती थी लेकिन वो मुझसे नेगेटिव कॉम्पटीशन करेगा , मुझे मालूम न था । क्वेश्चन पेपर आउट हो जाए और किसी बंदे या बंदी के पास वो प्रश्न न पहुंचे तो दुःख होना तो लाजमी है ; यह दुःख इस बात पर निर्भर नहीं करता कि कौन पढ़ने वाला है और कौन नहीं ।
उसके लिए मेरे मुंह से अपने - आप ही कुछ गालियां निकल गई और आहत दिल बोल पड़ा -- बाद में बताएंगे तुमको ; धोखा किए हो न , त हम भी समय आने पर बदला लेंगे । बोलने के लिए तो मन ही मन बोल दिया लेकिन दिमाग जानता था कि मेरा बदला लेने की औकात नहीं है । वो ठहरा सरकारी नौकरी वाला अमीर बाप का बेटा ; स्पोर्ट्स बाइक , बदन पर हमेशा नए कपड़े , कॉलेज की लड़कियां उसको भाव हैं देती ; किस चीज की कमी थी उसको और मैं ठहरा गरीब ; साईकिल पर चलते - चलते कॉलेज के दिन गुजार दिए , खुद का खर्च उठाने खातिर कॉलेज से आकर शाम में टयूशन पढ़ाओ ।
सभी एग्जाम हॉल के अंदर जाने लगें । मैं सोचा विक्रम या बाकी से कुछ सवाल पूछ लूं । जैसे ही मैं अपने दोस्तों के पास जाने लगा , वे आपस में बात करते हुए एग्जाम हॉल की तरफ जाने लगे । विक्रम और बाकी अनजान चेहरे अभी भी पढ़ रहे थे । उससे जाकर प्रश्न पूछा तो वह चिढ़ते हुए मुझे दुत्कार दिया ; मानो वह ऑडी में बैठा अमीर आदमी हो और मैं भीख मांगने वाला कोई भिखारी ।
क्वेश्चन पेपर मिला तो देखा 11 प्रश्नों में से तीन बहुत बढ़िया से आते हैं । जो याद करके पूरा रट के आया था, उसमें से कोई प्रश्न आया ही नहीं । छह प्रश्न लिखने थे । एक प्रश्न का बहुत अच्छे से फॉर्मूला का डेरीवेशन पैर पर लिख रखा था ; चलो भगवान का शुक्र है , कुछ तो अच्छा हुआ । अपना फूल पैंट ऊपर करके देखा तो सारी स्याही की लिखावट पसीने की धाराओं में बह चुका था और स्याही के साथ मेरी आशा भी । मेरे पीछे का लड़का आया नहीं था और आगे जानी - पहचानी चेहरे वाली ज्योति नामक घमंडी लड़की और बाएं तरफ एक अनजान चेहरे वाला महा बकलोल देहाती युवक जिससे अगर फिजिक्स की स्पेलिंग भी पूछे तो वह सोच के जवाब दे ।
मेरे द्वारा कॉपी भरने की प्रक्रिया का शुभारंभ करते ही निरीक्षक बार - बार हिदायते देते -- " पैर अंदर करके लिखो , आपस में दूरी बना के रखो ; ए लड़का ! तुम दीवाल में सटो । " निरीक्षक के मुंह से बार - बार निकलते कर्कश ध्वनि मेरे विचारों के प्रवाह में बाधा पहुंचा रही थी । मेरा जी चाह रहा था , उठू और उनके मुंह पर टेप साट दूं ; कुत्ता की तरह भौ - भौ किए जा रहे थे ।
मेरा लक्ष्य था -- सबसे पहले जल्दी से तीन प्रश्न बना लूं , सभी के पांच - पांच पेज में उत्तर लेकिन लिखना छोड़ कभी अटेंडेंस शीट भरो तो कभी निरीक्षक के हस्ताक्षर के लिए कॉपी आगे बढ़ाओ । एग्जामिनेशन हॉल में तो पंद्रह मिनट ऐसे ही बर्बाद हो जाता है । मेरे रूम में दो महिला निरीक्षक और एक पुरुष निरीक्षक आधे घंटे तक इधर - उधर चक्कर लगाने के बाद सामने ब्लैकबोर्ड के पास बैठ गए । तीनों में जो बातचीत शुरू हुआ वो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । दोनों महिला और पुरुष के पास ढेर सारी कहानियां एक - दूसरे को बताने के लिए थी । सभी चाहते थे कि वे तीनों अपने में मग्न रहें लेकिन ये कहां का नियम है कि जोर - जोर से चिल्लाकर ही बकवास करेंगे । उन सभी को धीरे - धीरे बकवास करने के लिए बोला भी नहीं जा सकता; नहीं तो जहां उनका मूड खराब हुआ की उस परीक्षार्थी को हिलने भी न दे जो उनको रोके - टोके और उसका पूरा साल बर्बाद कर दें ।
एक महिला निरीक्षक बाहर चली गईं तो दोनों मैडम - सर में बातें होने लगी ।
महिला निरीक्षक पुरुष से -- " जानते हैं गुप्ता जी ! "
पुरुष निरीक्षक ( दांत दिखाकर हंसते हुए ) -- ' नहीं !
अजी , आप बताएंगी तब न जानेंगे । '
महिला प्यार से चिढ़कर मुस्कुराते हुए बोली --' आप बोलने देंगे तब न बोलेंगे । '
" अच्छा बोलिए न । "
' पिछले साल हम अपनी बड़की बेटी का शादी किए ; शादी का किए , बहुत झमेला हो गया । उसकी सास बहुत राड़ निकली । मेरी बेटी को बोलती है सुबह चार बजे उठकर नहा धोकर एक घंटा सबसे पहले पूजा - पाठ करो ; प्रतिदिन हनुमान चालीसा और दुर्गा चालीसा खत्म करना है । '
" ई तो बहुत समस्या वाला बात है । "
' हां , वो तो है ही ; आगे सुनिए जरा । फिर सास के लिए बाथरूम में पानी भर के रखना है और उसके नहाने के बाद कपड़ा भी धोना है । '
" वो सब बहू लाया है कि नौकरानी ! "
सबसे बड़ा समस्या कपड़ा धोना खाना बनाना नहीं है । नया - नया शादी हुआ है बेटी का तो रात में देर से सोती ही है ; बेटी बोल रही थी बारह - एक तो सोते - सोते ही बज जाता है । आपही बताइए कैसे उठेगी सुबह के चार साढे - चार में ?? '
अपने चेहरे पर कृत्रिम आश्चर्य का भाव बनाकर बोले -- ' ये तो नामुमकिन है ।'
मैडम परेशान मुद्रा में आगे चालू हुईं -- " हम खुद नहीं आठ - नौ बजे के बाद बेटी को कॉल करते हैं ; काहे ला , शादीशुदा जिंदगी में अपना टांग अड़ाए । "
गेट के पास वाले बेंच के तीसरी कतार में बैठे होने के कारण न चाहते हुए भी मेरे कानों में उन दोनों की बातें आ रही थी । वैसे भी बात करने वाले को कोई दिक्कत नहीं तो सुनने वाले को कैसी दिक्कत ! उन दोनों की खट्टी - मीठी - कड़वी जीवन के वार्तालाप जारी रहे और विद्यार्थियों के पॉकेट से चिट निकलने का सिलसिला अत्यधिक गति से चालू हुआ ।
तीन प्रश्न लिखने के बाद जोगाड़ की तलाश में मेरी आंखें आसपास देखने लगी । कुछ ही मिनट हुए होंगे की मेरे आगे बैठी ज्योति विनम्र निवेदन करने लगी -- " थोड़ा कॉपी दिखाओ न अपना ; याद किए थे जो क्वेश्चन वो भूल गए । " ऐसे तो वह मुझसे बातें नहीं करती थी , ऐटिट्यूड से भी नहीं ; आखिर क्यूं वो एक साईकिल वाले लड़के से बात करेगी और पढ़ने में भी मैं आइंस्टीन तो था नहीं और रही बात लुक की तो , शक्ल - सूरत वैसा भगवान दिए नहीं । लेकिन उसकी विनम्र और मीठी आवाज मेरे कानों को कर्णप्रिय मालूम हुआ । सारे गीले - शिकवे भूल मैं झट से अपनी कॉपी टेढ़ा कर दिया और वह देख के छापने लगी ; क्या करूं !! एक गरीब लड़के के सीने में भी दिल होता है और उसे पसीजने में एक सेकंड भी नहीं लगता जब कोई सुंदर कन्या मदद मांगे और इस सुंदर स्त्री से बतियाने का मौका फिर दोबारा मिले की न मिले , भला कौन जानता है ।
लगभग पंद्रह मिनटों की छपाई के बाद ज्योति धीरे से मुझसे बोली -- " मेरे पास गेस पेपर है । दें ??? "
मैं खुशी से झूम उठा ; चलो बाकी प्रश्नों का उत्तर का जोगाड़ हो गया ।
वह अपने सलवार के अंदर से गेस पेपर निकाली और बेंच के नीचे से डरते - डरते मुझको धरा दी ।
मेरे दिमाग मुझसे कहने लगा -- ' देखा बेटा ! हमेशा जींस - टॉप में रहने वाली लड़की एग्जाम में सलवार - कमीज क्यूं पहन के अाई है । सलवार गेस पेपर को रखने के लिए जगह प्रदान करता है । '
' लड़की होने का क्या - क्या फायदा है ! लड़कियों के कपड़ों का जांच - पड़ताल नहीं होता है ; वैसे भी जांच करने वाला शख्स नर था तो कैसे वह किसी नारी को छू सकता है लेकिन लड़का का तो बेल्ट - जूते को खोलवाया जाता है ; यहां तक कि ढोड़ी के नीचे कुछ सेंटीमीटर तक अंगुलियों को डाल के जांच किया जाता है । वाह रे खुदा ! पुरुष विद्यार्थियों के साथ इतना घोर अन्याय ! यही है तेरी महिला - पुरुष में समानता ! लड़के आगे नहीं बढ़ेंगे तो सिर्फ लड़कियों के आगे बढ़ने से देश - राज्य का विकास सुनिश्चित नहीं हो सकता है । '
मैं गेस पेपर से कुछ आवश्यक पेज फाड़कर वापस उसे वापस कर दिया । उसे गेस पेपर को गुप्त अंगों के पास छिपाते देखकर मेरे रोम - रोम में अत्यधिक घृणा का आगमन होने लगा लेकिन क्या करे ; बुरी परिस्थितियों के बोझ से मैं दबा हुआ था । मैं चिट से और वो कन्या मेरे कॉपी से छापने लगी ।
अगले चार दिनों तक हम दोनों की खूब बातें हुई । मैं एग्जामिनेशन सेंटर पर समय से दो घंटे पहले ही चला जाता था - एक घंटे बातचीत और बाकी एक घंटे में पढ़ने का प्रयास करता लेकिन उसकी प्यारी सी पाउडर - क्रीम से पुती मूरत मेरे आंखों के सामने तैरने लगती और उसकी कही बातें मेरे खून में मिल पूरे शरीर में घूमती । वो एग्जाम के दौरान उसके साथ पांच दिन की बातें - मुलाकातें पांच महीने तक मेरे जहन पर अपनी पैठ जमाए रखीं ।।।।
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